HI/Prabhupada 0919 - कृष्ण का कोई दुश्मन नहीं है । कृष्ण का कोई दोस्त नहीं है । वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं: Difference between revisions
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प्रभुपाद: तो | प्रभुपाद: तो कृष्ण के लिए ऐसी कोई बात नहीं है, कि तुम आरोप लगा सकते हो कि श्री कृष्ण कामुक हैं । नहीं । वे अपने सभी भक्तों पर कृपा करते हैं । श्री कृष्ण के इतने भक्त हैं । कोई भक्त श्री कृष्ण से उनके पति बनने की माँग कर रहा है । कोई भक्त श्री कृष्ण से उनका सखा बनने की माँग कर रहा है । कोई भक्त श्री कृष्ण से उनका बेटा बनने की माँग कर रहा है । कोई भक्त श्री कृष्ण से उनका जोड़ीदार बनने की माँग कर रहा है । इस तरह से, लाखों और अरबों भक्त पूरे ब्रह्मांड में हैं । और कृष्ण को उन सभी को संतुष्ट करना है । उनको भक्तों से किसी भी मदद की आवश्यकता नहीं है । | ||
लेकिन, जैसे भक्त चाहते हैं... तो ये १६,००० भक्त अपने पति के रूप में श्री कृष्ण को चाहती थी । श्री कृष्ण सहमत हुए । और यह है... जैसे आम आदमी । लेकिन भगवान के रूप में, उन्होंने १६,००० रूपों में स्वयं का विस्तार किया । तो नारद देखने के लिए आए । "श्री कृष्ण नें १६००० पत्नियों से शादी की है । कैसे वे उनके साथ व्यवहार कर रहे हैं, मुझे देखना है ।" तो वे, जब वे अाए, उन्होंने देखा की १६,००० महलों में, श्री कृष्ण अलग अलग ढंग से व्यवहार कर रहे हैं । कहीं वे अपनी पत्नी के साथ बात कर रहे हैं, कहीं वे अपने बच्चों के साथ खेल रहे हैं | कहीं वहे अपने बेटों और बेटियों की शादी की रस्म कर रहे हैं । इतने सारे, १६,००० तरीके से संलग्न हैं वे । यही श्री कृष्ण हैं । | |||
हालांकि, श्री कृष्ण... जैसे, वे साधारण बच्चे की तरह अभिनय कर रहे थै । लेकिन जब माँ यशोदा उनका खुला मुंह देखना चाहती थी, की क्या उन्होंने मिट्टी खाई है, उन्होने अपने मुंह के भीतर सभी ब्रह्मांडों को दिखाया । तो यह श्री कृष्ण हैं । हालांकि वे साधारण बच्चे का अभिनय कर रहे हैं, साधारण इंसान का, लेकिन आवश्यकता पडऩे पर, वे अपनी भगवान की प्रकृति को दर्शाते है । जैसे अर्जुन की तरह । वे रथ चला रहे थे, लेकिन जब अर्जुन उनके विराट रूप को देखना चाहते थे, तुरंत उन्होंने दिखाया उसे । हजारों लाखों सिर और हथियार । यह श्री कृष्ण हैं । | |||
तो न यस्य कश्चित । अन्यथा श्री कृष्ण का कोई दुश्मन नहीं है । श्री कृष्ण का कोई दोस्त नहीं है । वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं । वे दुश्मन पर निर्भर नहीं करते हैं । लेकिन वे अभिनय करते हैं तथाकथित दोस्त और तथाकथित दुश्मन के लाभ के लिए । यही श्री कृष्ण हैं ... यही कृष्ण की परम प्रकृति है । जब श्री कृष्ण कृपा करते हैं दुश्मन या दोस्त बनकर, परिणाम एक ही है । इसलिए श्री कृष्ण परम हैं । बहुत बहुत धन्यवाद । भक्त: जय प्रभुपाद ! | |||
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Latest revision as of 17:45, 1 October 2020
730421 - Lecture SB 01.08.29 - Los Angeles
प्रभुपाद: तो कृष्ण के लिए ऐसी कोई बात नहीं है, कि तुम आरोप लगा सकते हो कि श्री कृष्ण कामुक हैं । नहीं । वे अपने सभी भक्तों पर कृपा करते हैं । श्री कृष्ण के इतने भक्त हैं । कोई भक्त श्री कृष्ण से उनके पति बनने की माँग कर रहा है । कोई भक्त श्री कृष्ण से उनका सखा बनने की माँग कर रहा है । कोई भक्त श्री कृष्ण से उनका बेटा बनने की माँग कर रहा है । कोई भक्त श्री कृष्ण से उनका जोड़ीदार बनने की माँग कर रहा है । इस तरह से, लाखों और अरबों भक्त पूरे ब्रह्मांड में हैं । और कृष्ण को उन सभी को संतुष्ट करना है । उनको भक्तों से किसी भी मदद की आवश्यकता नहीं है ।
लेकिन, जैसे भक्त चाहते हैं... तो ये १६,००० भक्त अपने पति के रूप में श्री कृष्ण को चाहती थी । श्री कृष्ण सहमत हुए । और यह है... जैसे आम आदमी । लेकिन भगवान के रूप में, उन्होंने १६,००० रूपों में स्वयं का विस्तार किया । तो नारद देखने के लिए आए । "श्री कृष्ण नें १६००० पत्नियों से शादी की है । कैसे वे उनके साथ व्यवहार कर रहे हैं, मुझे देखना है ।" तो वे, जब वे अाए, उन्होंने देखा की १६,००० महलों में, श्री कृष्ण अलग अलग ढंग से व्यवहार कर रहे हैं । कहीं वे अपनी पत्नी के साथ बात कर रहे हैं, कहीं वे अपने बच्चों के साथ खेल रहे हैं | कहीं वहे अपने बेटों और बेटियों की शादी की रस्म कर रहे हैं । इतने सारे, १६,००० तरीके से संलग्न हैं वे । यही श्री कृष्ण हैं ।
हालांकि, श्री कृष्ण... जैसे, वे साधारण बच्चे की तरह अभिनय कर रहे थै । लेकिन जब माँ यशोदा उनका खुला मुंह देखना चाहती थी, की क्या उन्होंने मिट्टी खाई है, उन्होने अपने मुंह के भीतर सभी ब्रह्मांडों को दिखाया । तो यह श्री कृष्ण हैं । हालांकि वे साधारण बच्चे का अभिनय कर रहे हैं, साधारण इंसान का, लेकिन आवश्यकता पडऩे पर, वे अपनी भगवान की प्रकृति को दर्शाते है । जैसे अर्जुन की तरह । वे रथ चला रहे थे, लेकिन जब अर्जुन उनके विराट रूप को देखना चाहते थे, तुरंत उन्होंने दिखाया उसे । हजारों लाखों सिर और हथियार । यह श्री कृष्ण हैं ।
तो न यस्य कश्चित । अन्यथा श्री कृष्ण का कोई दुश्मन नहीं है । श्री कृष्ण का कोई दोस्त नहीं है । वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं । वे दुश्मन पर निर्भर नहीं करते हैं । लेकिन वे अभिनय करते हैं तथाकथित दोस्त और तथाकथित दुश्मन के लाभ के लिए । यही श्री कृष्ण हैं ... यही कृष्ण की परम प्रकृति है । जब श्री कृष्ण कृपा करते हैं दुश्मन या दोस्त बनकर, परिणाम एक ही है । इसलिए श्री कृष्ण परम हैं । बहुत बहुत धन्यवाद । भक्त: जय प्रभुपाद !