BH/Prabhupada 1059 - जैसे ही केहू भगवान के भगत बने ला , ओकर: Difference between revisions
(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Bhojpuri Pages with Videos Category:Prabhupada 1059 - in all Languages Category:BH-Quotes - 1966 Category:BH-Quotes -...") |
(Vanibot #0019: LinkReviser - Revised links and redirected them to the de facto address when redirect exists) |
||
Line 10: | Line 10: | ||
[[Category:Bhojpuri Language]] | [[Category:Bhojpuri Language]] | ||
<!-- END CATEGORY LIST --> | <!-- END CATEGORY LIST --> | ||
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | |||
{{1080 videos navigation - All Languages|Bhojpuri|BH/Prabhupada 1058 - भगवद गीता के प्रवचन भगवान श्री कृष्ण कईले बानीं|1058|BH/Prabhupada 1060 - जब तक ले भगवद गीता के आदर के साथ स्वीकार ना कईल जाव...|1060}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK--> | <!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK--> | ||
<div class="center"> | <div class="center"> | ||
Line 22: | Line 25: | ||
<!-- BEGIN AUDIO LINK --> | <!-- BEGIN AUDIO LINK --> | ||
<mp3player> | <mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/660219BG-NEW_YORK_clip03.mp3</mp3player> | ||
<!-- END AUDIO LINK --> | <!-- END AUDIO LINK --> | ||
Line 43: | Line 46: | ||
:असितो देवलो व्यासः | :असितो देवलो व्यासः | ||
:स्वयं चैव ब्रवीसि मे | :स्वयं चैव ब्रवीसि मे | ||
:([[Vanisource:BG 10.12-13|भ गी १०.१३]]) | :([[Vanisource:BG 10.12-13 (1972)|भ गी १०.१३]]) | ||
:सर्वं एतद ऋतम मन्ये | :सर्वं एतद ऋतम मन्ये | ||
Line 49: | Line 52: | ||
:न हि ते भगवन व्यक्तिम | :न हि ते भगवन व्यक्तिम | ||
:विदुर्देवा न दानवाः | :विदुर्देवा न दानवाः | ||
:([[Vanisource:BG 10.14|भ गी १०.१४]]) | :([[Vanisource:BG 10.14 (1972)|भ गी १०.१४]]) | ||
गीता सुनला के बाद अर्जुन भगवान से कहतारन , कि अर्जुन भगवान के परम ब्रह्म या 'सर्वोपरि ब्रह्म' का रूप में स्वीकार कर लेहलन . ब्रह्म . हर एक प्राणी ब्रह्म ह , लेकिन सबसे श्रेष्ठ प्राणी, या सर्वोपरि भगवान परम ब्रह्म हवन . तब , परम धाम . सब चीज के अंतिम शान्ति के जगह परम धाम कहल जाला . पवित्रं . पवित्रम के मतलब जे भगवान के ऊपर कवनो भौतिक गन्दगी के असर नईखे . उनका के पुरुषं भी कहल बा . पुरुषम के अर्थ ह सबसे बड़ा आनंद के भोग करे वाला ; शाश्वतं , शाश्वत मतलब जे शुरू से बा. भगवान सृष्टी के पहिला आदमी बानीं ; दिव्यम , दिव्य या अलौकिक ; देवम , भगवान स्वयं ; अजम , जेकर कबहू जनम ना भईल होखे ; विभुम , सबसे बड़ा . केहू का शक हो सकता , कि कृष्ण त अर्जुन के मित्र रहलन , एही कारन इ सब बात उ अपना साथी के बता दिहलन . लेकिन अर्जुन , गीता पढ़े वाला के माथा से इ सब शक भगावे खातिर , एह सिद्धांत के मुनि आ महात्मा के उदाहरन से कहलन . अर्जुन कहत बाडन जे , श्रीकृष्ण के भगवान के रूप में स्वीकार खाली अर्जुन ही अपने, नईखन करत , आउर महात्मा लोग भी जईसे नारद , असित , देवल , व्यास भी मनले बा लोग . वैदिक ज्ञान के प्रचार खातिर इ लोग विद्वान आ बहुत बड़ा महात्मा मानल जाला . एह लोग के लोहा सब आचार्य लोग मनले बा. एही से अर्जुन कहत बाडन कि " अभी तक अपने जे भी हमारा से कहले बानीं , ओह के हम पूर्ण सत्य का रूप में स्वीकार करत बानीं . " | गीता सुनला के बाद अर्जुन भगवान से कहतारन , कि अर्जुन भगवान के परम ब्रह्म या 'सर्वोपरि ब्रह्म' का रूप में स्वीकार कर लेहलन . ब्रह्म . हर एक प्राणी ब्रह्म ह , लेकिन सबसे श्रेष्ठ प्राणी, या सर्वोपरि भगवान परम ब्रह्म हवन . तब , परम धाम . सब चीज के अंतिम शान्ति के जगह परम धाम कहल जाला . पवित्रं . पवित्रम के मतलब जे भगवान के ऊपर कवनो भौतिक गन्दगी के असर नईखे . उनका के पुरुषं भी कहल बा . पुरुषम के अर्थ ह सबसे बड़ा आनंद के भोग करे वाला ; शाश्वतं , शाश्वत मतलब जे शुरू से बा. भगवान सृष्टी के पहिला आदमी बानीं ; दिव्यम , दिव्य या अलौकिक ; देवम , भगवान स्वयं ; अजम , जेकर कबहू जनम ना भईल होखे ; विभुम , सबसे बड़ा . केहू का शक हो सकता , कि कृष्ण त अर्जुन के मित्र रहलन , एही कारन इ सब बात उ अपना साथी के बता दिहलन . लेकिन अर्जुन , गीता पढ़े वाला के माथा से इ सब शक भगावे खातिर , एह सिद्धांत के मुनि आ महात्मा के उदाहरन से कहलन . अर्जुन कहत बाडन जे , श्रीकृष्ण के भगवान के रूप में स्वीकार खाली अर्जुन ही अपने, नईखन करत , आउर महात्मा लोग भी जईसे नारद , असित , देवल , व्यास भी मनले बा लोग . वैदिक ज्ञान के प्रचार खातिर इ लोग विद्वान आ बहुत बड़ा महात्मा मानल जाला . एह लोग के लोहा सब आचार्य लोग मनले बा. एही से अर्जुन कहत बाडन कि " अभी तक अपने जे भी हमारा से कहले बानीं , ओह के हम पूर्ण सत्य का रूप में स्वीकार करत बानीं . " | ||
<!-- END TRANSLATED TEXT --> | <!-- END TRANSLATED TEXT --> |
Latest revision as of 21:42, 8 June 2018
660219-20 - Lecture BG Introduction - New York
भगवान के भगत बनते ही, ओह आदमी के , भगवान के संगे विशेष सम्बन्ध हो जाला . इ बहुत बड़ा विषय बा, लेकिन थोरे में बूझल जा सकता कि भगत भगवान के साथ पांच तरह से सम्बन्ध बना सकता . केहू चुप चाप भगत बन सकता , केहू उनकर सेवा कर के भगत बन सकता , केहू भगत भगवान के सखा बन सकता , केहू भगवान के, पिता के रूप में भक्ति कर सकता , केहू त उनकर प्रेमी भी बन सकता . त , अर्जुन के भगवान के साथे मित्र के सम्बन्ध रहे . भगवान सखा भी बन सकत बानीं . इ ठीक बा कि , सांसारिक दोस्ती, आ भगवान के साथे दोस्ती में अंतर बा , दोनों के बीच बहुत अंतर बा . इ एगो दिव्य मित्रता ह जे ... भगवान का साथ सब का नईखे हो सकत . सब लोग के, भगवान से एक विशेष सम्बन्ध बा आ , उ सम्बन्ध भक्ति के तरीका में पूर्णता पर निर्भर करे ला . अभी के हालत में हमनीं के केवल भगवान के भुला नईखीं गईल , उनका साथ आपन शाश्वत सम्बन्ध भी भुला गईल बानीं सन . हर आदमी के करोडो अरबो योनी में भटकला के बाद , भगवान के साथ के एक विशेष शाश्वत सम्बन्ध बन जाला . एही के स्वरुप कहल जाला . स्वरुप . आ, भक्ति के रास्ता से ओह स्वरुप के अनुभव कईल जा सकता . एह स्थिति के स्वरुप सिद्धि कहल जाला , अपना असली रूप के पूर्णता . त , अर्जुन भगत रहलन , आ भगवान से उनकर मित्रता के सम्बन्ध रहे . भगवद गीता के उपदेश अर्जुन के कईल गईल, त उ एह के कवना रूप में स्वीकार कईलन ? एह पर धियान देबे के चाहीं . अर्जुन भगवद गीता के कैसे स्वीकार कईलन, इ बात भगवद गीता के दसवाँ अध्याय में लीखल बा . जईसे :
- अर्जुन उवाच
- परं ब्रह्म परं धाम
- पवित्रं परमम् भवान
- पुरुषं शाश्वतं दिव्यं
- आदि देवं अजं विभुं
- ( भ गी १०.१२)
- आहुस्त्वाम ऋषयः सर्वे
- देवर्षिः नारदस्तथा
- असितो देवलो व्यासः
- स्वयं चैव ब्रवीसि मे
- (भ गी १०.१३)
- सर्वं एतद ऋतम मन्ये
- यं माम वदसि केशव
- न हि ते भगवन व्यक्तिम
- विदुर्देवा न दानवाः
- (भ गी १०.१४)
गीता सुनला के बाद अर्जुन भगवान से कहतारन , कि अर्जुन भगवान के परम ब्रह्म या 'सर्वोपरि ब्रह्म' का रूप में स्वीकार कर लेहलन . ब्रह्म . हर एक प्राणी ब्रह्म ह , लेकिन सबसे श्रेष्ठ प्राणी, या सर्वोपरि भगवान परम ब्रह्म हवन . तब , परम धाम . सब चीज के अंतिम शान्ति के जगह परम धाम कहल जाला . पवित्रं . पवित्रम के मतलब जे भगवान के ऊपर कवनो भौतिक गन्दगी के असर नईखे . उनका के पुरुषं भी कहल बा . पुरुषम के अर्थ ह सबसे बड़ा आनंद के भोग करे वाला ; शाश्वतं , शाश्वत मतलब जे शुरू से बा. भगवान सृष्टी के पहिला आदमी बानीं ; दिव्यम , दिव्य या अलौकिक ; देवम , भगवान स्वयं ; अजम , जेकर कबहू जनम ना भईल होखे ; विभुम , सबसे बड़ा . केहू का शक हो सकता , कि कृष्ण त अर्जुन के मित्र रहलन , एही कारन इ सब बात उ अपना साथी के बता दिहलन . लेकिन अर्जुन , गीता पढ़े वाला के माथा से इ सब शक भगावे खातिर , एह सिद्धांत के मुनि आ महात्मा के उदाहरन से कहलन . अर्जुन कहत बाडन जे , श्रीकृष्ण के भगवान के रूप में स्वीकार खाली अर्जुन ही अपने, नईखन करत , आउर महात्मा लोग भी जईसे नारद , असित , देवल , व्यास भी मनले बा लोग . वैदिक ज्ञान के प्रचार खातिर इ लोग विद्वान आ बहुत बड़ा महात्मा मानल जाला . एह लोग के लोहा सब आचार्य लोग मनले बा. एही से अर्जुन कहत बाडन कि " अभी तक अपने जे भी हमारा से कहले बानीं , ओह के हम पूर्ण सत्य का रूप में स्वीकार करत बानीं . "