HI/730827 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 05:07, 3 December 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"हमारी आंखें, हमारे पास निमिष है, पलकें झपकती है। परंतु विष्णु की पलकें कभी नहीं झपकती। इसलिए उन्हें अनिमिष कहा जाता है। इसलिए गोपियों ने ब्रह्म की निंदा की, 'आपने हमें इन पलकों से क्यों सम्मानित किया है? (हंसी) कभी-कभी पलकें झपकती हैं। हम कृष्ण को नहीं देख पाती'। यह गोपियों की इच्छा है, वे सदैव पलकों से विचलित हुए बिना, कृष्ण को देखना चाहती हैं। यह कृष्ण भावनामृत है। पलकों का क्षण भर के लिए झपकना उनके लिए असहनीय है। यह कृष्ण भावनामृत की पूर्णता है।" |
७३०८२७ - प्रवचन-श्री.भा.०१. ०१. ०४- लंडन |