HI/Prabhupada 0614 - हमें बहुत सावधान रहना चाहिए, पतन का मतलब है लाखों सालों का अंतराल: Difference between revisions

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देवताओं की सूची भगवान ब्रह्मा से शुरू होती है । वे देवताओं और अन्य सभी जीवों के मूल पिता हैं । इसलिए उन्हें प्रजा-पति या पिता-मह- दादा, प्रजा-पति के रूप में जाना जाता है । वे सब कुछ के मूल हैं । डार्विन का सिद्धांत, एक बदमाश सिद्धांत, कोई जीवन नहीं था, लेकिन वैदिक ज्ञान के अनुसार सबसे अच्छा जीवन, ब्रह्मा का । वहाँ से जीवन शुरू होता है, और धीरे - धीरे वे अपमानित हो जाते हैं, भौतिक संदूषण । एसा नहीं है कि कोई जीवन नहीं था । जीवन की निम्न हालत से हम उन्नत होते हैं । यह एक गलत सिद्धांत है . वास्तविक सिद्धांत यह है कि जीवन सबसे ऊंचे व्यक्ति, भगवान ब्रह्मा, प्रजा-पति से शुरू होता है । तो किसी भी शुभ मामले में वे आगे रहते हैं, क्योंकि आप भगवान के समक्ष नहीं जा सकते हो जीवन के निम्न हालत में । आप देखते हैं ? जीवन के निम्न हालत का मतलब है पाप की प्रतिक्रिया । उस हालत में आप भगवान के समीप नहीं जा सकते । परम ब्रह्मा परम धाम पवित्रम परमम् भवान ([[Vanisource:BG 10.12|भ गी १०।१२]]) । (एक तरफ :) कौन बात कर रहा है? पवित्रम परमम भवान । कृष्ण परम शुद्ध हैं, पवित्रम परमम् । परमम का मतलब है परम । तो कोई भी कृष्ण के समीप नहीं जा सकता है जब तक वह अशुद्ध है । यह संभव नहीं है । जैसे कुछ दुष्ट, वे कहते हैं, "कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम तुम क्या खा रहे हो, तुम क्या कर रहे हो । तुम्हारी आध्यात्मिक उन्नति में कोई बाधा नहीं है । " ये दुष्ट, ये मूर्ख, पूरी दुनिया को गुमराह कर रहे हैं कि परम व्यक्ति को समझने के मामले में हम निम्न श्रेणी के व्यक्तियों की तरह व्यवहार कर सकते हैं । नहीं । यह संभव नहीं है । परम ब्रह्मा परम धाम पवित्रम परमम् भवान ([[Vanisource:BG 10.12|भ गी १०।१२]]) ।
देवताओं की सूची ब्रह्माजी से शुरू होती है । वे देवताओं और अन्य सभी जीवों के मूल पिता हैं । इसलिए उन्हें प्रजा-पति या पिता-मह, दादा, प्रजा-पति के रूप में जाना जाता है । वे हर किसी के मूल हैं । डार्विन का सिद्धांत, एक बदमाश सिद्धांत, की कोई जीवन नहीं था, लेकिन वैदिक ज्ञान के अनुसार सबसे अच्छा जीवन, ब्रह्मा का । वहाँ से जीवन शुरू होता है, और धीरे-धीरे वे पतित हो जाते हैं, भौतिक संदूषण । एसा नहीं है कि कोई जीवन नहीं था । जीवन की निम्न हालत से हम उन्नत होते हैं । यह एक गलत सिद्धांत है |  


