HI/BG 10.40: Difference between revisions

(Bhagavad-gita Compile Form edit)
 
No edit summary
 
Line 6: Line 6:
==== श्लोक 40 ====
==== श्लोक 40 ====


<div class="verse">
<div class="devanagari">
:''j''
:नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप ।
 
:एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥४०॥
</div>
</div>



Latest revision as of 16:11, 7 August 2020

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 40

नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप ।
एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥४०॥

शब्दार्थ

न—न तो; अन्त:—सीमा; अस्ति—है; मम—मेरे; दिव्यानाम्—दिव्य; विभूतीनाम्—ऐश्वर्यों की; परन्तप—हे शत्रुओं के विजेता; एष:—यह सब; तु—लेकिन; उद्देशत:—उदाहरणस्वरूप; प्रोक्त:—कहे गये; विभूते:—ऐश्वर्यों के; विस्तर:—विशद वर्णन; मया—मेरे द्वारा।

अनुवाद

हे परन्तप! मेरी दैवी विभूतियों का अन्त नहीं है | मैंने तुमसे जो कुछ कहा, वह तो मेरी अनन्त विभूतियों का संकेत मात्र है |

तात्पर्य

जैसा कि वैदिक साहित्य में कहा गया है यद्यपि परमेश्र्वर की शक्तियाँ तथा विभूतियाँ अनेक प्रकार से जानी जाती हैं, किन्तु इन विभूतियों का कोई अन्त नहीं है, अतएव समस्त विभूतियों तथा शक्तियों का वर्णन कर पाना सम्भव नहीं है | अर्जुन की जिज्ञासा को शान्त करने के लिए केवल थोड़े से उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं |