BH/Prabhupada 1073 - जब तक ले हमनीं का प्रकृति पर कब्जा करे के आदत ना छोड़ देहब: Difference between revisions
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एह, प्रकृति के बारे में गीता के १५ वाँ अध्याय में बतावल बा कि इ एगो पेड़ ह जवना के जड़ ऊपर बा, ऊर्ध्व-मूलं . कवनो गाछ जवना के जड़ ऊपर होखे , अईसन देखले बानीं ? हाँ, अईसन गाछ के अनुभव होला, परछाई में . अगर नदी का कगरी खडा हो जाईं , चाहे पोखरा के किनारे , त इ दिखाई पड़ जाई . कि कगरी के सब गाछ पानी में उलटा दिखाई देता, डाली नीचे आ जड़ ऊपर. त इ संसार असल में आध्यात्मिक संसार के परछाईं ह . ठीक ओसहीं , जईसे नदी का कगरी के सब गाछ पानी में उल्टा दिखाई देला. ओही जईसन , एह संसार के परछाईं कहल जाला . छाया . परछाईं में त कवनो असलीयत नईखे , लेकिन साथे साथे , परछाई से इ जरूर बुझाई जे एकर असल जरूर बा . जैसे , बालू में पानी के छाया , sसे बुझा जाला कि बालू में त पानी नईखे, लेकिन असल पानी कहीं ना कहीं जरूर बा. ठीक ओही तरह से , इ संसार - आध्यात्मिक संसार के परछाईं ह , चाहे एह भौतिक संसार में , असल खुशी नईखे हो सकत, मरुभूमि में पानी जईसन . हाँ, असली आनन्द , असली पानी जईसन, आध्यात्मिक जगत में बा . भगवान गीता में बतावत बानी कि आध्यात्मिक संसार में पहुंचे के कईसन कोशिश करे के चाहीं. निर मान मोहाः . | एह, प्रकृति के बारे में गीता के १५ वाँ अध्याय में बतावल बा कि इ एगो पेड़ ह जवना के जड़ ऊपर बा, ऊर्ध्व-मूलं . कवनो गाछ जवना के जड़ ऊपर होखे , अईसन देखले बानीं ? हाँ, अईसन गाछ के अनुभव होला, परछाई में . अगर नदी का कगरी खडा हो जाईं , चाहे पोखरा के किनारे , त इ दिखाई पड़ जाई . कि कगरी के सब गाछ पानी में उलटा दिखाई देता, डाली नीचे आ जड़ ऊपर. त इ संसार असल में आध्यात्मिक संसार के परछाईं ह . ठीक ओसहीं , जईसे नदी का कगरी के सब गाछ पानी में उल्टा दिखाई देला. ओही जईसन , एह संसार के परछाईं कहल जाला . छाया . परछाईं में त कवनो असलीयत नईखे , लेकिन साथे साथे , परछाई से इ जरूर बुझाई जे एकर असल जरूर बा . जैसे , बालू में पानी के छाया , sसे बुझा जाला कि बालू में त पानी नईखे, लेकिन असल पानी कहीं ना कहीं जरूर बा. ठीक ओही तरह से , इ संसार - आध्यात्मिक संसार के परछाईं ह , चाहे एह भौतिक संसार में , असल खुशी नईखे हो सकत, मरुभूमि में पानी जईसन . हाँ, असली आनन्द , असली पानी जईसन, आध्यात्मिक जगत में बा . भगवान गीता में बतावत बानी कि आध्यात्मिक संसार में पहुंचे के कईसन कोशिश करे के चाहीं. निर मान मोहाः . | ||
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:द्वन्द्वैर विमुक्ताः सुख -दुःख संगै: | :द्वन्द्वैर विमुक्ताः सुख -दुःख संगै: | ||
:गच्छन्ति अमूढाः पदम् अव्ययम तत | :गच्छन्ति अमूढाः पदम् अव्ययम तत | ||
([[Vanisource:BG 15.5|भ गी १५.५]]) | ([[Vanisource:BG 15.5 (1972)|भ गी १५.५]]) | ||
