HI/760825 बातचीत - श्रील प्रभुपाद हैदराबाद में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/760823 सुबह की सैर - श्रील प्रभुपाद हैदराबाद में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|760823|HI/760921 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|760921}}
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Latest revision as of 23:27, 20 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हम में से हर एक, हम इस शरीर के साथ तादात्म्य स्थापित कर रहे हैं। जैसे कि अगर कोई आपसे पूछता है कि आप कौन हैं, 'मैं श्री ये हूँ, मैं भारतीय हूं, मैं ये हूं, मैं वो हूं'। वह शरीर का पहचान दे रहा है। लेकिन वह वो पहचान नहीं है। वह यह शरीर नहीं है। यह आत्म-ज्ञान है। यह भगवद गीता की शुरुआत है, देहो अस्मिन यथा देहे (भ.गी. ०२.१३)-दो तत्त्व-देहा, यह शरीर, और अस्मिन देहे, देहिना है, शरीर का स्वामी। यह आध्यात्मिक शिक्षा की शुरुआत है। क्योंकि आम तौर पर लगभग ९९.९% लोग, वे सोच रहे हैं कि 'मैं यह शरीर हूं'।"
760825 - सम्भाषण - हैदराबाद