तो अगर तुम परम शुद्ध के समीप जाना चाहते हो, तुम्हे भी शुद्ध होना होगा । अन्यथा कोई संभावना नहीं है । आग हुए बिना, तुम आग में प्रवेश नहीं कर सकते हो । फिर तुम जल जाअोगे । इसी तरह, हालांकि तुम भी ब्रह्मण हो, ... पर ब्रह्मण का हिस्सा भी ब्रह्णम है । अहम् ब्रह्मास्मि । यह हमारी पहचान है । लेकिन किस तरह का ब्रह्मण ? लेकिन ब्रह्मण का छोटा कण, छोटा कण । जैसे चिंगारी और पूरे आग की तरह । दोनों आग हैं, लेकिन चिंगारी चिंगारी है, और बड़ी आग बड़ी आग है । तो चिंगारी बड़ी आग नहीं बन सकती है । अगर वह बनना चाहती है, तो वह नीचे गिर जाती है । फिर जो भी थोड़ा प्रकाश है, वह बुझा जाता है । अगर वह चिंगारी बड़ी आग बनने की कोशिश करती है, तो वह नीचे गिर जाती है । अारुह्य कृच्छ्रेन परम पदम तत: पतंति अद: ([[Vanisource:SB 10.2.32|श्री भ १०।२।३२]]) अारुह्य कृच्छ्रेन, गंभीर तपस्या से, तुम अवैयक्तिक ब्रह्मण तक बढ़ सकते हो, लेकिन तुम फिर से नीचे गिर जाअोगे । यह तथ्य है । तो कई व्यक्ति, वे परम ब्रह्मण के अस्तित्व में विलय होने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन नतीजा यह है कि वे नीचे गिर रहे है । उन्हे नीचे गिरना होगा । यह संभव नहीं है । अारुह्य कृच्छ्रेन परम पदम तत: पतंति अधो अनादृत युश्माद अंघ्रय: ([[Vanisource:SB 10.2.32|श्री भ १०।२।३२]]) कृष्ण के चरण कमलों को पूजे बिना, वे नीचे गिर रहे हैं । इसलिए हमें बहुत सावधान रहना चाहिए कृष्ण से बड़ा या बराबर बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए । कुछ दुष्ट हैं, वे कहते हैं कि "फलां बदमाश कृष्ण से बड़ा है ।" मैं उनके नाम का उल्लेख नहीं करना चाहता । वे दुष्ट कहते हैं कि "अरविंदो कृष्ण से बड़ा हैं ।" वे ऐसा कहते हैं । आप जानते हैं ये ? तो यह, दुनिया, दुष्टों और मूर्खों से भरी है । हमें ... बहुत सावधानी और समझदारी से हमें आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करना होगा । बहुत निरर्थकता से इसे मत लो । हमें बहुत सावधान रहना चाहिए । अन्यथा पतन होता है और एक पतन का मतलब है लाखों सालों का अंतराल । तुम्हे यह मानव रूप मिला है, कृष्ण भावनामृत को पूरा करने के लिए, लेकिन अगर तुम गंभीर नहीं हो, तो फिर लाखों साल का अंतराल अा जाएगाा । इसलिए हमारा कर्तव्य है तंादेर चरणे सेवि, भकत सने वास । हमें भक्तों के साथ जीना चाहिए और अाचार्यों की सेवा में लगे रहना चाहिए । अाचार्यम माम विजानीयान नावमन्येत कर्हिचित ([[Vanisource:SB 11.17.27|श्री भ ११।१७।२७]]) । हमें समझना चाहिए कि आचार्य कृष्ण स्वयं हैं । उनकी उपेक्षा न करो । यस्य देवे परा भक्तिर यथा देवे तथा गुरौ ( श्वे उ ६।२३) ये बयान हैं । इसलिए हमें बहुत सावधान रहना होगा । जैसे यहां भी । जैसे ब्रह्मादय, बड़े, बड़े देवता, वे प्रभु को सणतुष्ट नहीं कर सके, शांत । वह गुस्से में थे । एवं सुरादय: सर्वे ब्रह्म रुद्र पुर: सरा: बड़ी, बड़ी हस्तियॉ, रुद्र, न उपैतुम न उपैतुम अशकन मन्यु । वे उन्हे शांत नहीं कर सका, और संरंभम सुदुरासदम । सुदुरासदम, बहुत, बहुत मुश्किल । अगर हम कृष्ण द्वारा निंदित किए जाते हैं, तो उन्नत होना बहुत, बहुत मुश्किल है । मूढा जन्मनि जन्मनि ([[Vanisource:BG 16.20|भ गी १६।२०]]) । हर जन्म में हम निंदित रहेंगे । यही हमारी सजा है । तो एसा कुछ मत करो जिससे कृष्ण दुखी हों । बस भगवान की सेवा में अपने आप को व्यस्त रखो । बहुत ही साधारण बात है । मन मना भव मद भक्तो मद याजी माम नमस्कुरु ([[Vanisource:BG 18.65|भ गी १८।६५]]) । बस हमेशा उनके बारे में सोचो । किसी अौर के बारे में नहीं, किसी अौर चीज़ के बारे में । सर्वपाधि-विनिर्मुक्तम ([[Vanisource:CC Madhya 19.170|चै च मध्य १९।१७०]]), अन्याभिलाषिता-शून्यम ( भ र सि १।१।११) बस कृष्ण के लिए अपनी सेवा को बनाए रखने के लिए प्रयास करें । चौबीस घंटे की सेवा उपलब्ध है, और उसका पालन करने की कोशिश करें । उपेक्षा न करें । यह तुम्हारे जीवन को सफल बनाएगा । बहुत बहुत धन्यवाद । भक्त: जय श्रील प्रभुपाद । (समाप्त)
वास्तविक सिद्धांत यह है कि जीवन सबसे ऊंचे व्यक्ति, ब्रह्माजी, प्रजा-पति, से शुरू होता है । तो किसी भी शुभ मामले में वे आगे रहते हैं, क्योंकि आप जीवन की निम्न हालत में भगवान के समक्ष नहीं जा सकते हो । आप देखते हैं ? जीवन की निम्न हालत का मतलब है पाप की प्रतिक्रिया । उस हालत में आप भगवान के समीप नहीं जा सकते । परम ब्रह्म परम धाम पवित्रम परमम भवान ([[HI/BG 10.12-13|भ.गी. १०.१२]]) ।
 