उ पदम् अव्ययम , उहे शाश्वत सम्राज्य मिली जे 'निर्मान मोहा' बा . निर्मान मोहा . यानि कि हमनी का सम्मान का पीछे भागत बानीं सन . इ त बात सही बा, आदर केकरा ना भावेला . केहू के मन बा 'सर' कहाए के , केहू महाराज कहावे के चाहता , केहू केहू त, राष्ट्रपति बने खातिर बेचैन बा , चाहे केहू के धनी आदमी बने के मन बा, केहू के राजा . एकर जरूरत तब तक ले बा , जब तक हमनी एकरा पीछे पीछे भागत बानी सन ... धियान रहे जे इ सब सम्मान देह खातिर ह , आ हमनी के इ देह हवीं सन ना . इ आत्मानुभूति के पहिला पाठ ह . त समझदार के सम्मान के पीछे ना भागे के चाहीं . आउर , जित- संग -दोष , संग दोष . हमनीं के अभी तीन भौतिक चीज से संगती बा , आ , भगवान का सेवा कईला से अगर वैराग्य आ जाव ... जब तक ले भगवान के सेवा में रूचि ना होई , भौतिक प्रकृति के तीनो बंधन से छुटकारा ना होई . एही से भगवान् कहत बानी , विनिवृत्त कामाः , भोग या वासना के इच्छा के चलते , सम्मान खातिर छट - पटी रही . एही कारने भौतिक प्रकृति पर अधिकार करे के कोशिश रहेला. जब तक ले प्रकृति पर अधिकार करे के कोशिश ना छोड़ दिहल जाई , तब तक ले भगवान के शाश्वत धाम, सनातन धाम में लौट के गईल मुश्किल बा . द्वंद्वैर विमुक्ताः सुख दुःख संज्ञैर गच्छन्ति अमूढा: पदम् अव्ययं तत ([[Vanisource:BG 15.5|भ गी १५.५]]) . उ सनातम धाम , जवना में एह संसार जईसन परलय ना होला , , ओहिजा , अमूढा: लोग जा सकता . अमूढा: माने जे सनकल नईखे , जे एह संसार के नकली खुशी खातिर पागल हो गईल बा. आ,जे भगवान का सेवा में लाग गईल बा, उ सनातन धाम लौटे खातिर काबिल आदमी बा . ओह सनातन धाम में सूरज, चन्द्रमा चाहे विजली के जरूरत नईखे . इ सनातम धाम में जाए के रास्ता के एक परिचय ह . | उ पदम् अव्ययम , उहे शाश्वत सम्राज्य मिली जे 'निर्मान मोहा' बा . निर्मान मोहा . यानि कि हमनी का सम्मान का पीछे भागत बानीं सन . इ त बात सही बा, आदर केकरा ना भावेला . केहू के मन बा 'सर' कहाए के , केहू महाराज कहावे के चाहता , केहू केहू त, राष्ट्रपति बने खातिर बेचैन बा , चाहे केहू के धनी आदमी बने के मन बा, केहू के राजा . एकर जरूरत तब तक ले बा , जब तक हमनी एकरा पीछे पीछे भागत बानी सन ... धियान रहे जे इ सब सम्मान देह खातिर ह , आ हमनी के इ देह हवीं सन ना . इ आत्मानुभूति के पहिला पाठ ह . त समझदार के सम्मान के पीछे ना भागे के चाहीं . आउर , जित- संग -दोष , संग दोष . हमनीं के अभी तीन भौतिक चीज से संगती बा , आ , भगवान का सेवा कईला से अगर वैराग्य आ जाव ... जब तक ले भगवान के सेवा में रूचि ना होई , भौतिक प्रकृति के तीनो बंधन से छुटकारा ना होई . एही से भगवान् कहत बानी , विनिवृत्त कामाः , भोग या वासना के इच्छा के चलते , सम्मान खातिर छट - पटी रही . एही कारने भौतिक प्रकृति पर अधिकार करे के कोशिश रहेला. जब तक ले प्रकृति पर अधिकार करे के कोशिश ना छोड़ दिहल जाई , तब तक ले भगवान के शाश्वत धाम, सनातन धाम में लौट के गईल मुश्किल बा . द्वंद्वैर विमुक्ताः सुख दुःख संज्ञैर गच्छन्ति अमूढा: पदम् अव्ययं तत ([[Vanisource:BG 15.5 (1972)|भ गी १५.५]]) . उ सनातम धाम , जवना में एह संसार जईसन परलय ना होला , , ओहिजा , अमूढा: लोग जा सकता . अमूढा: माने जे सनकल नईखे , जे एह संसार के नकली खुशी खातिर पागल हो गईल बा. आ,जे भगवान का सेवा में लाग गईल बा, उ सनातन धाम लौटे खातिर काबिल आदमी बा . ओह सनातन धाम में सूरज, चन्द्रमा चाहे विजली के जरूरत नईखे . इ सनातम धाम में जाए के रास्ता के एक परिचय ह . | ||
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Latest revision as of 21:44, 8 June 2018
660219-20 - Lecture BG Introduction - New York
