HI/Prabhupada 0496 - श्रुति का मतलब है परम से सुनना
Lecture on BG 2.14 -- Germany, June 21, 1974
तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन, पूरी तरह से सब कुछ जानने के लिए है, सर्वोच्च प्राधिकारी से, कृष्ण । यह प्रक्रिया है । तद विज्ञानात्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत ( म उ १।२।१२) हमारी धारणा से परे है जो विषय उसे समझने के लिए, तुम्हे एक अधिकृत व्यक्ति के पास जाना होगा जो तुम्हे सूचित कर सकता है । ठीक उसी तरह: यह समझने के लिए कि मेरे पिता कौन हैं जो मेरी धारणा से परे है , मेरी अटकलों से परे, लेकिन अगर मैं अपनी माँ के आधिकारिक बयान को स्वीकार करता हूँ, तो यह सही ज्ञान है । तो तीन प्रकार की प्रक्रिया है समझने के लिए, या ज्ञान में अग्रिम होने के लिए । एक प्रत्यक्ष धारणा है, प्रत्यक्ष । और अगला अधिकार है, और अगला श्रुति है । श्रुति कामतलब है परम से सुनना । तो हमारी प्रक्रिया श्रुति है । श्रुति का मतलब है हम सर्वोच्च प्राधिकारी से सुनते हैं । यही हमारी प्रक्रिया है, और यह बहुत ही आसान है । सर्वोच्च प्राधिकारी, अगर वह ग़लत नहीं है ... साधारण व्यक्तियों, वे ग़लत हो सकते हैं । उन्मे दोष है । पहला दोष है: आम आदमी, वे गलती करते हैं । दुनिया का कोई भी महान व्यक्ति, तुम्हें देखा है, वे गलती करता है । और वे भ्रम में हैं । वे वास्तविकता को स्वीकार करते हैं जो वास्तविकता नहीं है । जैसे हम इस शरीर को वास्तविकता के रूप में स्वीकार हैं ।यह भ्रम कहा जाता है । लेकिन यह वास्तविकता नहीं है । "मैं आत्मा हूँ ।" यही वास्तविकता है । तो इसे भ्रम कहा जाता है । और फिर, इस भ्रामक ज्ञान के साथ, अपूर्ण ज्ञान, हम शिक्षक बन जाते हैं । यह एक और धोखा है । वे कहते हैं, ये सभी वैज्ञानिक और दार्शनिक, "शायद," "यह हो सकता है." तो तुम्हारा ज्ञान कहाँ है? "शायद." और "यह हो सकता है" क्यों तुम एक शिक्षक का पद ले रहे हो? "भविष्य में हम समझेंगे ।" और यह भविष्य क्या है? क्या तुम बाद दिनांकित चेक स्वीकार करोगे? "भविष्य में मैं पता लगाऊँगा अौर इसलिए मैं वैज्ञानिक हूँ ।" यह वैज्ञानिक क्या है? और, सब से ऊपर, इंद्रियों की हमारी अपूर्णता । वैसे ही जैसे हम एक दूसरे को देख रहे हैं क्योंकि वहाँ प्रकाश है । अगर कोई रोशनी नहीं, तो क्या मेरी देखने की शक्ति है? लेकिन ये दुष्ट वे समझते नहीं कि वे हमेशा ही उनके देखने में त्रुटि है, और फिर भी, वे ज्ञान की पुस्तकों का लेखन कर रहे हैं । उनका ज्ञान क्या है? हमें सही व्यक्ति से ज्ञान लेना चाहिए । इसलिए हम ज्ञान ले रहे हैं कृष्ण से, परम व्यक्तित्व, पूर्ण व्यक्ति । अौर वे सलाह दे रहे हैं कि अगर तुम अपने दर्द और खुशी को बंद करना चाहते हो, तो तुम्हे कुछ व्यवस्था करना होगी, यह भौतिक शरीर को स्वीकार न करके । वह सलाह दे रहे हैं, कृष्ण, कि यह भौतिक शरीर से कैसे बचा जाए । यही समझाया गया है । यह दूसरा अध्याय है । चौथा अध्याय में, कृष्ण ने कहा है कि: जन्म कर्म च मे दिव्यम् यो जानाति तत्वत: त्यक्तवा देहम पुनर जन्म नैति माम एति (भ गी ४।९) तुम केवल कृष्ण की गतिविधियों को समझने की कोशिश करो । कृष्ण की यह गतिविधियॉ इतिहास में है, महाभारत में । महाभारत का मतलब है बड़ भारत, महाभारत, इतिहास । उस इतिहास में यह भगवद गीता भी है । तो वह खुद के बारे में बात कर रहे हैं । तुम कृष्ण को समझने की कोशिश करो । यही हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । केवल कृष्ण को, कृष्ण की गतिविधियों को समझने की कोशिश करो । वह अवैयक्तिक नहीं है । जन्म कर्म मे दिव्यम । कर्म का मतलब है गतिविधियॉ । उनकी गतिविधियॉ हैं । क्यों वह इस दुनिया में भाग ले रहे हैं, गतिविधियों में? क्यों वे आते हैं?
- बेकार बेकार हाय dharmasya
- glānir bhavati भरत
- abhyutthānam adharmasya
- tadātmānaṁ sṛjāmy अहम्
- (बीजी 4.7)
उनका कुछ उद्देश्य होगा, उनका कोई मिशन होगा । तो कृष्ण और उनके मिशन और उनकी गतिविधियों को समझने की कोशिश करो । वे एक ऐतिहासिक रूप में वर्णित हैं । तो कठिनाई कहाँ है? हम इतनी सारी चीजें पढ़ते हैं, इतिहास या कुछ नेता की गतिविधियॉ, कुछ राजनीतिज्ञ । एक ही बात है, एक ही शक्ति, तुम कृष्ण को समझने के लिए इस्लमाल करते हो । कठिनाई कहां है? कृष्ण, इसलिए, वे तो कई गतिविधियों के साथ स्वयं प्रगट होते हैं ।