BH/Prabhupada 1069 - धरम से विश्वास के पता चल जाला . धरम बदल सकता, लेकिन सनातन धरम नईखे बदल सकत: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Bhojpuri Pages with Videos Category:Prabhupada 1069 - in all Languages Category:BH-Quotes - 1966 Category:BH-Quotes -...")
 
(Vanibot #0019: LinkReviser - Revised links and redirected them to the de facto address when redirect exists)
 
Line 10: Line 10:
[[Category:Bhojpuri Language]]
[[Category:Bhojpuri Language]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Bhojpuri|BH/Prabhupada 1068 - प्रकृति तीन गुण के जईसन , आदमी के काम भी तीन तरह के होला|1068|BH/Prabhupada 1070 - सेवा करल, प्राणी के चिरंतन धरम ह|1070}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 22: Line 25:


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>File:660220BG-NEW_YORK_clip13.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/660220BG-NEW_YORK_clip13.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 30: Line 33:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
एही से , सनातन -धर्म , जैसे पहिले बतावल बा , भगवान सनातन हईं , आध्यात्मिक आकाश का ऊपर उनकर धाम भी सनातन ह . आ, सब जीवित प्राणी भी सनातन . एही कारण से सनातन भगवान का साथे सनातन प्राणी के संग , सनातन धाम में हो जाव, इहे मनुष्य जीवन के असली उद्देश्य ह . भगवान प्राणी पर असीम दयालु हईं सभे प्राणी भगवान के सन्तान कहाला . भगवान के घोषणा ह कि - सर्व योनिषु कौन्तेय मूर्तयो: संभवन्ति याः ([[Vanisource:BG 14.4|भ गी १४.४]]) . सभे प्राणी , सब तरह के प्राणी ... अपना अपना करम के जईसन अलगा अलगा तरह के प्राणी होखेलन , भगवान के घोषणा ह कि उ सब प्राणी के पिता हवन , आ, एही से भगवान अवतार ले के एह संसार में ओह भुलाईल जीव के याद करावे खातिर आइले कि सनातन धाम , सनातन आकाश में चल लोग , जेह से जीव , भगवान का संगत में अपना स्वाभाविक शाश्वत हालत में हो जाव . उ खुदे कई तरह के अवतार लेबेलन . जीव खातिर , अपना विश्वासी सेवक के , बेटा , साथी या आचार्य का रूप में भेज देबेलन . एही कारण से सनातन धरम कवनो सम्प्रदाय या समूह खातिर ना ह . इ भगवान के साथ जीव के शाश्वत सम्बन्ध के परिचय ह . सनातन धरम के के मतलब ह , जीव के असली पेशा . सनातन शब्द के मतलब श्रीपाद रामानुजाचार्य बतावले बानी कि "जवना के कवनो ना ओर बा न अंत बा ." आ जब सनातन धरम के बात होखे त बूझ लेबे के चाहीं जे श्रीपाद रामानुजाचार्य के आदेश से एह कर, ना त शुरुआत बा, ना अंत . रेलिजन शब्द , धरम से थोड़ा अलग बा . रिलीजन से विश्वास के पता चलेला . विश्वास त कबहूँ बदल सकता . केहू का एक तरीका में विश्वास हो सकता , उ बदल के दोसरा तरीका में हो सकता . लेकिन जे बदले ना , उ चीज सनातन ह. जे कबहूँ बदले ना . जैसे पानी में द्रव के गुण बा . पानी से द्रव के गुण निकल नईखे सकत . गरमी आ आग . आगी में से गरमी अलगा नईखे हो सकत . ओही तरीका से , शाश्वत जीव के शाश्वत काम से अलगा नईखे कईल जा सकत . बदलल सम्भव नईखे . हमनी के पता करे के बा जे शाश्वत प्राणी के शाश्वत काम का ह . जब सनातन धरम के बात होता , त साफ़ साफ़ जाने के चाहीं जे श्रीपाद रामानुजाचार्य जी का आदेश से कि एकर ना त शुरुआत बा ना अंत . एह चीज के अंत नईखे , शुरुआत नईखे , इ कवनो सम्प्रदाय खातिर नईखे , एह के कवनो सीमा नईखे . जब सनातन धरम पर कवनो सभा होला , त, छोट छोट सम्प्रदाय के माने वाला लोग , गलती से बूझ जाला जे हमनी के कवनो सम्प्रदाय के बात करत बानी सन . लेकिन अगर मामला के तनी गंभीरता से देखल जाव , आ सब चीज के आधुनिक विज्ञान से सोचल जाव , त पता चल जाई जे सनातन धरम काम ह , संसार के सब लोग के , सब जीव के ब्रह्माण्ड के सब प्राणी के . आदमी के ,अ-सनातन धरम के शुरू आ अंत हो सकता , लेकिन सनातन धरम के कवनो इतिहास नईखे हो सकत, काहे कि इ हमेशा प्राणी का साथ रहेला . जहां तक प्राणी लोग के बात बा , शास्त्र से पता चलेला कि जीव के कवनो जनम चाहे मृत्यु ना होला . भगवद गीता में साफ़ कहल बा जीव के जनम ना होला, ओकर मरण भी ना होला . उ शाश्वत ह, अविनाशी ह , आ एह नश्वर शरीर के छूट गाईला पर भी उ ज़िंदा रहेला .
