HI/680702 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680702SB-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|"इसलिए भगवद गीता को समझने के बाद, यदि कोई व्यक्ति विश्वासयोग्य हो जाता है कि" मैं अपने जीवन को कृष्ण की सेवा के लिए समर्पित कर दूंगा, "तो वह श्रीमद-भागवतम के अध्ययन में प्रवेश करने के लिए पात्र है। इसका अर्थ है कि श्रीमद-भागवतम उस बिंदु से शुरू होता है जहां भागवद गीता समाप्त हो जाती है। भगवद गीता इस बिंदु पर समाप्त हो जाती है, सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ([[Vanisource:BG 18.66|BG 18.66]])एक को पूरी तरह आत्मसमर्पण करना चाहिए, अन्य सभी व्यस्तताओं को छोड़ना चाहिए। हमेशा याद रखें, अन्य सभी जुड़ाव का मतलब नहीं है की छोड़ देना। तुम ... यह समझने की कोशिश करो कि कृष्ण ने कहा है कि "तुम सब कुछ छोड़ दो और मेरे सामने आत्मसमर्पण कर दो। तो इसका मतलब यह नहीं है कि अर्जुन ने अपनी लड़ाई की क्षमता छोड़ दी। बल्कि, उन्होंने लड़ाई को और अधिक मजबूती से लिया।"|Vanisource:680702 - Lecture SB 07.09.08 - Montreal|680702 - प्रवचन SB 07.09.08 - मॉन्ट्रियल}}
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680702SB-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|तो भगवद गीता को समझने के बाद, यदि किसी व्यक्ति को विश्वास हो जाता है कि" मैं अपने जीवन को कृष्ण की सेवा के लिए समर्पित कर दूंगा," तो वह श्रीमद-भागवतम के अध्ययन में प्रवेश करने के लिए पात्र है । इसका अर्थ है कि श्रीमद-भागवतम उस बिंदु से शुरू होता है जहां भागवद गीता समाप्त हो जाती है । भगवद गीता इस बिंदु पर समाप्त होती है, सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]]) । व्यक्ति को अन्य सभी कार्यो को छोड़ कर पूरी तरह आत्मसमर्पण करना चाहिए हमेशा याद रखें, अन्य सभी कार्यो का मतलब नहीं है की सब कुछ छोड़ देना । तुम... यह समझने की कोशिश करो कि कृष्ण ने कहा है कि "तुम सब कुछ छोड़ दो और मुझे आत्मसमर्पण कर दो । तो इसका मतलब यह नहीं है कि अर्जुन ने अपनी लड़ाई की क्षमता छोड़ दी । बल्कि, उन्होंने लड़ाई को और अधिक मजबूती से लिया ।|Vanisource:680702 - Lecture SB 07.09.08 - Montreal|680702 - प्रवचन श्री.भा. ७..- मॉन्ट्रियल}}

Latest revision as of 17:34, 17 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
तो भगवद गीता को समझने के बाद, यदि किसी व्यक्ति को विश्वास हो जाता है कि" मैं अपने जीवन को कृष्ण की सेवा के लिए समर्पित कर दूंगा," तो वह श्रीमद-भागवतम के अध्ययन में प्रवेश करने के लिए पात्र है । इसका अर्थ है कि श्रीमद-भागवतम उस बिंदु से शुरू होता है जहां भागवद गीता समाप्त हो जाती है । भगवद गीता इस बिंदु पर समाप्त होती है, सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज (भ.गी. १८.६६) । व्यक्ति को अन्य सभी कार्यो को छोड़ कर पूरी तरह आत्मसमर्पण करना चाहिए । हमेशा याद रखें, अन्य सभी कार्यो का मतलब नहीं है की सब कुछ छोड़ देना । तुम... यह समझने की कोशिश करो कि कृष्ण ने कहा है कि "तुम सब कुछ छोड़ दो और मुझे आत्मसमर्पण कर दो । तो इसका मतलब यह नहीं है कि अर्जुन ने अपनी लड़ाई की क्षमता छोड़ दी । बल्कि, उन्होंने लड़ाई को और अधिक मजबूती से लिया ।
680702 - प्रवचन श्री.भा. ७.९.८ - मॉन्ट्रियल