HI/Prabhupada 0043 - भगवद् गीता मुख्य सिद्धांत है
Lecture on BG 7.1 -- Sydney, February 16, 1973
Prabhupāda:
yogaṁ yuñjan mad-āśrayaḥ asaṁśayaṁ samagraṁ māṁ yathā jñāsyasi tac chṛṇu (गीता ७. १ ) यह श्लोक भगवद गीता से हैं, कैसे कृष्ण भावनामृत जागरूकता को जागृत किया जाये। आप में से कई लोगों ने भगवद गीता का नाम सुना होगा। यह अत्यधिक पढ़े जाने वाले ज्ञान वर्धक पुस्तकों में से एक हैं। प्रत्येक देश में भगवद गीता के कई संस्करण मिल जायेंगे। अतः भगवद गीता, हमारे कृष्ण भावनामृत आन्दोलन का मूल सिधांत हैं। हम कृष्ण भावनामृत आन्दोलन के द्वारा भगवद गीता का ही प्रचार कर रहे हैं। ऐसा नहीं की हमने कुछ नया बनाया हैं। यह कृष्ण भावनामृत आन्दोलन संसार सृजन के समय से चला आ रहा हैं। किन्तु पिछले पांच हज़ार वर्षों से, जब कृष्ण इस पृथ्वी पे प्रस्तुत थे, उन्होंने स्वयं कृष्ण भावनामृत पे उपदेश दिए हैं, और वही उपदेश वे भगवद गीता में छोड़ गए हैं। दुर्भाग्यवश, इस भगवद्गीता का पंडितों और स्वामियों ने दुष्प्रयोग किया हैं। निराकारवादी, उन्होंने भगवद्गीता का अपने अनुसार अनुवाद किया हैं। जब मैं १९६६ में अमेरिका में था तब एक महिला ने मुझसे भगवद्गीता के अंग्रेजी संस्करण के विषय में पूछा था जिससे वह उसे पढ़ सके। किन्तु मैं एक भी ऐसे संस्करण के बारे में नहीं बता पाया। क्योंकि उनमे सनकी अनुवाद किये हुए थे। इस तथ्य ने मुझे भगवद्गीता यथारूप लिखने की प्रेरणा दी। और भगवद्गीता यथारूप का संस्करण मैकमिलन नामक सबसे बड़ी प्रकाशक कंपनी ने तैयार किया हैं। और हम बहुत सफल रहे हैं 1 हमने १९६८ में भगवद्गीता यथारूप का एक छोटा संस्करण प्रस्तुत किया। और इसकी बहुत बिक्री हुई। और मैकमिलन के ट्रेड प्रबंधक ने हमे बताया की हमारे किताब अधिक मात्र में बिक रहे हैं और दूसरे किताबों की बिक्री कम हो रही हैं। और १९७२ में हमने भगवद्गीता यथारूप का पूर्ण संस्करण प्रस्तुत किया। और मैकमिलन ने अग्रिम में ५०००० कॉपी प्रकाशित किये थे। किन्तु वह तीन महीने में ही बिक गए और अब वह उसके दूसरे संस्करण की व्यवस्था कर रहे हैं।