HI/BG 18.42

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His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 42

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शब्दार्थ

शम:—शान्तिप्रियता; दम:—आत्मसंयम; तप:—तपस्या; शौचम्—पवित्रता; क्षान्ति:—सहिष्णुता; आर्जवम्—सत्यनिष्ठा; एव—निश्चय ही; च—तथा; ज्ञानम्—ज्ञान; विज्ञानम्—विज्ञान; आस्तिक्यम्—धाॢमकता; ब्रह्म—ब्राह्मण का; कर्म—कर्तव्य; स्वभाव-जम्—स्वभाव से उत्पन्न, स्वाभाविक।

अनुवाद

शान्तिप्रियता, आत्मसंयम, तपस्या, पवित्रता, सहिष्णुता, सत्यनिष्ठा, ज्ञान,विज्ञान तथा धार्मिकता – ये सारे स्वाभाविक गुण हैं, जिनके द्वारा ब्राह्मण कर्मकरते हैं |