HI/Prabhupada 0231 - भगवान का मतलब है जो पूरे ब्रह्मांड के मालिक हैं

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Lecture on BG 2.1-5 -- Germany, June 16, 1974

तो कृष्ण अधिकारियों द्वारा स्वीकार किए जाते हैं भगवान, या देवत्व के परम व्यक्तित्व के रूप में । और भगवान क्या हैं? भगवान का मतलब है जो पूरी तरह से छह ऐश्वर्य से सुसज्जित है । पूरी तरह से सभी ऐश्वर्यों से लैस का मतलब है भगवान सबसे अमीर व्यक्तित्व हैं । कितने अमीर हैं भगवान यह हम समझ सकते हैं, कि हम कुछ एकड़ जमीन पर गर्व करते हैं, और भगवान का मतलब है जो पूरे ब्रह्मांड के मालिक हैं । इसलिए वे सबसे अमीर माने जाते हैं । इसी तरह, वे सबसे बलवान माने जाते हैं । और इसी तरह, वे सबसे बुद्धिमान माने जाते हैं । और इसी प्रकार, वे सबसे सुंदर व्यक्तित्व हैं । इस तरह से , जब तुम पाअो किसी व्यक्ति को सबसे बलवान, सबसे बुद्धिमान, सबसे सुंदर, सबसे अमीर - इस तरह से जब तुमको कोई मिलता है , वही भगवान हैं । तो जब कृष्ण इस ग्रह पर मौजूद थे उन्होंने साबित किया इन सभी ऐश्वर्यां को जो उनकी हैं । मान लो, उदाहरण के लिए, हर कोई शादी करता है, लेकिन कृष्ण, परम व्यक्ति होने के नाते, उन्होंने १६,१०८ महिलाओं से शादी की । लेकिन एसा नहीं है कि वे सोलह हजार पत्नियों के लिए एक पति बने रहे । उन्होंने व्यवस्था बनाई विभिन्न महलों में सोलह हजार पत्नियों को उपलब्ध कराने के लिए । प्रत्येक महल, वहाँ वर्णित है, वे बने थे प्रथम श्रेणी के संगमरमर पत्थर से और फर्नीचर बना था हाथी दांत से और बैठने की जगह बहुत अच्छी, नरम कपास से बनी थी । इस तरह से वर्णन है । और बाहर का परिसर, कई फूल के पेड़ हैं । इतना ही नहीं, उन्होंने खुद का विस्तार किया सोलह हजार में, व्यक्तिगत विस्तार । और वे प्रत्येक पत्नी के साथ उस तरह से रह रहे थे । तो यह भगवान के लिए बहुत मुश्किल काम नहीं है । भगवान हर जगह मौजूद है एसा कहा जाता है । तो यदि हमारी दृष्टि के भीतर, अगर वे सोलह हजार घरों में स्थित हैं, इसमें उनके लिए कठिनाई क्या है? तो यहाँ यह कहा गया है, श्री भगवान उवाच । सबसे शक्तिशाली अधिकारी बोल रहे हैं । इसलिए, जो भी वे कहते हैं, यह सच के रूप में मान लिया जाना चाहिए । हमारे इस सशर्त जीवन में, जैसे कि हम भौतिक शर्तों के तहत रह रहे हैं, हमारे चार दोष हैं: हम गलती करते हैं, हम भ्रमित होते हैं, और हम धोखा भी देना चाहते हैं, और हमारी इन्द्रियॉ अपूर्ण हैं । तो जो ज्ञान एसे व्यक्ति से प्राप्त किया जाता है जो ये कमियॉ रखता है वह पूर्ण नहीं है । तो जब तुम ज्ञान प्राप्त करते हो एक एसे व्यक्ति से जो इन सभी दोषों से उत्कृष्ट है, यह पूर्ण ज्ञान है । आधुनिक वैज्ञानिक, वे कहते हैं कि "ऐसा हो सकता है, वैसा हो सकता है," लेकिन यह पुर्ण