HI/Prabhupada 0821 - पंडित का मतलब यह नहीं है कि जिसके पास डिग्री है । पंडित मतलब सम चित्ता: Difference between revisions
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कलियुग में ब्राह्मण का मतलब है एक दो-पैसा का धागा, बस । लेकिन वह ब्राह्मण नहीं है । ब्राह्मण का मतलब है शमो दमो तितिक्षा । ये लक्षण हैं । इसी तरह, महात्मा का मतलब एक वस्त्र नहीं है । लेकिन लोग फायद उठाते हैं वस्त्र का, वेशोपजिविभि: (?) अभी भी भारत में, हालांकि गरीबी से त्रस्त, अगर एक व्यक्ति केवल भगवा कपड़े पहन ले एक गांव में चला जाता है, उसे कोई समस्या नहीं होती है । हर कोई उसे बुलाएगा, उसे आश्रय देगा, उसे आमंत्रित करेगा, उसे भोजन देगा । अभी भी, (हिन्दी: "श्रीमान, यहाँ आईए । प्रसादम लीजिए ।") हर कोई पूछेगा । गरीब लोगों नें इसका फायदा उठाया है । | |||
किसी भी शिक्षा के बिना, बिना किसी..., उसे वे आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए इस्तेमाल करते हैं । यहाँ भी वृन्दावन में तुम देखोगे की कई लोग यहॉ आए हैं क्योंकि इतने सारे छत्र हैं । तुम्हे दाल, चपाति मुफ्त में मिलेगी । तुम सुबह में देखोगे कि इतने सारे निचले वर्ग के लोग, वे वृन्दावन आए हैं केवल इस रोटी और दाल के लिए । और वे इकट्ठा करते हैं और वे अदला बदली करते हैं । वे बीड़ी खरीदते हैं । तो सब कुछ, कलियुग में, हर चीज़ का दुरुपयोग किया जा रहा है । लेकिन शास्त्र नें हमें दिशा दी है कि कौन महात्मा है, कौन ब्राह्मण है । तो यहाँ महात्मा का एक प्रकार दिया गया है: महान्तस ते सम चित्ता: | वे समान हैं । ब्रह्म- भूत: प्रस्नात्मा ([[HI/BG 18.54|भ.गी. १८.५४]]) | सम: सर्वषु भुतेषु । यही महात्मा है । उसे बोध है, ब्रह्म बोध, तो वह कोई भेदभाव नहीं करता है, या तो आदमी से आदमी या जानवर से आदमी में । यहां तक कि एक... | |||
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पंडित का मतलब यह नहीं है कि जिसके पास डिग्री है । पंडित मतलब सम चित्ता: । यही सम चित्ता: है | चाणक्य पंडित नें भी कहा है की, मातृ वत पर दारेषु पर द्रव्येषु लोष्ट्र वत अात्म वत सर्व भूतेषु य: पश्यति स पंड़ित: | वह पंडित है । अन्यथा एक धूर्त । जैसे ही तुम किसी स्त्री को देखते हो, अपनी विवाहित पत्नी को छोड़कर, तुम तुरंत उसे "माता" संबोधित करो । यह पंडित है । यह पंडित है । यह नहीं है 'फिश-फिश' बात करना दूसरी औरत के साथ । वह एक धूर्त है । तो मातृ वत पर दारेषु पर द्रव्येषु लोष्ट्र वत: दूसरों की संपत्ति को छूना नहीं है । कूड़ा कोई नहीं छूता है । लेकिन लोग बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं । | |||
मैंने होंगकोंग में देखा है, वे कुत्तों की तरह कचरे से कुछ खाना बाहर उठा रहे हैं । मैंने देखा है । कोई कुछ खाद्य पदार्थ फेंकता है, और यह एकत्र किया जाता है । लोग बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं । तो कचरा कोई नहीं छूता है । लेकिन कलियुग में कुछ कागज उठाना पड़ता है, कुछ, मेरे कहने का मतलब है, कपड़े के टुकड़े, कचरे का कुछ व्यापार करने के लिए । कचरा अछूत है, लेकिन कलियुग में लोग बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं वे कचरे से भी कुछ बाहर निकालते हैं जो मूल्यवान है । तो, महात्मा, ये लक्षण हैं । सम चित्ता: वे एसा नहीं सोचते हैं, "ओह, यहाँ हिंदू है, यहाँ मुसलमान है, यहाँ अमीर आदमी है, यहाँ गरीब आदमी है ।" नहीं । वह हर किसी के प्रति दयालु है । यह उत्तम योग्यता है । | |||
