HI/690510 बातचीत - श्रील प्रभुपाद कोलंबस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Nectar Drops from Srila Prabhupada
"एतादृशि तव कृपा भगवां (च चै अन्त्य २०।१६), चैतन्य महप्रभु सिखाता है कि 'हे कृष्ण, तुम इतने दयालु हो कि तुम मेरे पास ध्वनि कंपन, शब्द,'कृष्ण' में आ गए हो। मैं बहुत आसानी से जप कर सकता हूं, और तुम मेरे साथ बने रहो। लेकिन मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मैं भी इस'के लिए कोई आकर्षण नहीं है। तुम लोग कहो,'तुम जाप कृष्ण; तुम सब कुछ मिलता है'। वे इस पर विश्वास नहीं करेंगे। अगर आप कहते हैं,'आप अपनी नाक दबाते हैं। तुम मुझे ५० डॉलर भुगतान करते हैं। मैं तुंहें कुछ अच्छा मंत्र देता हूं और यह, कि। तुम इस तरह अपना सिर बनाओ, (हँसी) टाँगें इस तरह, "ओह, " वह कहती हूँ,' यहाँ कुछ है'। तो,(व्यंग्य)' और यह वाव कहता है,'बस जाप कृष्ण'। ओह, यह क्या है?' त्यस गुरुदेवजी महाप्रभु ने कहा, एतद्र्स्हि तव क्रिप भगवां ममपि दुर्दैव (च चै अन्त्य २०।१६):'लेकिन मैं इतना दुर्भाग्यपूर्ण हूं कि आप इस युग में इतनी आसानी से उपलब्ध हो गए हैं, लेकिन मैं इतना दुर्भाग्यपूर्ण हूं, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता'। तो कृष्ण चेतना इतनी आसानी से वितरित की जा रही है, लेकिन वे इतने दुर्भाग्यपूर्ण हैं, वे स्वीकार नहीं कर सकते हैं। बस देखते हैं। और तुम उंहें धोखा देते हैं, तो आप उंहें,'आह, हां, आपका स्वागत है, धंयवाद। हां"
690510 - Conversation - Columbus