"भगवान कृष्ण का यह रूप, सभी के लिए सभी प्रकार की शुभता प्रदान करता है। भुवन-मंगलाय ध्याने स्म दर्शितम त उपासकानाम। "जो लोग आपको ध्यान में देख रहे हैं..." ध्यान का अर्थ केवल कृष्ण या विष्णु पर ध्यान केंद्रित करना है। यह ही ध्यान कहलाता है। मैं नहीं जानता... आजकल बहुत से ध्यानी हैं, किन्तु उनका कोई उद्देश्य नहीं है। वे बस कुछ अवैयक्तिक या निराकार, अप्रमेय वस्तु पर ध्यान करने का प्रयास करते हैं। और ऐसे ध्यान का भगवद गीता में तिरस्कार किया गया है, 'क्लेशो अधिकतरस तेशाम् अव्यक्तासक्त-चेतसाम्' (भ.गी. १२.५) । जो लोग उस निराकार शून्य का ध्यान करने का प्रयास कर रहे हैं, मेरे कहने का अर्थ है, वे केवल अनावश्यक परेशानी उठा रहे हैं। यदि आप ध्यान करना चाहते हैं, तो बस कृष्ण यानी परमात्मा का ध्यान करें।"
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