एही से , सनातन -धर्म , जैसे पहिले बतावल बा , भगवान सनातन हईं , आध्यात्मिक आकाश का ऊपर उनकर धाम भी सनातन ह . आ, सब जीवित प्राणी भी सनातन . एही कारण से सनातन भगवान का साथे सनातन प्राणी के संग , सनातन धाम में हो जाव, इहे मनुष्य जीवन के असली उद्देश्य ह . भगवान प्राणी पर असीम दयालु हईं सभे प्राणी भगवान के सन्तान कहाला . भगवान के घोषणा ह कि - सर्व योनिषु कौन्तेय मूर्तयो: संभवन्ति याः ([[Vanisource:BG 14.4 (1972)|भ गी १४.४]]) . सभे प्राणी , सब तरह के प्राणी ... अपना अपना करम के जईसन अलगा अलगा तरह के प्राणी होखेलन , भगवान के घोषणा ह कि उ सब प्राणी के पिता हवन , आ, एही से भगवान अवतार ले के एह संसार में ओह भुलाईल जीव के याद करावे खातिर आइले कि सनातन धाम , सनातन आकाश में चल लोग , जेह से जीव , भगवान का संगत में अपना स्वाभाविक शाश्वत हालत में हो जाव . उ खुदे कई तरह के अवतार लेबेलन . जीव खातिर , अपना विश्वासी सेवक के , बेटा , साथी या आचार्य का रूप में भेज देबेलन . एही कारण से सनातन धरम कवनो सम्प्रदाय या समूह खातिर ना ह . इ भगवान के साथ जीव के शाश्वत सम्बन्ध के परिचय ह . सनातन धरम के के मतलब ह , जीव के असली पेशा . सनातन शब्द के मतलब श्रीपाद रामानुजाचार्य बतावले बानी कि "जवना के कवनो ना ओर बा न अंत बा ." आ जब सनातन धरम के बात होखे त बूझ लेबे के चाहीं जे श्रीपाद रामानुजाचार्य के आदेश से एह कर, ना त शुरुआत बा, ना अंत . रेलिजन शब्द , धरम से थोड़ा अलग बा . रिलीजन से विश्वास के पता चलेला . विश्वास त कबहूँ बदल सकता . केहू का एक तरीका में विश्वास हो सकता , उ बदल के दोसरा तरीका में हो सकता . लेकिन जे बदले ना , उ चीज सनातन ह. जे कबहूँ बदले ना . जैसे पानी में द्रव के गुण बा . पानी से द्रव के गुण निकल नईखे सकत . गरमी आ आग . आगी में से गरमी अलगा नईखे हो सकत . ओही तरीका से , शाश्वत जीव के शाश्वत काम से अलगा नईखे कईल जा सकत . बदलल सम्भव नईखे . हमनी के पता करे के बा जे शाश्वत प्राणी के शाश्वत काम का ह . जब सनातन धरम के बात होता , त साफ़ साफ़ जाने के चाहीं जे श्रीपाद रामानुजाचार्य जी का आदेश से कि एकर ना त शुरुआत बा ना अंत . एह चीज के अंत नईखे , शुरुआत नईखे , इ कवनो सम्प्रदाय खातिर नईखे , एह के कवनो सीमा नईखे . जब सनातन धरम पर कवनो सभा होला , त, छोट छोट सम्प्रदाय के माने वाला लोग , गलती से बूझ जाला जे हमनी के कवनो सम्प्रदाय के बात करत बानी सन . लेकिन अगर मामला के तनी गंभीरता से देखल जाव , आ सब चीज के आधुनिक विज्ञान से सोचल जाव , त पता चल जाई जे सनातन धरम काम ह , संसार के सब लोग के , सब जीव के ब्रह्माण्ड के सब प्राणी के . आदमी के ,अ-सनातन धरम के शुरू आ अंत हो सकता , लेकिन सनातन धरम के कवनो इतिहास नईखे हो सकत, काहे कि इ हमेशा प्राणी का साथ रहेला . जहां तक प्राणी लोग के बात बा , शास्त्र से पता चलेला कि जीव के कवनो जनम चाहे मृत्यु ना होला . भगवद गीता में साफ़ कहल बा जीव के जनम ना होला, ओकर मरण भी ना होला . उ शाश्वत ह, अविनाशी ह , आ एह नश्वर शरीर के छूट गाईला पर भी उ ज़िंदा रहेला .
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 21:44, 8 June 2018



