HI/Prabhupada 0724 - भक्ति की परीक्षा
Lecture on SB 7.9.15 -- Mayapur, February 22, 1976
यह भौतिक दुनिया भक्तों के लिए बहुत, बहुत डरावनी है । वे बहुत, बहुत ज्यादा डरते हैं । यह अंतर है । भौतिकवादी व्यक्ति, वे सोच रहे हैं "यह दुनिया बहुत लुभावनी है । हम आनंद ले रहे हैं । खाअो, पीअो, मौज करो और मजा लो । " लेकिन भक्त, वे सोचते हैं, "यह बहुत, बहुत भयानक है । कितनी जल्दी हम इसे से बाहर निकल सकते हैं ?" मेरे गुरु महाराज कहा करते थे कि "यह भौतिक दुनिया किसी भी सज्जन के लिए रहने की जगह नहीं है ।" वह कहा करते थे । "कोई सज्जन यहाँ नहीं रह सकता है ।" तो ये बाते अभक्त समझ नहीं सकते हैं, कितनी दुखदायी यह भौतिक दुनिया है । दुःखालयम...
कृष्ण कहते हैं कि यह दुःखालयम अशाश्वतम है (भ.गी. ८.१५) | यही भक्त और अभक्त के बीच का अंतर है । यह दुःखालयम, वे इसे सुखालयम बनाने के लिए योजना बना रहे हैं । यह संभव नहीं है । तो जब तक हम इस भौतिक दुनिया से निराश नहीं होते, यह समझा जा सकता है कि वह अभी तक आध्यात्मिक समझ में नहीं है । भक्ति: परेशानुभवो विरक्तिर अन्यत्र स्यात (श्रीमद भागवतम ११.२.४२) | यह भक्ति की परीक्षा है । अगर कोई भक्ति सेवा के क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है, यह भौतिक दुनिया उसे बिल्कुल सुस्वादु नहीं लगेगी । विरक्ति । अौर नहीं । अार नारे बाप ।
जगाइ-माधाइ, बहुत अधिक भौतिकवादी, महिला शिकारी, शराबी, मांस खाने वाले... तो ये चीज़े अब आम मामले बन गए हैं । लेकिन यह भक्तों के लिए बहुत, बहुत भयभीत है । इसलिए हम कहते हैं, "कोई नशा नहीं, कोई अवैध यौन सम्बन्ध नहीं, कोई मांसाहार नहीं ।" यह बहुत, बहुत भयभीत है । लेकिन वे नहीं जानते । मूढ: नाभीजानाति । वे यह नहीं जानते । वे इसमें संलग्न रहते हैं । पूरी दुनिया इस मंच पर चल रही है । उसे पता नहीं है कि वह एक बहुत, बहुत भयानक स्थिति पैदा कर रहा है इन पापी गतिविधियों में जुड़ कर । तो इन आदतों से बाहर निकलने के लिए, यह तपस्या की आवश्यकता है ।
- तपसा ब्रह्मचर्येण
- शमेन दमेन वा
- त्यागेन शौच...
- यमेन नियमेन वा
- (श्रीमद भागवतम ६.१.१३)
इसे आध्यात्मिक जीवन की उन्नति कहा जाता है, तपसा । पहली बात है तपस्या, स्वेच्छा से भौतिक दुनिया की इस तथाकथित आरामदायक स्थिति को त्यागना । यही तपस्या कहा जाता है । तपसा ब्रह्मचर्येण । और तपस्या को निष्पादित करने के लिए, पहली बात है ब्रह्मचर्य । ब्रह्मचर्य का मतलब है यौन जीवन से बचना । उसे ब्रह्मचर्य कहा जाता है ।