HI/Prabhupada 0835 - आधुनिक राजनेता कर्म पर ज़ोर देते हैं क्योंकि वे सुअर और कुत्तेकी तरह मेहनत करना चाहते है: Difference between revisions

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प्रभुपाद:  त्यक्तवा देहम पुनर जन्म नैति (([[Vanisource:BG 4.9 (1972)|भ.गी. ४.९]])) । जिसने कृष्ण को तत्वत: समझ लिया है, वह तुरंत मुक्त व्यक्ति है । वह आध्यात्मिक दुनिया को हस्तांतरित किए जाने के योग्य है । त्यक्तवा देहम पुनर जन्म नैति । पुनर जन्म... जो कृष्ण को समझ नहीं पाता है, उसे जन्म के बाद जन्म दोहराना होगा । निवर्तन्ते मृत्यु संसार वर्त्मनि ([[Vanisource:BG 9.3 (1972)|भ.गी. ९.३]]) | जब तक तुम कृष्ण को समझते नहीं -  हरिम विना न मृतिम तरंति - तुम मृत्यु, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी से बच नहीं सकते । यह संभव नहीं है ।  
प्रभुपाद:  त्यक्तवा देहम पुनर जन्म नैति (([[HI/BG 4.9|भ.गी. ४.९]])) । जिसने कृष्ण को तत्वत: समझ लिया है, वह तुरंत मुक्त व्यक्ति है । वह आध्यात्मिक दुनिया को हस्तांतरित किए जाने के योग्य है । त्यक्तवा देहम पुनर जन्म नैति । पुनर जन्म... जो कृष्ण को समझ नहीं पाता है, उसे जन्म के बाद जन्म दोहराना होगा । निवर्तन्ते मृत्यु संसार वर्त्मनि ([[HI/BG 9.3|भ.गी. ९.३]]) | जब तक तुम कृष्ण को समझते नहीं -  हरिम विना न मृतिम तरंति - तुम मृत्यु, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी से बच नहीं सकते । यह संभव नहीं है ।  


तो अगर तुम वास्तव में अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हो, तो तुम्हे कृष्ण को समझने की कोशिश करनी चाहिए । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । तो तुम्हारा जीवन सफल होगा । और कृष्ण को समझने के लिए, कोई अन्य विधि मदद नहीं करेगी । कृष्ण नें कहा, भक्त्या माम अभिजानाति (([[Vanisource:BG 18.55 (1972)|भ.गी. १८.५५]])) । कभी नहीं कहा की "मैं योग प्रक्रिया के द्वारा या कर्म से या ज्ञान द्वारा समझा जा सकता हूँ ।"  
तो अगर तुम वास्तव में अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हो, तो तुम्हे कृष्ण को समझने की कोशिश करनी चाहिए । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । तो तुम्हारा जीवन सफल होगा । और कृष्ण को समझने के लिए, कोई अन्य विधि मदद नहीं करेगी । कृष्ण नें कहा, भक्त्या माम अभिजानाति (([[HI/BG 18.55|भ.गी. १८.५५]])) । कभी नहीं कहा की "मैं योग प्रक्रिया के द्वारा या कर्म से या ज्ञान द्वारा समझा जा सकता हूँ ।"  