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Latest revision as of 19:20, 17 September 2020
Lecture on SB 5.5.3 -- Vrndavana, October 25, 1976
कलियुग में ब्राह्मण का मतलब है एक दो-पैसा का धागा, बस । लेकिन वह ब्राह्मण नहीं है । ब्राह्मण का मतलब है शमो दमो तितिक्षा । ये लक्षण हैं । इसी तरह, महात्मा का मतलब एक वस्त्र नहीं है । लेकिन लोग फायद उठाते हैं वस्त्र का, वेशोपजिविभि: (?) अभी भी भारत में, हालांकि गरीबी से त्रस्त, अगर एक व्यक्ति केवल भगवा कपड़े पहन ले एक गांव में चला जाता है, उसे कोई समस्या नहीं होती है । हर कोई उसे बुलाएगा, उसे आश्रय देगा, उसे आमंत्रित करेगा, उसे भोजन देगा । अभी भी, (हिन्दी: "श्रीमान, यहाँ आईए । प्रसादम लीजिए ।") हर कोई पूछेगा । गरीब लोगों नें इसका फायदा उठाया है ।
किसी भी शिक्षा के बिना, बिना किसी..., उसे वे आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए इस्तेमाल करते हैं । यहाँ भी वृन्दावन में तुम देखोगे की कई लोग यहॉ आए हैं क्योंकि इतने सारे छत्र हैं । तुम्हे दाल, चपाति मुफ्त में मिलेगी । तुम सुबह में देखोगे कि इतने सारे निचले वर्ग के लोग, वे वृन्दावन आए हैं केवल इस रोटी और दाल के लिए । और वे इकट्ठा करते हैं और वे अदला बदली करते हैं । वे बीड़ी खरीदते हैं । तो सब कुछ, कलियुग में, हर चीज़ का दुरुपयोग किया जा रहा है । लेकिन शास्त्र नें हमें दिशा दी है कि कौन महात्मा है, कौन ब्राह्मण है । तो यहाँ महात्मा का एक प्रकार दिया गया है: महान्तस ते सम चित्ता: | वे समान हैं । ब्रह्म- भूत: प्रस्नात्मा (भ.गी. १८.५४) | सम: सर्वषु भुतेषु । यही महात्मा है । उसे बोध है, ब्रह्म बोध, तो वह कोई भेदभाव नहीं करता है, या तो आदमी से आदमी या जानवर से आदमी में । यहां तक कि एक...
- विद्या-विनय-संपन्ने
- ब्रह्मणे गवे हस्तिनि
- शुनि चैव श्वपाके च
- पंड़िता: सम दर्शिन:
- (भ.गी. ५.१८) |
पंडित का मतलब यह नहीं है कि जिसके पास डिग्री है । पंडित मतलब सम चित्ता: । यही सम चित्ता: है | चाणक्य पंडित नें भी कहा है की, मातृ वत पर दारेषु पर द्रव्येषु लोष्ट्र वत अात्म वत सर्व भूतेषु य: पश्यति स पंड़ित: | वह पंडित है । अन्यथा एक धूर्त । जैसे ही तुम किसी स्त्री को देखते हो, अपनी विवाहित पत्नी को छोड़कर, तुम तुरंत उसे "माता" संबोधित करो । यह पंडित है । यह पंडित है । यह नहीं है 'फिश-फिश' बात करना दूसरी औरत के साथ । वह एक धूर्त है । तो मातृ वत पर दारेषु पर द्रव्येषु लोष्ट्र वत: दूसरों की संपत्ति को छूना नहीं है । कूड़ा कोई नहीं छूता है । लेकिन लोग बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं ।
मैंने होंगकोंग में देखा है, वे कुत्तों की तरह कचरे से कुछ खाना बाहर उठा रहे हैं । मैंने देखा है । कोई कुछ खाद्य पदार्थ फेंकता है, और यह एकत्र किया जाता है । लोग बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं । तो कचरा कोई नहीं छूता है । लेकिन कलियुग में कुछ कागज उठाना पड़ता है, कुछ, मेरे कहने का मतलब है, कपड़े के टुकड़े, कचरे का कुछ व्यापार करने के लिए । कचरा अछूत है, लेकिन कलियुग में लोग बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं वे कचरे से भी कुछ बाहर निकालते हैं जो मूल्यवान है । तो, महात्मा, ये लक्षण हैं । सम चित्ता: वे एसा नहीं सोचते हैं, "ओह, यहाँ हिंदू है, यहाँ मुसलमान है, यहाँ अमीर आदमी है, यहाँ गरीब आदमी है ।" नहीं । वह हर किसी के प्रति दयालु है । यह उत्तम योग्यता है ।