BN/Prabhupada 1069 - ধর্ম শব্দে যা বুঝায় তা সনাতন-ধর্ম থেকে কিছুটা ভিন্ন। ধর্ম বলতে সাধারণত কোন বিশ্বাসকে বো

Revision as of 09:55, 14 May 2015 by Visnu Murti (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Bengali Pages with Videos Category:Prabhupada 1069 - in all Languages Category:BN-Quotes - 1966 Category:BN-Quotes - L...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

660219-20 - Lecture BG Introduction - New York

Hindi

रिलीजन से विश्वास का भाव सूचित होता है । विश्वास परिवर्तित हो सकता है - सनातन धर्म नहीं अतएव सनातन धर्म, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, कि भगवान सनातन हैं, और दिव्य धाम, जो नित्य चिन्मय अाकाश से परे है, यह भी सनातन है । और जीव भी सनातन हैं । तो संगति सनातन भगवान की, सनातन जीव की, सनातन धाम में मानव जीवन की सार्थक्ता है । भगवान जीवों पर अत्यंत दयालु रहते हैं क्योंकि जीव उनके अात्मज हैं । भगवान घोषित करते हैं सर्व योनिषु कौन्तेय संभवंति मूर्तयो या: (भ गी १४।४) । हर जीव, हर प्रकार का जीव... अपने अपने कर्मों के अनुसार नाना प्रकार के जीव हैं, लेकिन भगवान कहते हैं कि वे सबके पिता हैं, अतएव भगवान अवतरित होते हैं उन समस्त पतित बद्धजीवों का उद्धार करने वापस सनातन-धाम ले जाने के लिए, नित्य चिन्मय अाकाश, जिससे सनातन जीव भगवान की नित्य संगति में रहकर अपने सनातन स्थिति को पुन: प्राप्त कर सकें । भगवान स्वयं नाना अवतारों के रूप में अवतरित होते हैं । वे अपने विश्वस्त सेवकों को अपने पुत्रों या पार्षदों या अाचार्यों के रूप में इन बद्धजीवों का उद्धार करने के लिए भेजते हैं ।

अतएव सनातन-धर्म किसी सांप्रदायिक धर्म पद्धति का सूचक नहीं है । यह तो नित्य परमेश्वर के साथ नित्य जीवों के नित्य कर्म धर्म का सूचक है । जहॉ तक सनातन-धर्म का संबंध है, इसका अर्थ है नित्य कर्म-धर्म । श्रीपाद रामानुजाचार्य नें सनातन शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है " वह जिसका न अादि है अौर न अन्त ।" अतएव जब हम सनातन-धर्म के विषय में बात करते हैं तो हमें यह मान लेना चाहिए श्रीपाद रामानुजाचार्य के प्रमाण के अाधार पर कि इसका न अादि है न अन्त । अंग्रेजी का "रिलीजन" शब्द सनातन-धर्म से थोड़ा भिन्न है । रिलीजन से विश्वास का भाव सूचित होता है । विश्वास परिवर्तित हो सकता है । किसी को एक विशेष विधि में विश्वास हो सकता है अौर वह इस विश्वास को बदल कर दूसरा ग्रहण कर सकता है । लेकिन सनातन-धर्म उस धर्म का सूचक है जो बदला नहीं जा सकता है । उदाहरणार्थ पानी और तरलता । तरलता पानी से विलग की नहीं जा सकती है । अग्नि अौर ऊष्मा । ऊष्मा विलग नहीं की जा सकती है अग्नि से । इसी तरह, जीव से उसके नित्य कर्म को विलग नहीं किया जा सकता है, जो सनातन-धर्म के रूप में जाना जाता है । इसे बदलना संभव नहीं है । हमें पता लगाना होगा कि जीव का नित्य धर्म क्या है । जब हम सनातन-धर्म के विषय में बात करते हैं, तो हमें यह मान लेना चाहिए श्रीपाद रामानुजाचार्य के प्रमाण पर कि उसका न तो अादि है न अन्त । जिसका अादि -अंत न हो, वह सांप्रदायिक नहीं हो सकता न उसे किसी सीमा में बॉधा जा सकता है । जब हम सनातन-धर्म पर सम्मेलन करते हैं, जो लोग किसी सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते है वे समझने में भूल कर सकते हैं कि हम कुछ सांप्रदायिक बात कर रहे हैं। किन्तु यदि हम इस विषय पर गम्भीरता से विचार करें अौर अाधुनिक विज्ञान के प्रकाश में सोचें हमें यह समझने में अासानी होगी कि सनातन-धर्म विश्व समस्त लोगों का ही नहीं, अपित ब्रह्मांड के समस्त जीवों का है । भले ही असनातन धार्मिक विश्वास का मानव इतिहास के पृष्ठों में कोई अादि हो, लेकिन सनातन धर्म के इतिहास का कोई अादि नहीं होता है, क्योंकि यह जीवों के साथ शाश्वत चलता रहता है । जहॉ तक जीवों का सम्बन्ध है, प्रमाणिक शास्त्रों का कथन है, कि जीव का न तो कोई जन्म होता है, न मृत्यु । भगवद्- गीता में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जीव न तो जन्मता है न कभी मरता है । वह शाश्वत तथा अविनाशी है, और इस क्षणभंगुर शरीर के नष्ट होने के बाद भी रहता है ।

