HI/Prabhupada 0813 -वास्तविक स्वतंत्रता है कैसे भौतिक कानूनों की पकड़ से बाहर निकलें: Difference between revisions

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तह प्रहलाद महाराज का कथन है। वे अपने स्कूल के दोस्तों के बीच कृष्ण भावनामृत का उपदेश दे रहे थे। क्योंकि वे एक दानव पिता के परिवार में पैदा हए थे, हिरण्यकशिपु, उन्हें "श्री कृष्ण" बोलने से भी रोका गया । उन्हें महल में कोई अवसर नहीं मिला तो जब वे स्कूल अाते थे, अवकाश के समय वे अपने छोटे दोस्तों को बुलाते पांच साल उम्र, और वे इस भागवत-धर्म का प्रचार करते । और दोस्त कहते, "मेरे प्रिय प्रहलाद, अभी हम बच्चे हैं । ओह, यह भागवत-धर्म का क्या फायदा है? चलो खेलते हैं। "" नहीं " वे कहते, " नहीं। " कौमार अाचरेत प्राज्ञो धर्मान भागवतान इह, दुर्लभम् मानुषम् जन्म ([[Vanisource:SB 7.6.1|श्री भ ७।६।१]]) "मेरे प्यारे दोस्तों, एसा मत कहो कि तुम कृष्ण भावनामृत को बुढ़ापे में अपनाअोगे । नहीं, नहीं।" दुर्लभम । हम नहीं जानते हैं कि हम कब मरेंगे । अगली मौत से पहले हमें इस कृष्ण भावनामृत शिक्षा को पूरा करना होगा। " यही मानव जीवन का उद्देश्य है। वरना हम अवसर खो रहे हैं। तो हर कोई हमेशा के लिए जीना चाहता है, लेकिन प्रकृति अनुमति नहीं देगी । यह एक तथ्य है। हम सोच सकते हैं कि हम बहुत स्वतंत्र हैं, लेकिन हम स्वतंत्र नहीं हैं। हम प्रकृति के कड़े कानूनों के तहत हैं। एक जवान आदमी, तुम नहीं कह सकते हो कि "मैं बूढ़ा आदमी नहीं बनूँगा ।" नहीं, तुम्हे बनना होगा । यही प्रकृति का नियम है। अौर अगर तुम कहते हो, "मैं नहीं मरूँगा ।" नहीं, तुम्हे मरना होगा । तो यह प्रकृति का नियम है। तो हम, इसलिए हम मूढ़ हैं । हम जानते नहीं हैं कि प्रकृति का नियम क्या है ।  
ये प्रहलाद महाराज का कथन है । वे अपने स्कूल के दोस्तों के बीच कृष्ण भावनामृत का उपदेश दे रहे थे । क्योंकि वे एक दानव पिता, हिरण्यकशिपु, के परिवार में पैदा हुए थे, उन्हें "कृष्ण" बोलने से भी रोका गया । उन्हें महल में कोई अवसर नहीं मिला, तो जब वे स्कूल अाते थे, अवकाश के समय वे अपने छोटे दोस्तों को बुलाते, पांच साल की उम्र के, और वे इस भागवत-धर्म का प्रचार करते । और दोस्त कहते, "मेरे प्रिय प्रहलाद, अभी हम बच्चे हैं । ओह, यह भागवत-धर्म का क्या फायदा है ? चलो खेलते हैं ।" "नहीं" वे कहते, "नहीं ।"  
 
