HI/Prabhupada 0604 - अगर मैंने जारी रखा, कृष्ण दिव्य मंच पर मुझे रखने की कृपा करेंगे

Revision as of 21:51, 3 August 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0604 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1969 Category:HI-Quotes - Lec...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

Vanisource:Lecture on SB 1.5.11 -- New Vrindaban, June 10, 1969

निवृत्त का मतलब है पहले से ही पूरी तरह से समाप्त, समाप्त । वह समाप्त क्या है? तृष्णा । तृष्णा का मतलब है उत्कंठा । जिस मनुष्य नें अपनी भौतिक उत्कंठा समाप्त कर दिया है, वे भगवान की इस दिव्य स्तुति मंत्र को जप सकते हैं । दूसरों नहीं कर सकते । जैसे हमारे संकीर्तन आंदोलन की तरह, तुम इतना परमानन्द महसूस कर रहे हो, अानन्द । तो दूसरे कहेंगे, "ये लोग क्या कर रहे हैं ? पागल अादमी, वे समाधि में हैं, नाच रहे हैं और कुछ ढोल बजा रहे हैं ।" उन्हे वे ऐसा महसूस होगा क्योंकि भौतिक आनंद के लिए उनकी उत्कंठा समाप्त नहीं हुई है । इसलिए निवृत्त । दरअसल, कृष्ण, या भगवान का यह दिव्य नाम, मुक्त अवस्था में जपा जा सकता है । इसलिए हम कहते हैं, जप करते हुए, तीन चरण हैं । अपराध सहित अवस्था, मुक्त अवस्था, और वास्तव में देवत्व से प्रेम की अवस्था । यही जप का परिपूर्ण चरण है । शुरुआत में हम अपराध सहित अवस्था में मंत्र जपते हैं - अपराध दस प्रकार के । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमें जपना नहीं चाहिए । अपराध हों तो भी, हमें जप करते रहना चाहिए । इसी जप से मुझे सब अपराधों से बाहर निकलने में मदद मिलगी । बेशक, हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम अपराध न करें । इसलिए अपराधों के दस प्रकार की यह सूची दी गई है । हमें बचने की कोशिश करनी चाहिए । और जैसे ही यह जाप अपराध रहित होता है, तो यह मुक्त अवस्था है । वह मुक्त अवस्था है । और मुक्त अवस्था के बाद, जप इतना भाता है क्योंकि यह दिव्य मंच पर है, श्री कृष्ण और भगवान के वास्तविक प्रेम का अानन्द लिया जा सकता है । लेकिन एक ही बात ... जप ... अपराध सहित अवस्था में, जप, और मुक्त अवस्था में जप... लेकिन परिपक्व अवस्था में ... जैसे रूप गोस्वामी, वे कहा करते थे कि "मैं एक जीभ के साथ क्या मंत्र जपूँ और मैं दो कानों से क्या सुनूँ ? अगर मेरे लाखों कान होते, अगर मेरे लाखों जीभ होते, तो मैं मंत्र जप सकता और सुन सकता ।" क्योंखि वे मुक्त अवस्था में हैं । लेकिन हमें निराश नहीं होना चाहिए इस वजह से । हम दृढ़ता के साथ जारी रखना चाहिए । उत्साहाद धैरियात । उत्साहात का मतलब है उत्साह के साथ और धैरयात, धैरयात का मतलब है दृढ़ता, धैर्य । उत्सहात । निश्चयात । निश्चयात का मतलब है दृढ़ संकल्प के साथ : "हाँ, मैंने जप करना शुरू कर दिया है । बेशक अपराध हैं, लेकिन अगर मैंने जारी रखा, कृष्ण दिव्य मंच पर मुझे रखने की कृपा करेंगे जब मैं अानन्द ले सकूँ कि क्या है ये हरे कृष्ण का जाप । " जैसे विश्वनाथ चक्रवर्ती नें दिया है कि अाम परिपक्व चरण और अपरिपक्व अवस्था में । अपरिपक्व अवस्था, यह कड़वा है, लेकिन वही अाम, जब यह पूरी तरह से पका जाता है, यह मीठा है, मिठास । हमें इस स्तर के लिए इंतजार करना होगा, और हमें सावधान रहना होगा कि हम अपराध न करें । तो फिर हम, निश्चित रूप से, हम आ जाएँगे । जैसे एक रोगग्रस्त रोगी की तरह, अगर वह चिकित्सक द्वारा दिए गए नियमों का अनुसरण करता है और दवा लेता है तो निश्चित रूप से वह ठीक हो जाएगा ।