HI/690107 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690107PU-LOS_ANGELES_ND_01.mp3</mp3player>|"भगवद गीता में कहा गया है कि | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690107PU-LOS_ANGELES_ND_01.mp3</mp3player>|"भगवद गीता में कहा गया है कि यदि आपका मन नियंत्रित है, तो आपका मन सबसे अच्छा मित्र है। परंतु यदि आपका मन अनियंत्रित है, तो वह आपका सबसे बड़ा शत्रु है। हम मित्र और शत्रु, दोनों की तलाश कर रहे हैं, पर वे हमारे साथ बैठे हैं। यदि हम मन की मित्रता का उपयोग कर सकते हैं, तो हम उच्चतम आदर्श अवस्था में उत्थित हो जाते हैं। परंतु यदि हम मन को अपना शत्रु बनाते हैं, तो हमारे लिए नरक का मार्ग स्पष्ट है।"|Vanisource:690107 - Lecture Purport to Bhajahu Re Mana - Los Angeles|690107 - प्रवचन "भजहु रे मन" भजन पर व्याख्या - लॉस एंजेलेस}} |
Latest revision as of 17:02, 3 August 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"भगवद गीता में कहा गया है कि यदि आपका मन नियंत्रित है, तो आपका मन सबसे अच्छा मित्र है। परंतु यदि आपका मन अनियंत्रित है, तो वह आपका सबसे बड़ा शत्रु है। हम मित्र और शत्रु, दोनों की तलाश कर रहे हैं, पर वे हमारे साथ बैठे हैं। यदि हम मन की मित्रता का उपयोग कर सकते हैं, तो हम उच्चतम आदर्श अवस्था में उत्थित हो जाते हैं। परंतु यदि हम मन को अपना शत्रु बनाते हैं, तो हमारे लिए नरक का मार्ग स्पष्ट है।" |
690107 - प्रवचन "भजहु रे मन" भजन पर व्याख्या - लॉस एंजेलेस |