कौमार अाचरेत प्राज्ञो धर्मान भागवतान इह, दुर्लभम मानुषम जन्म ([[Vanisource:SB 7.6.1|श्रीमद भागवतम ७.६.१]]): "मेरे प्यारे दोस्तों, एसा मत कहो कि तुम कृष्ण भावनामृत को बुढ़ापे में अपनाअोगे । नहीं, नहीं ।" दुर्लभम । हम नहीं जानते हैं कि हम कब मरेंगे । अगली मौत से पहले हमें इस कृष्ण भावनामृत शिक्षा को पूरा करना होगा ।" यही मानव जीवन का उद्देश्य है । वरना हम अवसर खो रहे हैं । तो हर कोई हमेशा के लिए जीना चाहता है, लेकिन प्रकृति अनुमति नहीं देगी । यह एक तथ्य है । हम सोच सकते हैं कि हम बहुत स्वतंत्र हैं, लेकिन हम स्वतंत्र नहीं हैं । हम प्रकृति के कड़े कानूनों के तहत हैं । एक जवान आदमी, तुम नहीं कह सकते हो कि "मैं बूढ़ा आदमी नहीं बनूँगा ।" नहीं, तुम्हे बनना होगा । यही प्रकृति का नियम है । अौर अगर तुम कहते हो, "मैं नहीं मरूँगा ।" नहीं, तुम्हे मरना होगा । तो यह प्रकृति का नियम है । तो हम, इसलिए हम मूढ़ हैं । हम जानते नहीं हैं कि प्रकृति का नियम क्या है ।  


:प्रकृते: क्रियमाणानि  
:प्रकृते: क्रियमाणानि  
:गुनै: कर्माणि सर्वश:  
:गुणै: कर्माणि सर्वश:  
:अहंकार विमूढात्मा  
:अहंकार विमूढात्मा  
:कर्ताहम इति मन्यते  
:कर्ताहम इति मन्यते  
:([[Vanisource:BG 3.27|भ गी ३।२७]])
:([[HI/BG 3.27|भ.गी. ३.२७]]) |
 
सब कुछ भौतिक प्रकृति के नियमों द्वारा नीचे खींचा जा रहा है, और फिर भी, क्योंकि हम इतने बदमाश मूर्ख और धूर्त हैं की हम सोच रहे हैं "स्वतंत्र ।" यह हमारी गलती है । यह हमारी गलती है । हमें पता नहीं है की जीवन का उद्देश्य क्या है, कैसे प्रकृति, हमें नियंत्रित कर रही है, कैसे हम जीवन की समस्याओं से अपनी रक्षा कर सकते हैं । हम जीवन के अस्थायी समस्याओं को सुलझाने में व्यस्त हैं, जैसे निर्भरता या स्वतंत्रता । ये अस्थायी समस्याएं हैं । वास्तव में हम स्वतंत्र नहीं हैं । हम प्रकृति के नियमों पर निर्भर हैं । और मान लो हम स्वतंत्र हो भी गए, तथाकथित स्वतंत्र, कुछ दिनों के लिए । यह स्वतंत्रता नहीं है ।