660219-20 - Lecture BG Introduction - New York

एही से , सनातन -धर्म , जैसे पहिले बतावल बा , भगवान सनातन हईं , आध्यात्मिक आकाश का ऊपर उनकर धाम भी सनातन ह . आ, सब जीवित प्राणी भी सनातन . एही कारण से सनातन भगवान का साथे सनातन प्राणी के संग , सनातन धाम में हो जाव, इहे मनुष्य जीवन के असली उद्देश्य ह . भगवान प्राणी पर असीम दयालु हईं सभे प्राणी भगवान के सन्तान कहाला . भगवान के घोषणा ह कि - सर्व योनिषु कौन्तेय मूर्तयो: संभवन्ति याः (भ गी १४.४) . सभे प्राणी , सब तरह के प्राणी ... अपना अपना करम के जईसन अलगा अलगा तरह के प्राणी होखेलन , भगवान के घोषणा ह कि उ सब प्राणी के पिता हवन , आ, एही से भगवान अवतार ले के एह संसार में ओह भुलाईल जीव के याद करावे खातिर आइले कि सनातन धाम , सनातन आकाश में चल लोग , जेह से जीव , भगवान का संगत में अपना स्वाभाविक शाश्वत हालत में हो जाव . उ खुदे कई तरह के अवतार लेबेलन . जीव खातिर , अपना विश्वासी सेवक के , बेटा , साथी या आचार्य का रूप में भेज देबेलन . एही कारण से सनातन धरम कवनो सम्प्रदाय या समूह खातिर ना ह . इ भगवान के साथ जीव के शाश्वत सम्बन्ध के परिचय ह . सनातन धरम के के मतलब ह , जीव के असली पेशा . सनातन शब्द के मतलब श्रीपाद रामानुजाचार्य बतावले बानी कि "जवना के कवनो ना ओर बा न अंत बा ." आ जब सनातन धरम के बात होखे त बूझ लेबे के चाहीं जे श्रीपाद रामानुजाचार्य के आदेश से एह कर, ना त शुरुआत बा, ना अंत . रेलिजन शब्द , धरम से थोड़ा अलग बा . रिलीजन से विश्वास के पता चलेला . विश्वास त कबहूँ बदल सकता . केहू का एक तरीका में विश्वास हो सकता , उ बदल के दोसरा तरीका में हो सकता . लेकिन जे बदले ना , उ चीज सनातन ह. जे कबहूँ बदले ना . जैसे पानी में द्रव के गुण बा . पानी से द्रव के गुण निकल नईखे सकत . गरमी आ आग . आगी में से गरमी अलगा नईखे हो सकत . ओही तरीका से , शाश्वत जीव के शाश्वत काम से अलगा नईखे कईल जा सकत . बदलल सम्भव नईखे . हमनी के पता करे के बा जे शाश्वत प्राणी के शाश्वत काम का ह . जब सनातन धरम के बात होता , त साफ़ साफ़ जाने के चाहीं जे श्रीपाद रामानुजाचार्य जी का आदेश से कि एकर ना त शुरुआत बा ना अंत . एह चीज के अंत नईखे , शुरुआत नईखे , इ कवनो सम्प्रदाय खातिर नईखे , एह के कवनो सीमा नईखे . जब सनातन धरम पर कवनो सभा होला , त, छोट छोट सम्प्रदाय के माने वाला लोग , गलती से बूझ जाला जे हमनी के कवनो सम्प्रदाय के बात करत बानी सन . लेकिन अगर मामला के तनी गंभीरता से देखल जाव , आ सब चीज के आधुनिक विज्ञान से सोचल जाव , त पता चल जाई जे सनातन धरम काम ह , संसार के सब लोग के , सब जीव के ब्रह्माण्ड के सब प्राणी के . आदमी के ,अ-सनातन धरम के शुरू आ अंत हो सकता , लेकिन सनातन धरम के कवनो इतिहास नईखे हो सकत, काहे कि इ हमेशा प्राणी का साथ रहेला . जहां तक प्राणी लोग के बात बा , शास्त्र से पता चलेला कि जीव के कवनो जनम चाहे मृत्यु ना होला . भगवद गीता में साफ़ कहल बा जीव के जनम ना होला, ओकर मरण भी ना होला . उ शाश्वत ह, अविनाशी ह , आ एह नश्वर शरीर के छूट गाईला पर भी उ ज़िंदा रहेला .