Bengali

তাই সনাতন-ধর্ম সম্বন্ধে পূর্বে বলা হয়েছে, ভগবান ও তাঁর দিব্যধাম উভয়ই সনাতন। এবং দিব্য ধাম, যাহা চিদাকাশের অতীত, এটাও সনাতন। এবং জীব, তারাও সনাতন। জীব যখন সনাতন পরমেশ্বরের সান্নিধ্যে সনাতন ধামে আসে তখনই তার মানব জীবনের পরম লক্ষ্য সার্থক হয়ে ওঠে। পরমেশ্বর ভগবান সকল জীবে পরম করুণাময় কারণ সমস্ত জীব পরমেশ্বরেরই সন্তান। ভগবান বলেছেন, সর্বযোনিষু কৌন্তেয় মূর্তয়ঃ সম্ভবন্তি যাঃ(ভ. গী. ১৪/৪) সকল জীব, সকল প্রকারের জীব… বিভিন্ন কর্ম অনুসারে বিভিন্ন প্রকারের জীব রয়েছে, কিন্তু পরমেশ্বর ভগবানের বলেছেন তিনিই সকল জীবের পিতা, এবং তাই এই পৃথিবীতে ভগবান অবতরণ করেন এই সমস্ত পতিত বদ্ধ জীবদের চিদাকাশে, সনাতন ধামে ফিরিয়ে নেওয়ার জন্য, যাতে তারা তাদের শাশ্বত সনাতন অবস্থা ফিরে পেয়ে ভগবানের সঙ্গে চিরন্তন সঙ্গ লাভ করতে করে পারে। ভগবান স্বয়ং বিভিন্ন অবতার রূপে অবতরণ করেন। কখনও বা তিনি তাঁর বিশ্বস্ত অনুচরকে অথবা তাঁর প্রিয় সন্তানকে পাঠান, কখনও বা তাঁর অনুগামী ভৃত্যকে বা আচার্যকে পাঠান বদ্ধ জীবাত্মাদের উদ্ধার করবার জন্য। সনাতন ধর্ম বলতে কোন সাম্প্রদায়িক ধর্মপদ্ধতিকে বোঝায় না। এটি হচ্ছে পরম শাশ্বত ভগবানের সঙ্গে সম্বন্ধযুক্ত নিত্য শাশ্বত জীবসকলের নিত্য ধর্ম। আগেই বলা হয়েছে, সনাতন ধর্ম হচ্ছে জীবের নিত্য ধর্ম। শ্রীপাদ রামানুজাচার্য সনাতন শব্দটির ব্যাখ্যা করেছেন বলেছেন ”যার কোন শুরু নেই এবং শেষ নেই” তাই আমরা যখন সনাতন ধর্মের কথা বলি, শ্রীপাদ রামানুজাচার্যের নির্দেশানুসারে আমাদের মনে রাখতে হবে যে, এই ধর্মের আদি নেই এবং অন্ত নেই। ধর্ম শব্দে যা বুঝায় তা সনাতন-ধর্ম থেকে কিছুটা ভিন্ন। ধর্ম বলতে সাধারণত কোন বিশ্বাসকে বোঝায়। যা পরিবর্তন হতে পারে। কোন বিশেষ পন্থার প্রতি কারো বিশ্বাস থাকতে পারে, এবং সে এই বিশ্বাসের পরিবর্তন করে অন্য কিছু গ্রহণ করতেও পারে। কিন্তু সনাতন ধর্ম বলতে সেই সব কার্য কলাপকে বোঝায়, যা পরিবর্তন হতে পারে না। যেমন জল এবং তরলতা। জল থেকে তার তরলতা কখনই বাদ দেওয়া যায় না। তাপ এবং আগুন। তাপ আগুন থেকে বাদ দেওয়া যায় না। তেমনই সনাতন জীবের সনাতন বৃ্ত্তি জীবের থেকে আলাদা করা যায় না। ইহা পরিবর্তন করা সম্ভব নয়। আমাদেরকে শাশ্বত জীবের শাশ্বত কর্ত্তব্য কর্মটি কি, তা খুঁজে বের করতে হবে। সুতরাং যখন আমরা সনাতন ধর্মের কথা বলি, প্রামাণ্য ভাষ্য মেনে নিতে হবে শ্রীপাদ রামানুজাচার্যের-”এর কোন আদি-অন্ত নেই”। যার কোন আদি নেই, অন্ত নেই, সেই ধর্ম কখনই সাম্প্রদায়িক হতে পারে না। এই ধর্ম সমস্ত জীবের ধর্ম, তাই তাকে কখনই কোন সীমার মধ্যে সীমিত রাখা যায় না। যখন আমরা সনাতন-ধর্মের প্রচারনা চালিয়ে যাচ্ছি, কতিপয় সাম্প্রদায়িক লোক মনে করে যে সনাতন ধর্মও একটি সাম্প্রদায়িক ধর্ম। আমরা যখন আধুনিক বিজ্ঞানের পরিপ্রেক্ষিতে সনাতন ধর্মের যথার্থতা বিশ্লেষণ করি, তখন দেখি যে এই সনাতন-ধর্ম প্রতিটি মানুষের ধর্ম-শুধু তাই নয়, এই ধর্ম সমগ্র বিশ্বব্রহ্মাণ্ডের প্রতিটি জীবের ধর্ম। অসনাতন ধর্মবিশ্বাসের সূত্রাপাতের ইতিহাস পৃথিবীর ইতিহাসের বর্ষপঞ্জিতে লেখা থাকতে পারে, কিন্তু সনাতন ধর্মের কোন ইতিহাস নেই, কারণ সনাতন ধর্ম জীবের সঙ্গে অঙ্গাঙ্গিভাবে যুক্ত থেকেই চিরকালই বর্তমান। তাই জীব সম্বন্ধে শাস্ত্রে বলা হয়েছে যে, সে জন্ম-মৃত্যুর অতীত। ভগবদ্গীতাতে স্পষ্টভাবে বলা হয়েছে যে, জীবের জন্ম নেই, মৃত্যু নেই। সে শাশ্বত ও অবিনশ্বর এবং তার দেহের মৃত্যু হলেও তার কখনই মৃত্যু হয় না।