HI/Prabhupada 0709 - भगवान की परिभाषा
Lecture on BG 7.1 -- Bombay, January 13, 1973
भगवान । भगवान की परिभाषा है । एसा नहीं कि कोई भी बदमाश विज्ञापन करे खुद को भगवान कह के और वह भगवान बन जाता है । नहीं । पराशर मुनि, व्यासदेव के पिता, नें हमें दिया है कि भगवान का क्या मतलब है । भग का मतलब है संपन्नता, और वान का मतलब है संपन्नता जिसके पास है । वैसे ही जैसे हमारा व्यावहारिक अनुभव है । जो कोई बहुत समृद्ध है, वह आकर्षक है । वह आकर्षक हो जाता है । कई लोग उसके पास जाओ कुछ मदद के लिए । जो कोई बहुत प्रभावशाली है, वह बहुत आकर्षक हो जाता है । जो कोई बहुत प्रसिद्ध है, वह आकर्षक हो जाता है । जो बहुत कुछ पंडित है, बुद्धिमान, वह आकर्षक हो जाता है । जो कोई बहुत बुद्धिमान है, वह आकर्षक हो जाता है । और जिसने संयास जीवन स्वीकार किया है ... संयास जीवन का मतलब है जिसके पास सब कुछ है, लेकिन उसने त्याग दिया है अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करता । जैसे एक व्यक्ति जो बहुत उदार है, वह जनता को सब कुछ देता है । वह भी बहुत ही आकर्षक है । तो ये आकर्षण छह प्रकार के होते हैं । तो भगवान का मतलब है जो इन सभी आकर्षक विशेषताअों पर अधिकार रखता है , वह भगवान है . गली में घूमाता हुअा कोई बदमाश नहीं और भगवान बन जाता है. । नहीं । यह भ्रामक है । हम जानते नहीं कि भगवान शब्द का क्या मतलब है : इसलिए हम भगवान के रूप में किसी भी बदमाश को स्वीकार करते हैं । ऐश्वर्यस्य समग्रस्य । धन । बंबई शहर में कई अमीर लोग हैं, लेकिन कोई नहीं दावा कर सकता है कि "मैं सभी धन का स्वामी हूं । सभी बैंक का पैसा या बम्बई में जो पैसा है, यह मेरा पैसा है ।" कोई नहीं कह सकता । लेकिन कृष्ण कह सकते हैं । ऐश्वर्यस्य समग्रस्य । समग्र धन, कोई तुच्छ भाग नहीं । समग्र । ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य । शक्ति, प्रभाव । वीर्यस्य । यशस: , प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि । वैसे ही जैसे कृष्ण नें पांच हजार साल पहले इस भगवद गीता को कहा था, लेकिन यह अभी भी पूरी दुनिया में प्रीय है । न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में । भगवद गीता किसी भी देश में जाना जाता है, धर्म या विश्वास चाहे जो भी हो। हर कोई, कोई भी बुद्धिमान आदमी, कोई भी विद्वान, कोई भी दार्शनिक भगवद गीता पढ़ता है । इसका मतलब है कि कृष्ण इतने प्रसिद्ध हैं । हर कोई जानता है । तो ऐश्वर्यस्य । अौर जब वे उपस्थित थे, उन्होंने अपने धन का प्रदर्शन किया । नारद मुनि देखना चाहते थे कि श्री कृष्ण अपनी सोलह हजार पत्नियों को, १६०१८ पत्नियों को कैसे संभालते हैं । तो जब नारद मुनि आए, उन्होंने प्रत्येक महल में प्रवेश किया । १६०१८ महल थे, सभी संगमरमर महल, गहनों से ढके हुए । रात में बिजली या प्रकाश की कोई अावश्यक्ता नहीं थी, सभी महल इतने गहनों से ढके थे । और सज्जा हाथीदांत और सोने के बने थे । सम्पन्नता । उद्यान पारिजात पेड़ों से भरे थे । और, इतना ही नहीं है, नारद मुनि नें देखा कि कृष्ण मौजूद थे प्रत्येक पत्नी के साथ, और वे विभिन्न प्रकार के कार्योंे मे लगे हुए थे । कहीं वे अपनी पत्नी, बच्चों के साथ बैठा हुए थे । कुछ, कहीं विवाह समारोह उनके बच्चों का चल रहा था । कोई ... इतने सारे, सब । एक तरह का कार्य नहीं । तो इसे ऐश्वर्य, धन कहा जाता है । ऐसा नहीं है कि सोने के कुछ तोले रखने से, कोई भगवान हो जाता है । नहीं । भोक्तारम यज्ञ तपसाम सर्व-लोक-महेश्वरम (भ गी ५।२९) । सुहृदम.... कृष्ण घोशित करते हैं "मैं सर्वोच्च भोक्ता हूँ ।" भोक्तारम यज्ञ तपसाम सर्व-लोक-महेश्वरम । "मैं ग्रहों का मालिक हूँ ।" यही समृद्धि है । शक्ति, जहॉ तक ताकत और शक्ति का संबंध है,श्री कृष्ण जब वे तीन महीने के थे, अपनी माँ की गोद में, उन्होंने इतने सारे राक्षसों को मार डाला ।