सब कुछ भौतिक प्रकृति के नियमों द्वारा नीचे खींचा जा रहा है और फिर भी, क्योंकि हम इतने कमीने मूर्ख और धूर्त हैं कि हम सोच रहे हैं "स्वतंत्र।" यह हमारी गलती है। यह हमारी गलती है। हमें पता नहीं है कि जीवन का उद्देश्य क्या है कैसे प्रकृति, हमें नियंत्रित कर रही है, कैसे हम जीवन की समस्याओं से अपनी रक्षा कर सकते हैं । हम जीवन के अस्थायी समस्याओं को सुलझाने में व्यस्त हैं जैसे निर्भरता या स्वतंत्रता । ये अस्थायी समस्याएं हैं । दरअसल हम स्वतंत्र नहीं हैं । हम प्रकृति के नियमों पर निर्भर हैं । और मान लो हम स्वतंत्र हो भी गए, तथाकथित स्वतंत्र, कुछ दिनों के लिए । यह स्वतंत्रता नहीं है। वास्तविक स्वतंत्रता है कैसे भौतिक कानूनों की पकड़ से बाहर निकलना है । इसलिए श्री कृष्ण तुम्हारे बीच समस्या प्रस्तुत करते हैं ... हमारी कई समस्याऍ हैं, लेकिन वह अस्थायी है । वास्तविक समस्या है, श्री कृष्ण कहते हैं, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दुक्ख-दोषानुदर्शनम ([[Vanisource:BG 13.9|भ गी १३।९]]) ज्ञानी व्यक्ति को हमेशा असली समस्या को सामने रखना चाहिए। वो क्या है? जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी। यह तुम्हारी वास्तविक समस्या है। तो मानव जीवन इन चार समस्याओं को हल करने के लिए है : जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । और यह कृष्ण भावनामृत के द्वारा किया जा सकता है। इसलिए हम कृष्ण भावनामृत आंदोलन पर जोर दे रहे हैं जीवन के परम समस्याओं को हल करने के लिए । इसलिए हमारा अनुरोध है कि तुम बहुत गंभीरता से इस कृष्ण भावानामृत आंदोलन को अपनाअो और जीवन की परम समस्याओं का समाधान करो । और जीवन की समस्याओं का हल किया जा सकता है केवल श्री कृष्ण को समझने के द्वारा । केवल श्री कृष्ण को समझने के द्वारा ।  
वास्तविक स्वतंत्रता है कैसे भौतिक कानूनों की पकड़ से बाहर निकले । इसलिए कृष्ण तुम्हारे बीच समस्या प्रस्तुत करते हैं... हमारी कई समस्याऍ हैं, लेकिन वह अस्थायी है । वास्तविक समस्या है, कृष्ण कहते हैं, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दुःख-दोषानुदर्शनम ([[HI/BG 13.8-12|भ.गी. १३.९]]) | ज्ञानी व्यक्ति को हमेशा असली समस्या को सामने रखना चाहिए । वो क्या है ? जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । यह तुम्हारी वास्तविक समस्या है । तो मानव जीवन इन चार समस्याओं को हल करने के लिए है: जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । और यह कृष्ण भावनामृत के द्वारा किया जा सकता है । इसलिए हम कृष्ण भावनामृत आंदोलन पर जोर दे रहे हैं जीवन की परम समस्याओं को हल करने के लिए । इसलिए हमारा अनुरोध है कि तुम बहुत गंभीरता से इस कृष्ण भावानामृत आंदोलन को अपनाअो, और जीवन की परम समस्याओं का समाधान करो । और जीवन की समस्याओं का हल किया जा सकता है केवल कृष्ण को समझने के द्वारा । केवल कृष्ण को समझने के द्वारा ।  


:जन्म कर्म च मे दिव्यम  
:जन्म कर्म च मे दिव्यम  
:यो जानाति तत्वत:  
:यो जानाति तत्वत:  
:त्यकत्वा देहम् पुनर जन्म  
:त्यकत्वा देहम पुनर जन्म  
:नैति माम एति कौन्तेय  
:नैति माम एति कौन्तेय  
:([[Vanisource:BG 4.9|भ गी ४।९]])
:([[HI/BG 4.9|भ.गी. ४.९]])


यही समस्या का समाधान है ।
यही समस्या का समाधान है ।  
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Latest revision as of 19:19, 17 September 2020



751011 - Lecture BG 18.45 - Durban

ये प्रहलाद महाराज का कथन है । वे अपने स्कूल के दोस्तों के बीच कृष्ण भावनामृत का उपदेश दे रहे थे । क्योंकि वे एक दानव पिता, हिरण्यकशिपु, के परिवार में पैदा हुए थे, उन्हें "कृष्ण" बोलने से भी रोका गया । उन्हें महल में कोई अवसर नहीं मिला, तो जब वे स्कूल अाते थे, अवकाश के समय वे अपने छोटे दोस्तों को बुलाते, पांच साल की उम्र के, और वे इस भागवत-धर्म का प्रचार करते । और दोस्त कहते, "मेरे प्रिय प्रहलाद, अभी हम बच्चे हैं । ओह, यह भागवत-धर्म का क्या फायदा है ? चलो खेलते हैं ।" "नहीं" वे कहते, "नहीं ।"

