HI/BG 14.14: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:18, 11 August 2020
श्लोक 14
- यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत् ।
- तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते ॥१४॥
शब्दार्थ
यदा—जब; सत्त्वे—सतोगुण में; प्रवृद्धे—बढ़ जाने पर; तु—लेकिन; प्रलयम्—संहार, विनाश को; याति—जाता है; देह-भृत्—देहधारी; तदा—उस समय; उत्तम-विदाम्—ऋषियों के; लोकान्—लोकों को; अमलान्—शुद्ध; प्रतिपद्यते—प्राह्रश्वत करता है।
अनुवाद
जब कोई सतोगुण में मरता है, तो उसे महर्षियों के विशुद्ध उच्चतर लोकों की प्राप्ति होती है |
तात्पर्य
सतोगुणी व्यक्ति ब्रह्मलोक या जनलोक जैसे उच्च लोकों को प्राप्त करता है और यहाँ दैवी सुख भोगता है | अमलान् शब्द महत्त्वपूर्ण है | इसका अर्थ है, "रजो तथा तमोगुण से मुक्त" | भौतिक जगत में अशुद्धियाँ हैं, लेकिन सतोगुण सर्वाधिक शुद्ध रूप है | विभिन्न जीवों के लिए विभिन्न प्रकार के लोक हैं | जो लोग सतोगुण में मरते हैं, वे उन लोकों को जाते हैं, जहाँ महर्षि तथा महान भक्तगण रहते हैं |