गीता के १५ वाँ अध्याय में प्रकृति के असली रूप बतावल बा . कहल बा
- ऊर्ध्व - मूलं अधः शाखम
- अश्वत्थं प्राहु: अव्ययं
- छंदांसि यस्य पत्राणि
- यस्तं वेद स वेदवित
- (भ गी १५.१)
एह, प्रकृति के बारे में गीता के १५ वाँ अध्याय में बतावल बा कि इ एगो पेड़ ह जवना के जड़ ऊपर बा, ऊर्ध्व-मूलं . कवनो गाछ जवना के जड़ ऊपर होखे , अईसन देखले बानीं ? हाँ, अईसन गाछ के अनुभव होला, परछाई में . अगर नदी का कगरी खडा हो जाईं , चाहे पोखरा के किनारे , त इ दिखाई पड़ जाई . कि कगरी के सब गाछ पानी में उलटा दिखाई देता, डाली नीचे आ जड़ ऊपर. त इ संसार असल में आध्यात्मिक संसार के परछाईं ह . ठीक ओसहीं , जईसे नदी का कगरी के सब गाछ पानी में उल्टा दिखाई देला. ओही जईसन , एह संसार के परछाईं कहल जाला . छाया . परछाईं में त कवनो असलीयत नईखे , लेकिन साथे साथे , परछाई से इ जरूर बुझाई जे एकर असल जरूर बा . जैसे , बालू में पानी के छाया , sसे बुझा जाला कि बालू में त पानी नईखे, लेकिन असल पानी कहीं ना कहीं जरूर बा. ठीक ओही तरह से , इ संसार - आध्यात्मिक संसार के परछाईं ह , चाहे एह भौतिक संसार में , असल खुशी नईखे हो सकत, मरुभूमि में पानी जईसन . हाँ, असली आनन्द , असली पानी जईसन, आध्यात्मिक जगत में बा . भगवान गीता में बतावत बानी कि आध्यात्मिक संसार में पहुंचे के कईसन कोशिश करे के चाहीं. निर मान मोहाः .
- निर्मान -मोहाः जित संग दोषाः
- अध्यात्म नित्या विनिवृत्त कामाः
- द्वन्द्वैर विमुक्ताः सुख -दुःख संगै:
- गच्छन्ति अमूढाः पदम् अव्ययम तत
उ पदम् अव्ययम , उहे शाश्वत सम्राज्य मिली जे 'निर्मान मोहा' बा . निर्मान मोहा . यानि कि हमनी का सम्मान का पीछे भागत बानीं सन . इ त बात सही बा, आदर केकरा ना भावेला . केहू के मन बा 'सर' कहाए के , केहू महाराज कहावे के चाहता , केहू केहू त, राष्ट्रपति बने खातिर बेचैन बा , चाहे केहू के धनी आदमी बने के मन बा, केहू के राजा . एकर जरूरत तब तक ले बा , जब तक हमनी एकरा पीछे पीछे भागत बानी सन ... धियान रहे जे इ सब सम्मान देह खातिर ह , आ हमनी के इ देह हवीं सन ना . इ आत्मानुभूति के पहिला पाठ ह . त समझदार के सम्मान के पीछे ना भागे के चाहीं . आउर , जित- संग -दोष , संग दोष . हमनीं के अभी तीन भौतिक चीज से संगती बा , आ , भगवान का सेवा कईला से अगर वैराग्य आ जाव ... जब तक ले भगवान के सेवा में रूचि ना होई , भौतिक प्रकृति के तीनो बंधन से छुटकारा ना होई . एही से भगवान् कहत बानी , विनिवृत्त कामाः , भोग या वासना के इच्छा के चलते , सम्मान खातिर छट - पटी रही . एही कारने भौतिक प्रकृति पर अधिकार करे के कोशिश रहेला. जब तक ले प्रकृति पर अधिकार करे के कोशिश ना छोड़ दिहल जाई , तब तक ले भगवान के शाश्वत धाम, सनातन धाम में लौट के गईल मुश्किल बा . द्वंद्वैर विमुक्ताः सुख दुःख संज्ञैर गच्छन्ति अमूढा: पदम् अव्ययं तत (भ गी १५.५) . उ सनातम धाम , जवना में एह संसार जईसन परलय ना होला , , ओहिजा , अमूढा: लोग जा सकता . अमूढा: माने जे सनकल नईखे , जे एह संसार के नकली खुशी खातिर पागल हो गईल बा. आ,जे भगवान का सेवा में लाग गईल बा, उ सनातन धाम लौटे खातिर काबिल आदमी बा . ओह सनातन धाम में सूरज, चन्द्रमा चाहे विजली के जरूरत नईखे . इ सनातम धाम में जाए के रास्ता के एक परिचय ह .