HI/760921 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७६]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७६]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - वृंदावन]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - वृंदावन]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760921SB-VRNDAVAN_ND_01.mp3</mp3player>|"इस भौतिक जगत में, इस ब्रह्मांड में, आदि-कवी । तेने ब्रह्मा हर्दा आदि-कवये ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्री.भा. ०१.०१.०१]])। तो वह आदि है, मूल, सर्वप्रथम सृजत जीव। फिर उसका आदि कौन है? ब्रह्म का सृजन कहाँ से हुआ? वह कृष्ण है। तेने ब्रह्मा हर्दा आदि-कवये। तो इस तरह से जब आप कृष्ण की परिचय पर आते हैं, बनाते हुए... ब्रह्म का सृजन विष्णु से हुआ, गर्भोदकशायी विष्णु। स्वयंभू: उनका जन्म कमल के फूल से हुआ। वह गर्भोदकशायी विष्णु, कार्णोधाक्शायी विष्णु से आ रहे हैं। और कार्णोधाक्शायी विष्णु संकर्षण से आ रहे हैं। संकर्षण अनिरुद्ध से आ रहे हैं, अनिरुद्ध प्रद्युम्न से, इस तरह। अन्ततोगत्वा-कृष्णा। अतः कृष्ण आद्यं हैं। कृष्ण भगवद-गीता में कहते हैं, मत्तः परतरं नान्यत ([[Vanisource:BG 7.7 (1972)|भ.गी. ०७.०७]])। और कुछ नहीं है। तो वह ईश्वर है।"|Vanisource:760921 - Lecture SB 01.07.24 - Vrndavana|760921 - प्रवचन SB 01.07.24 - वृंदावन}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/760825 बातचीत - श्रील प्रभुपाद हैदराबाद में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|760825|HI/760922 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|760922}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760921SB-VRNDAVAN_ND_01.mp3</mp3player>|"इस भौतिक जगत में, इस ब्रह्मांड में, आदि-कवी। तेने ब्रह्मा हर्दा आदि-कवये ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्री.भा. ०१.०१.०१]])। तो वह आदि है, मूल, सर्वप्रथम सृजत जीव। फिर उसका आदि कौन है? ब्रह्म का सृजन कहाँ से हुआ? वह कृष्ण है। तेने ब्रह्मा हर्दा आदि-कवये। तो इस तरह से जब आप कृष्ण की परिचय पर आते हैं, बनाते हुए... ब्रह्म का सृजन विष्णु से हुआ, गर्भोदकशायी विष्णु। स्वयंभू: उनका जन्म कमल के फूल से हुआ। वह गर्भोदकशायी विष्णु, कार्णोधाक्शायी विष्णु से आ रहे हैं। और कार्णोधाक्शायी विष्णु संकर्षण से आ रहे हैं। संकर्षण अनिरुद्ध से आ रहे हैं, अनिरुद्ध प्रद्युम्न से, इस तरह। अन्ततोगत्वा-कृष्णा। अतः कृष्ण आद्यं हैं। कृष्ण भगवद-गीता में कहते हैं, मत्तः परतरं नान्यत ([[Vanisource:BG 7.7 (1972)|भ.गी. ०७.०७]])। और कुछ नहीं है। तो वह ईश्वर है।"|Vanisource:760921 - Lecture SB 01.07.24 - Vrndavana|760921 - प्रवचन श्री.भा ०१.०७.२४ - वृंदावन}}

Latest revision as of 23:27, 20 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"इस भौतिक जगत में, इस ब्रह्मांड में, आदि-कवी। तेने ब्रह्मा हर्दा आदि-कवये (श्री.भा. ०१.०१.०१)। तो वह आदि है, मूल, सर्वप्रथम सृजत जीव। फिर उसका आदि कौन है? ब्रह्म का सृजन कहाँ से हुआ? वह कृष्ण है। तेने ब्रह्मा हर्दा आदि-कवये। तो इस तरह से जब आप कृष्ण की परिचय पर आते हैं, बनाते हुए... ब्रह्म का सृजन विष्णु से हुआ, गर्भोदकशायी विष्णु। स्वयंभू: उनका जन्म कमल के फूल से हुआ। वह गर्भोदकशायी विष्णु, कार्णोधाक्शायी विष्णु से आ रहे हैं। और कार्णोधाक्शायी विष्णु संकर्षण से आ रहे हैं। संकर्षण अनिरुद्ध से आ रहे हैं, अनिरुद्ध प्रद्युम्न से, इस तरह। अन्ततोगत्वा-कृष्णा। अतः कृष्ण आद्यं हैं। कृष्ण भगवद-गीता में कहते हैं, मत्तः परतरं नान्यत (भ.गी. ०७.०७)। और कुछ नहीं है। तो वह ईश्वर है।"
760921 - प्रवचन श्री.भा ०१.०७.२४ - वृंदावन