ज्ञान नहीं है । तो अगर तुम अपने अपूर्ण इंद्रियों के साथ अटकलें करोगे, तो उस ज्ञान का मूल्य क्या है? यह आंशिक ज्ञान हो सकता है, लेकिन यह पूर्ण ज्ञान नहीं है । इसलिए ज्ञान प्राप्त करने की हमारी प्रक्रिया है सही व्यक्ति से इसे प्राप्त करना । और इसलिए हम कृष्ण, भगवान, से ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं, सबसे सही, अौर इसलिए हमारा ज्ञान परिपूर्ण है । जैसे एक बच्चे की तरह । वह अपूर्ण हो सकता है, लेकिन अगर उसके पिता कहते हैं, " मेरे प्यारे बच्चे, यह तमाशा कहा जाता है," तो अगर बच्चा बोलता है "यह तमाशा है," तो वह ज्ञान परिपूर्ण है । क्योंकि बच्चा ज्ञान का पता लगाने के लिए शोध नहीं करता है । वह अपने पिता या मां से पूछता है, " पिताजी, यह क्या है? यह क्या है, माँ?" और माँ कहती है, "मेरे प्यारे बच्चे, यह यह है ।" एक और उदाहरण दिया जा सकता है कि अगर एक बच्चा, बचपन में, नहीं वह नहीं जानता है कि उसके पिता कौन हैं, फिर वह शोध कार्य नहीं कर सकता है । अगर वह शोध कार्य करता है अपने पिता का पता लगाने के लिए , वह अपने पिता का कभी पता नहीं लगा सकता है । लेकिन अगर वह अपनी मां से पूछता है "कौन हैं मेरे पिता?" और मां कहती है, "वे तुम्हारे पिता हैं ।" यह सही है । इसलिए ज्ञान, परमेश्वर का ज्ञान, जो हमारी इन्द्रिय धारणा से परे है, कैसे तुम पता कर सकते हो? इसलिए तुम्हे भगवान से खुद या उनके प्रतिनिधि से पता करना होगा । तो यहाँ कृष्ण, देवत्व के परम व्यक्तित्व, बोल रहे हैं, और यह निर्णायक प्राधिकरण है । वे इस प्रकार से अर्जुन को कहते हैं । वे कहते हैं : अशोचयन अन्वशोचस त्वम प्रज्ञ-वादाम्स च भाशसे (भ गी २।११) हैं "मेरे प्रिय अर्जुन, तुम बहुत सीखे विद्वान की तरह बात कर रहे हो, लेकिन तुम उस विषय पर विलाप कर रहे हो जिसपर तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिए ।" गतासून अगतासून च नानुशौचन्ति पंडित: । गतासून का मतलब है यह शरीर । जब यह जिंदा है या जब वह मर चुका है, जीवन की शारीरिक अवधारणा मूर्खता है । तो कोई विद्वान व्यक्ति शरीर को गंभीरता से नहीं लेता है । इसलिए वैदिक साहित्य में यह कहा जाता है कि "जीवन की शारीरिक अवधारणा में है जो व्यक्ति, वह एक जानवर से ज्यादा कुछ नहीं है ।" इसलिए वर्तमान समय में, स्वयं के ज्ञान के बिना, पूरी दुनिया जीवन की शारीरिक अवधारणा के तहत चल रही है । जीवन की शारीरिक अवधारणा जानवरों के बीच भी है । बिल्लि और कुत्ते, वे बहुत गर्व करते हैं बड़ी बिल्ली या बड़ा कुत्ता बनने पर । इसी तरह अगर एक आदमी भी गर्व करता है , "मैं बड़ा अमेरिकी हूँ" "बड़ा जर्मन," "बड़ा" क्या फर्क है? लेकिन यही वास्तव में हो रहा है, और इसलिए वे बिल्लियों और कुत्तों की तरह लड़ रहे हैं ।

तो हम कल अधिक चर्चा करेंगे ।