कौमार अाचरेत प्राज्ञो धर्मान भागवतान इह, दुर्लभम मानुषम जन्म (श्रीमद भागवतम ७.६.१): "मेरे प्यारे दोस्तों, एसा मत कहो कि तुम कृष्ण भावनामृत को बुढ़ापे में अपनाअोगे । नहीं, नहीं ।" दुर्लभम । हम नहीं जानते हैं कि हम कब मरेंगे । अगली मौत से पहले हमें इस कृष्ण भावनामृत शिक्षा को पूरा करना होगा ।" यही मानव जीवन का उद्देश्य है । वरना हम अवसर खो रहे हैं । तो हर कोई हमेशा के लिए जीना चाहता है, लेकिन प्रकृति अनुमति नहीं देगी । यह एक तथ्य है । हम सोच सकते हैं कि हम बहुत स्वतंत्र हैं, लेकिन हम स्वतंत्र नहीं हैं । हम प्रकृति के कड़े कानूनों के तहत हैं । एक जवान आदमी, तुम नहीं कह सकते हो कि "मैं बूढ़ा आदमी नहीं बनूँगा ।" नहीं, तुम्हे बनना होगा । यही प्रकृति का नियम है । अौर अगर तुम कहते हो, "मैं नहीं मरूँगा ।" नहीं, तुम्हे मरना होगा । तो यह प्रकृति का नियम है । तो हम, इसलिए हम मूढ़ हैं । हम जानते नहीं हैं कि प्रकृति का नियम क्या है ।

प्रकृते: क्रियमाणानि
गुणै: कर्माणि सर्वश:
अहंकार विमूढात्मा
कर्ताहम इति मन्यते
(भ.गी. ३.२७) |

सब कुछ भौतिक प्रकृति के नियमों द्वारा नीचे खींचा जा रहा है, और फिर भी, क्योंकि हम इतने बदमाश मूर्ख और धूर्त हैं की हम सोच रहे हैं "स्वतंत्र ।" यह हमारी गलती है । यह हमारी गलती है । हमें पता नहीं है की जीवन का उद्देश्य क्या है, कैसे प्रकृति, हमें नियंत्रित कर रही है, कैसे हम जीवन की समस्याओं से अपनी रक्षा कर सकते हैं । हम जीवन के अस्थायी समस्याओं को सुलझाने में व्यस्त हैं, जैसे निर्भरता या स्वतंत्रता । ये अस्थायी समस्याएं हैं । वास्तव में हम स्वतंत्र नहीं हैं । हम प्रकृति के नियमों पर निर्भर हैं । और मान लो हम स्वतंत्र हो भी गए, तथाकथित स्वतंत्र, कुछ दिनों के लिए । यह स्वतंत्रता नहीं है ।

वास्तविक स्वतंत्रता है कैसे भौतिक कानूनों की पकड़ से बाहर निकले । इसलिए कृष्ण तुम्हारे बीच समस्या प्रस्तुत करते हैं... हमारी कई समस्याऍ हैं, लेकिन वह अस्थायी है । वास्तविक समस्या है, कृष्ण कहते हैं, जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दुःख-दोषानुदर्शनम (भ.गी. १३.९) | ज्ञानी व्यक्ति को हमेशा असली समस्या को सामने रखना चाहिए । वो क्या है ? जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । यह तुम्हारी वास्तविक समस्या है । तो मानव जीवन इन चार समस्याओं को हल करने के लिए है: जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । और यह कृष्ण भावनामृत के द्वारा किया जा सकता है । इसलिए हम कृष्ण भावनामृत आंदोलन पर जोर दे रहे हैं जीवन की परम समस्याओं को हल करने के लिए । इसलिए हमारा अनुरोध है कि तुम बहुत गंभीरता से इस कृष्ण भावानामृत आंदोलन को अपनाअो, और जीवन की परम समस्याओं का समाधान करो । और जीवन की समस्याओं का हल किया जा सकता है केवल कृष्ण को समझने के द्वारा । केवल कृष्ण को समझने के द्वारा ।

जन्म कर्म च मे दिव्यम
यो जानाति तत्वत:
त्यकत्वा देहम पुनर जन्म
नैति माम एति कौन्तेय
(भ.गी. ४.९) ।

यही समस्या का समाधान है ।