(एक तरफ:) कौन बात कर रहा है?
 
पवित्रम परमम भवान । कृष्ण परम शुद्ध हैं, पवित्रम परमम । परमम का मतलब है सर्वोच्च । तो कोई भी कृष्ण के समीप नहीं जा सकता है जब तक वह अशुद्ध है । यह संभव नहीं है । जैसे कुछ दुष्ट, वे कहते हैं, "कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम तुम क्या खा रहे हो, तुम क्या कर रहे हो । तुम्हारी आध्यात्मिक उन्नति में कोई बाधा नहीं है । " ये दुष्ट, ये मूर्ख, पूरी दुनिया को गुमराह कर रहे हैं कि परम व्यक्ति को समझने के मामले में हम निम्न श्रेणी के व्यक्तियों की तरह व्यवहार कर सकते हैं । नहीं । यह संभव नहीं है । परम ब्रह्म परम धाम पवित्रम परमम भवान ([[HI/BG 10.12-13|भ.गी. १०.१२]]) ।
 
तो अगर तुम परम शुद्ध के समीप जाना चाहते हो, तुम्हे भी शुद्ध होना होगा । अन्यथा कोई संभावना नहीं है । आग हुए बिना, तुम आग में प्रवेश नहीं कर सकते हो । फिर तुम जल जाअोगे । इसी तरह, हालांकि तुम भी ब्रह्म हो... पर ब्रह्म का हिस्सा भी ब्रह्म है । अहम ब्रह्मास्मि । यह हमारी पहचान है । लेकिन किस तरह का ब्रह्म ? लेकिन ब्रह्म का छोटा कण, छोटा कण । जैसे चिंगारी और पूरी अग्नि की तरह । दोनों आग हैं, लेकिन चिंगारी चिंगारी है, और बड़ी आग बड़ी आग है । तो चिंगारी बड़ी आग नहीं बन सकती है । अगर वह बनना चाहती है, तो वह नीचे गिर जाती है । फिर जो भी थोड़ा प्रकाश है, वह बुझ जाता है । अगर वह चिंगारी बड़ी आग बनने की कोशिश करती है, तो वह नीचे गिर जाती है ।  
 