आधुनिक राजनेता, वे कर्म पर ज़ोर देते हैं क्योंकि वे सुअर और कुत्ते की तरह कड़ी मेहनत करना चाहते हैं । वे सोचते हैं कि कर्म-योग... तो कर्म-योग अच्छा है, लेकिन कर्मी मूढ हैं । जो केवल इन्द्रिय संतुष्टि के लिए कड़ी मेहनत करते हैं दिन रात, वे सुअर और कुत्तों की तुलना में बेहतर नहीं हैं । वे किसी काम के नहीं हैं । लेकिन कर्म-योग अलग बात है । कर्म-योग मतलब जो थोड़ा अासक्त है कुछ, कुछ उत्पादन के लिए, तो कृष्ण ने कहा, "हाँ, तुम कर सकते हो, लेकिन," यत करोषि यज जुहोषि यद अश्नासि यत तपस्यसि कुरुष्व मद... ([[Vanisource:BG 9.27 (1972)|भ.गी. ९.२७]]), "फल तुम मुझे दो ।" अनाश्रित: कर्म फलम कार्यम कर्म करोति य: स सन्यासि ([[Vanisource:BG 6.1 (1972)|भ.गी. ६.१]]) |
आधुनिक राजनेता, वे कर्म पर ज़ोर देते हैं क्योंकि वे सुअर और कुत्ते की तरह कड़ी मेहनत करना चाहते हैं । वे सोचते हैं कि कर्म-योग... तो कर्म-योग अच्छा है, लेकिन कर्मी मूढ हैं । जो केवल इन्द्रिय संतुष्टि के लिए कड़ी मेहनत करते हैं दिन रात, वे सुअर और कुत्तों की तुलना में बेहतर नहीं हैं । वे किसी काम के नहीं हैं । लेकिन कर्म-योग अलग बात है । कर्म-योग मतलब जो थोड़ा अासक्त है कुछ, कुछ उत्पादन के लिए, तो कृष्ण ने कहा, "हाँ, तुम कर सकते हो, लेकिन," यत करोषि यज जुहोषि यद अश्नासि यत तपस्यसि कुरुष्व मद... ([[HI/BG 9.27|भ.गी. ९.२७]]), "फल तुम मुझे दो ।" अनाश्रित: कर्म फलम कार्यम कर्म करोति य: स सन्यासि ([[HI/BG 6.1|भ.गी. ६.१]]) |


तो जो अपने कर्म का फल नहीं लेता है, तो वह सन्यासी है । मान लो तुम कमाते हो... तुम एक व्यापारी हो, तुम दो लाख रुपए कमाते हो - लेकिन कृष्ण को दे दो । अनाश्रित: कर्म-फलम । अन्यथा, तुम इन दो लाख रुपए के साथ क्या करोंगे ? अगर तुम नहीं लेते हो, तो तुम इसे फेंक दोगे ? "नहीं, मैं इसे क्यों फेंक दूं ? यह कृष्ण के लिए उपयोग किया जाना चाहिए ।" तो उन्हें करने दो... लोग बहुत ज्यादा उत्साही है इस भौतिक दुनिया में पैसे कमाने के लिए । हम व्यावहारिक रूप से देख सकते हैं, विशेष रूप से पश्चिमी दुनिया में । लेकिन अगर वे कृष्ण भावानामृत आंदोलन में अपना मुनाफा लगाते हैं, फिर उनका धन परमाणु बम बनाने में नहीं लगेगा । अन्यथा यह परमाणु बम के इस्तेमाल में लगेगा । मैं तुम्हारा सिर फोड़ूँगा और तुम मेरा सिर । दोनों, हम खत्म करेंगे ।  
तो जो अपने कर्म का फल नहीं लेता है, तो वह सन्यासी है । मान लो तुम कमाते हो... तुम एक व्यापारी हो, तुम दो लाख रुपए कमाते हो - लेकिन कृष्ण को दे दो । अनाश्रित: कर्म-फलम । अन्यथा, तुम इन दो लाख रुपए के साथ क्या करोंगे ? अगर तुम नहीं लेते हो, तो तुम इसे फेंक दोगे ? "नहीं, मैं इसे क्यों फेंक दूं ? यह कृष्ण के लिए उपयोग किया जाना चाहिए ।" तो उन्हें करने दो... लोग बहुत ज्यादा उत्साही है इस भौतिक दुनिया में पैसे कमाने के लिए । हम व्यावहारिक रूप से देख सकते हैं, विशेष रूप से पश्चिमी दुनिया में । लेकिन अगर वे कृष्ण भावानामृत आंदोलन में अपना मुनाफा लगाते हैं, फिर उनका धन परमाणु बम बनाने में नहीं लगेगा । अन्यथा यह परमाणु बम के इस्तेमाल में लगेगा । मैं तुम्हारा सिर फोड़ूँगा और तुम मेरा सिर । दोनों, हम खत्म करेंगे ।  

Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on SB 5.5.33 -- Vrndavana, November 20, 1976

प्रभुपाद: त्यक्तवा देहम पुनर जन्म नैति ((भ.गी. ४.९)) । जिसने कृष्ण को तत्वत: समझ लिया है, वह तुरंत मुक्त व्यक्ति है । वह आध्यात्मिक दुनिया को हस्तांतरित किए जाने के योग्य है । त्यक्तवा देहम पुनर जन्म नैति । पुनर जन्म... जो कृष्ण को समझ नहीं पाता है, उसे जन्म के बाद जन्म दोहराना होगा । निवर्तन्ते मृत्यु संसार वर्त्मनि (भ.गी. ९.३) | जब तक तुम कृष्ण को समझते नहीं - हरिम विना न मृतिम तरंति - तुम मृत्यु, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी से बच नहीं सकते । यह संभव नहीं है ।

तो अगर तुम वास्तव में अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हो, तो तुम्हे कृष्ण को समझने की कोशिश करनी चाहिए । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । तो तुम्हारा जीवन सफल होगा । और कृष्ण को समझने के लिए, कोई अन्य विधि मदद नहीं करेगी । कृष्ण नें कहा, भक्त्या माम अभिजानाति ((भ.गी. १८.५५)) । कभी नहीं कहा की "मैं योग प्रक्रिया के द्वारा या कर्म से या ज्ञान द्वारा समझा जा सकता हूँ ।"

आधुनिक राजनेता, वे कर्म पर ज़ोर देते हैं क्योंकि वे सुअर और कुत्ते की तरह कड़ी मेहनत करना चाहते हैं । वे सोचते हैं कि कर्म-योग... तो कर्म-योग अच्छा है, लेकिन कर्मी मूढ हैं । जो केवल इन्द्रिय संतुष्टि के लिए कड़ी मेहनत करते हैं दिन रात, वे सुअर और कुत्तों की तुलना में बेहतर नहीं हैं । वे किसी काम के नहीं हैं । लेकिन कर्म-योग अलग बात है । कर्म-योग मतलब जो थोड़ा अासक्त है कुछ, कुछ उत्पादन के लिए, तो कृष्ण ने कहा, "हाँ, तुम कर सकते हो, लेकिन," यत करोषि यज जुहोषि यद अश्नासि यत तपस्यसि कुरुष्व मद... (भ.गी. ९.२७), "फल तुम मुझे दो ।" अनाश्रित: कर्म फलम कार्यम कर्म करोति य: स सन्यासि (भ.गी. ६.१) |

तो जो अपने कर्म का फल नहीं लेता है, तो वह सन्यासी है । मान लो तुम कमाते हो... तुम एक व्यापारी हो, तुम दो लाख रुपए कमाते हो - लेकिन कृष्ण को दे दो । अनाश्रित: कर्म-फलम । अन्यथा, तुम इन दो लाख रुपए के साथ क्या करोंगे ? अगर तुम नहीं लेते हो, तो तुम इसे फेंक दोगे ? "नहीं, मैं इसे क्यों फेंक दूं ? यह कृष्ण के लिए उपयोग किया जाना चाहिए ।" तो उन्हें करने दो... लोग बहुत ज्यादा उत्साही है इस भौतिक दुनिया में पैसे कमाने के लिए । हम व्यावहारिक रूप से देख सकते हैं, विशेष रूप से पश्चिमी दुनिया में । लेकिन अगर वे कृष्ण भावानामृत आंदोलन में अपना मुनाफा लगाते हैं, फिर उनका धन परमाणु बम बनाने में नहीं लगेगा । अन्यथा यह परमाणु बम के इस्तेमाल में लगेगा । मैं तुम्हारा सिर फोड़ूँगा और तुम मेरा सिर । दोनों, हम खत्म करेंगे ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय प्रभुपाद ।