HI/Prabhupada 0187 - हमेशा चमकदार रोशनी में रहो
Lecture on SB 2.8.7 -- Los Angeles, February 10, 1975
तो यह अज्ञानता चल रही है । इसलिए भविष्य के मार्गदर्शन के लिए, परिक्षित महाराज ने यह सवाल पूछा, कि जीव को यह शरीर कैसे मिला, भौतिक शरीर? स्वचालित रूप से, कारण के बिना, या कारण के साथ? " लेकिन कारण के साथ ... यह समझाया जाएगा । यह नहीं है ... जब कारण है ... जैसे अगर तुम कुछ रोग संक्रमित करो, तो स्वचालित रूप से तुम उस रोग से पीड़ित होगे । यह स्वतः ही आ जाएगा । यह स्वचालित रूप से है । लेकिन तुम्हारा संक्रमित होना, यही कारण है । तो अगर तुम सतर्क हो जाते हो संक्रमित न होने के लिए, तो निम्न जन्म या दुख से तुम बच सकते हो । इसलिए हमने यह समाज को शुरू किया है, समाज । सोसाइटी का मतलब है कि तुम्हे यहाँ उन्नति करने का कारण मिल जाएगा । जैसे बहुत सारे समाज हैं, पुरुषों का समान वर्ग । "एक ही पंख के पक्षी एक साथ रहते हैं ।" तो यहाँ एक समाज है । यहाँ कौनसा झुंड अाएगा? यहाँ कौन आएगा? क्योंकि यह समाज मुक्ति के लिए है ... लोग जीवन की भौतिक हालत के कारण इतने पीड़ित हैं । कोई खुश नहीं है । यह एक तथ्य है । लेकिन क्योंकि वे अज्ञान में हैं , वे खुशी के रूप में दुख को स्वीकार कर रहे हैं । यही माया कहा जाता है ।
यही माया कहा जाता है । यन मैथुनादि-ग्रहमेधि-सुखम हि तुच्छम (श्रीमद भागवतम ७.९.४५)| | यह माया मैथुन जीवन में बहुत प्रकट है । वे समझते हैं कि यौन जीवन बहुत अच्छा है लेकिन उसके बाद, तो कई कठिनाइयाँ हैं । कानूनी या अवैध, कोई बात नहीं है । कानूनी तकलीफ या अवैध तकलीफ, लेकिन यह संकट है । हम में से हर एक, हम जानते हैं । इसलिए, सब कुछ ... एक बुरे सौदे का सबसे अच्छा उपयोग करने के लिए । हमें यह भौतिक शरीर मिला है । कारण तो था । कारण तो था क्योंकि हम आनंद लेना चाहते थे और श्री कृष्ण की सेवा करना हमें पसंद नहीं था । यह कारण है । कृष्ण-बिरमुख हया भोग वान्छा करे । हम कृष्ण की सेवा कर रहे हैं । हमारी यही है, मेरा मतलब है, जगह, संवैधानिक स्थिति, कृष्ण की सेवा करने के लिए, लेकिन कभी कभी हम इच्छा करते हैं: "क्यों मैं कृष्ण की सेवा करूँ? क्यों मैं आध्यात्मिक गुरु की सेवा करूँ? मैं आनंद करूँगा । मैं आनंद करूँगा ।"
लेकिन वह आनंद कृष्ण की सेवा में था, लेकिन वह कृष्ण से स्वतंत्र होकर अानन्द पाना चाहता था । यही पतन का कारण है । कृष्ण के साथ, तुम बहुत अच्छी तरह से अानन्द कर सकते हो । तुमने चित्र देखा है, कृष्ण के साथ गोपियों अच्छी तरह नाच रही हैं, आनंद ले रही हैं, कैसे चरवाहे लड़के आनंद ले रहे, खेल रहे हैं । कृष्ण के साथ, यही तम्हारा असली आनंद है । लेकिन कृष्ण के बिना, तुम आनंद लेना चाहते हो, यह माया है । यही माया है । तो माया हमेशा वहाँ है, और हम ... क्योंकि जब तक वहाँ अंधेरा न हो, तुम चमक की गुणवत्ता की सराहना नहीं कर सकते हो ; इसलिए कृष्ण नें अंधेरा बनाया है, माया भी, तो तुम उस चमक की सराहना कर सकते हो । दो बातें आवश्यक हैं । चमक के बिना, अंधेरे की सराहना नहीं की जा सकती है, और अंधकार ... अंधेरे के बिना, चमक की सराहना नहीं की जा सकती है ।
दो चीजें हैं, साथ साथ । वैसे ही जैसे वहाँ सूरज की रोशनी है, और इस तरफ से छाया, साथ साथ । तुम छाया में रह सकते हो, तुम धूप में रह सकते हो । यह तुम्हारा चुनाव है । अगर हम अंधेरे में रहें, तो हमारा जीवन दुखी रहता है, और अगर हम प्रकाश में रहते हैं, तो 'चमक ... इसलिए वैदिक साहित्य हमें निर्देश देता है, तमसि मा: "अंधेरे में मत रहो ।" ज्योतिर गम: "प्रकाश को जाओ ।" तो यह प्रयास, कृष्ण भावनामृत आंदोलन, अंधकार से प्रकाश में लोगों को लाने का एक प्रयास है । तो इस अवसर का दुरुपयोग न करो । किसी भी तरह से, तुम इस आंदोलन के साथ संपर्क में आए हो । इसका सही उपयोग करो । अंधकार को मत जाओ । हमेशा चमकदार रोशनी में रहो ।
बहुत बहुत धन्यवाद ।