अारुह्य कृच्छ्रेण परम पदम तत: पतंति अध: () | अारुह्य कृच्छ्रेण, गंभीर तपस्या से, तुम अवैयक्तिक ब्रह्म तक बढ़ सकते हो, लेकिन तुम फिर से नीचे गिर जाअोगे । यह तथ्य है । तो कई व्यक्ति, वे परम ब्रह्म के अस्तित्व में विलीन होने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन नतीजा यह है कि वे नीचे गिर रहे है । उन्हे नीचे गिरना ही होगा । यह संभव नहीं है । अारुह्य कृच्छ्रेण परम पदम तत: पतंति अधो अनादृत युश्माद अंघ्रय: ([[Vanisource:SB 10.2.32|श्रीमद भागवतम १०.२.३२]]) | कृष्ण के चरण कमलों को पूजे बिना, वे नीचे गिर रहे हैं । इसलिए हमें बहुत सावधान रहना चाहिए की कृष्ण से बड़ा या बराबर बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए ।  
 
कुछ दुष्ट हैं, वे कहते हैं कि "फलाना बदमाश कृष्ण से बड़ा है ।" मैं उनके नाम का उल्लेख नहीं करना चाहता । वे दुष्ट कहते हैं कि "अरविंदो कृष्ण से बड़ा हैं ।" वे ऐसा कहते हैं । आप जानते हैं ये ? तो यह, दुनिया, दुष्टों और मूर्खों से भरी है । हमें... बहुत सावधानी और समझदारी से हमें आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करना होगा । बहुत तुच्छता से इसे मत लो । हमें बहुत सावधान रहना चाहिए । अन्यथा पतन होता है और एक पतन का मतलब है लाखों सालों का अंतराल । तुम्हे यह मानव रूप मिला है, कृष्ण भावनामृत को पूरा करने के लिए, लेकिन अगर तुम गंभीर नहीं हो, तो फिर लाखों साल का अंतराल अा जाएगाा । इसलिए हमारा कर्तव्य है तांदेर चरणे सेवि, भकत सने वास । हमें भक्तों के साथ जीना चाहिए और अाचार्यों की सेवा में लगे रहना चाहिए ।  
 
अाचार्यम माम विजानीयान नावमन्येत कर्हिचित ([[Vanisource:SB 11.17.27|श्रीमद भागवतम ११.१७.२७]]) । हमें आचार्य को साक्षाद कृष्ण के सामान समझना चाहिए । उनकी उपेक्षा न करो । यस्य देवे परा भक्तिर यथा देवे तथा गुरौ (श्वेताश्वतर उपनिषद ६.२३) | ये बयान हैं । इसलिए हमें बहुत सावधान रहना होगा । जैसे यहां भी । जैसे ब्रह्मादय, बड़े, बड़े देवता, वे भगवान को संतुष्ट, शांत, नहीं कर सके । वह गुस्से में थे । एवम सुरादय: सर्वे ब्रह्म रुद्र पुर: सरा: |
 
बड़ी, बड़ी हस्तियॉ, रुद्र, न उपैतुम | न उपैतुम अशकन मन्यु । वे उन्हे शांत नहीं कर सके, और संरंभम सुदुरासदम । सुदुरासदम, बहुत, बहुत मुश्किल । अगर हम कृष्ण द्वारा निंदित किए जाते हैं, तो उन्नत होना बहुत, बहुत मुश्किल है । मूढा जन्मनि जन्मनि ([[HI/BG 16.20|भ.गी. १६.२०]]) । हर जन्म में हम निंदित रहेंगे । यही हमारी सजा है । तो एसा कुछ मत करो जिससे कृष्ण दुखी हों । बस भगवान की सेवा में अपने आप को व्यस्त रखो । बहुत ही सरल बात है ।  
 
मन मना भव मद भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु ([[HI/BG 18.65|भ.गी. १८.६५]]) । बस हमेशा उनके बारे में सोचो । किसी अौर के बारे में नहीं, किसी अौर चीज़ के बारे में नहीं सर्वोपाधि-विनिर्मुक्तम (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१७०), अन्याभिलाषिता-शून्यम (भक्तिरसामृतसिन्धु १.१.११) | बस कृष्ण के लिए अपनी सेवा को बनाए रखने के लिए प्रयास करें । चौबीस घंटे की सेवा उपलब्ध है, और उसका पालन करने की कोशिश करें । उपेक्षा न करें । यह तुम्हारे जीवन को सफल बनाएगा । बहुत बहुत धन्यवाद । भक्त: जय श्रील प्रभुपाद । (समाप्त)  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on SB 7.9.1 -- Mayapur, February 8, 1976

देवताओं की सूची ब्रह्माजी से शुरू होती है । वे देवताओं और अन्य सभी जीवों के मूल पिता हैं । इसलिए उन्हें प्रजा-पति या पिता-मह, दादा, प्रजा-पति के रूप में जाना जाता है । वे हर किसी के मूल हैं । डार्विन का सिद्धांत, एक बदमाश सिद्धांत, की कोई जीवन नहीं था, लेकिन वैदिक ज्ञान के अनुसार सबसे अच्छा जीवन, ब्रह्मा का । वहाँ से जीवन शुरू होता है, और धीरे-धीरे वे पतित हो जाते हैं, भौतिक संदूषण । एसा नहीं है कि कोई जीवन नहीं था । जीवन की निम्न हालत से हम उन्नत होते हैं । यह एक गलत सिद्धांत है |

वास्तविक सिद्धांत यह है कि जीवन सबसे ऊंचे व्यक्ति, ब्रह्माजी, प्रजा-पति, से शुरू होता है । तो किसी भी शुभ मामले में वे आगे रहते हैं, क्योंकि आप जीवन की निम्न हालत में भगवान के समक्ष नहीं जा सकते हो । आप देखते हैं ? जीवन की निम्न हालत का मतलब है पाप की प्रतिक्रिया । उस हालत में आप भगवान के समीप नहीं जा सकते । परम ब्रह्म परम धाम पवित्रम परमम भवान (भ.गी. १०.१२) ।

(एक तरफ:) कौन बात कर रहा है?

पवित्रम परमम भवान । कृष्ण परम शुद्ध हैं, पवित्रम परमम । परमम का मतलब है सर्वोच्च । तो कोई भी कृष्ण के समीप नहीं जा सकता है जब तक वह अशुद्ध है । यह संभव नहीं है । जैसे कुछ दुष्ट, वे कहते हैं, "कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम तुम क्या खा रहे हो, तुम क्या कर रहे हो । तुम्हारी आध्यात्मिक उन्नति में कोई बाधा नहीं है । " ये दुष्ट, ये मूर्ख, पूरी दुनिया को गुमराह कर रहे हैं कि परम व्यक्ति को समझने के मामले में हम निम्न श्रेणी के व्यक्तियों की तरह व्यवहार कर सकते हैं । नहीं । यह संभव नहीं है । परम ब्रह्म परम धाम पवित्रम परमम भवान (भ.गी. १०.१२) ।

तो अगर तुम परम शुद्ध के समीप जाना चाहते हो, तुम्हे भी शुद्ध होना होगा । अन्यथा कोई संभावना नहीं है । आग हुए बिना, तुम आग में प्रवेश नहीं कर सकते हो । फिर तुम जल जाअोगे । इसी तरह, हालांकि तुम भी ब्रह्म हो... पर ब्रह्म का हिस्सा भी ब्रह्म है । अहम ब्रह्मास्मि । यह हमारी पहचान है । लेकिन किस तरह का ब्रह्म ? लेकिन ब्रह्म का छोटा कण, छोटा कण । जैसे चिंगारी और पूरी अग्नि की तरह । दोनों आग हैं, लेकिन चिंगारी चिंगारी है, और बड़ी आग बड़ी आग है । तो चिंगारी बड़ी आग नहीं बन सकती है । अगर वह बनना चाहती है, तो वह नीचे गिर जाती है । फिर जो भी थोड़ा प्रकाश है, वह बुझ जाता है । अगर वह चिंगारी बड़ी आग बनने की कोशिश करती है, तो वह नीचे गिर जाती है ।

अारुह्य कृच्छ्रेण परम पदम तत: पतंति अध: () | अारुह्य कृच्छ्रेण, गंभीर तपस्या से, तुम अवैयक्तिक ब्रह्म तक बढ़ सकते हो, लेकिन तुम फिर से नीचे गिर जाअोगे । यह तथ्य है । तो कई व्यक्ति, वे परम ब्रह्म के अस्तित्व में विलीन होने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन नतीजा यह है कि वे नीचे गिर रहे है । उन्हे नीचे गिरना ही होगा । यह संभव नहीं है । अारुह्य कृच्छ्रेण परम पदम तत: पतंति अधो अनादृत युश्माद अंघ्रय: (श्रीमद भागवतम १०.२.३२) | कृष्ण के चरण कमलों को पूजे बिना, वे नीचे गिर रहे हैं । इसलिए हमें बहुत सावधान रहना चाहिए की कृष्ण से बड़ा या बराबर बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए ।

कुछ दुष्ट हैं, वे कहते हैं कि "फलाना बदमाश कृष्ण से बड़ा है ।" मैं उनके नाम का उल्लेख नहीं करना चाहता । वे दुष्ट कहते हैं कि "अरविंदो कृष्ण से बड़ा हैं ।" वे ऐसा कहते हैं । आप जानते हैं ये ? तो यह, दुनिया, दुष्टों और मूर्खों से भरी है । हमें... बहुत सावधानी और समझदारी से हमें आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करना होगा । बहुत तुच्छता से इसे मत लो । हमें बहुत सावधान रहना चाहिए । अन्यथा पतन होता है और एक पतन का मतलब है लाखों सालों का अंतराल । तुम्हे यह मानव रूप मिला है, कृष्ण भावनामृत को पूरा करने के लिए, लेकिन अगर तुम गंभीर नहीं हो, तो फिर लाखों साल का अंतराल अा जाएगाा । इसलिए हमारा कर्तव्य है तांदेर चरणे सेवि, भकत सने वास । हमें भक्तों के साथ जीना चाहिए और अाचार्यों की सेवा में लगे रहना चाहिए ।

अाचार्यम माम विजानीयान नावमन्येत कर्हिचित (श्रीमद भागवतम ११.१७.२७) । हमें आचार्य को साक्षाद कृष्ण के सामान समझना चाहिए । उनकी उपेक्षा न करो । यस्य देवे परा भक्तिर यथा देवे तथा गुरौ (श्वेताश्वतर उपनिषद ६.२३) | ये बयान हैं । इसलिए हमें बहुत सावधान रहना होगा । जैसे यहां भी । जैसे ब्रह्मादय, बड़े, बड़े देवता, वे भगवान को संतुष्ट, शांत, नहीं कर सके । वह गुस्से में थे । एवम सुरादय: सर्वे ब्रह्म रुद्र पुर: सरा: |

बड़ी, बड़ी हस्तियॉ, रुद्र, न उपैतुम | न उपैतुम अशकन मन्यु । वे उन्हे शांत नहीं कर सके, और संरंभम सुदुरासदम । सुदुरासदम, बहुत, बहुत मुश्किल । अगर हम कृष्ण द्वारा निंदित किए जाते हैं, तो उन्नत होना बहुत, बहुत मुश्किल है । मूढा जन्मनि जन्मनि (भ.गी. १६.२०) । हर जन्म में हम निंदित रहेंगे । यही हमारी सजा है । तो एसा कुछ मत करो जिससे कृष्ण दुखी हों । बस भगवान की सेवा में अपने आप को व्यस्त रखो । बहुत ही सरल बात है ।

मन मना भव मद भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु (भ.गी. १८.६५) । बस हमेशा उनके बारे में सोचो । किसी अौर के बारे में नहीं, किसी अौर चीज़ के बारे में नहीं । सर्वोपाधि-विनिर्मुक्तम (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१७०), अन्याभिलाषिता-शून्यम (भक्तिरसामृतसिन्धु १.१.११) | बस कृष्ण के लिए अपनी सेवा को बनाए रखने के लिए प्रयास करें । चौबीस घंटे की सेवा उपलब्ध है, और उसका पालन करने की कोशिश करें । उपेक्षा न करें । यह तुम्हारे जीवन को सफल बनाएगा । बहुत बहुत धन्यवाद । भक्त: जय श्रील प्रभुपाद । (समाप्त)