BN/Prabhupada 1080 - ভগবদ গীতার সারমর্ম অনুযায়ী -কৃষ্ণ হচ্ছেন ভগবান। কৃষ্ণ কোন সাম্প্রদায়িক ভগবান নন

Revision as of 15:01, 30 August 2015 by Visnu Murti (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Bengali Pages with Videos Category:Prabhupada 1080 - in all Languages Category:BN-Quotes - 1966 Category:BN-Quotes - L...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

660219-20 - Lecture BG Introduction - New York


Hindi

भगवद्- गीता में संक्षेप किया गया है - एक ईष्वर कृष्ण हैं । कृष्ण सांप्रदायिक ईष्वर नहीं हैं भगवान कहते हैं प्रबलता से भगवद्- गीता के अाखरी हिस्से में, अहं त्वां सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: (भ गी १८।६६) । भगवान जिम्मेदारी लेते हैं । जो भगवान के प्रति अात्मसमर्पण करता है, वे जिम्मेदारी लेते हैं उद्धार की, पापों की सभी प्रतिक्रियाओं से उद्धार करेंगे ।

मल निर्मोचनं पुंसां
जल स्नानं दिने दिने
सकृद गीतामृत स्नानम
संसार मल नाषनम्
(गीता महात्मय ३)

मनुष्य जल में स्नान करके नित्य अपने को स्वच्छ करता है, लेकिन यदि भगवद्- गीता रूपी पवित्र गंगा जल में एक बार स्नान करता है, उसका, भवसागर की मलीनता से सदा सदा के लिए मुक्त हो जाता है ।

गीता सुगीता कर्तव्या
किमन्यै: शास्त्रविस्तरै:
या स्वयं पद्मनाभस्य
मुखपद्माद विनि:सृता
(गीता महात्मय ४)

चूंकी भगवद्- गीता भगवान के मुख से निकली है, अतएव लोगों को ... लोगों को अन्य सभी वैदिक साहित्य पढ़ने की अावश्यक्ता नही है । अगर वह केवल ध्यानपूर्वक और नियमित रूप से पढ़ता अोर सुनता है भगवद्- गीता, गीता सुगीता कर्तव्या ... और मनुष्य को यह करना ही चाहिए । गीता सुगीता कर्तव्य किमन्यै: शास्त्र-विस्तरै: । क्योंकि वर्तमान युग में लोग इतने व्यस्त हैं संसारिक कार्यों में, कि समस्त वैदिक साहित्य में अपना ध्यान लगना शायद ही संभव हो। केवल यह एक ही साहित्य पर्याप्त है क्योंकि यह समस्त वैदिक साहित्य का सार है, और विशेष रूप से इसका प्रवचन भगवान ने किया है ।

भारतामृत सर्वस्वं
विष्णु वक्त्राद्विनि:सृतम्
गीता-गंगोदकं पीत्वा
पुनर्जन्म न विद्यते
(गीता महात्मय ५)

जैसा कि कहा जाता है कि जो गंगाजल पीता है, उसे भी मुक्ति मिलती है, तो भगवद्- गीता की क्या बात करें ? भगवद्- गीता महाभारत का अमृत है, और मूल विष्णु (भगवान कृष्ण) नें स्वयं सुनाया है । भगवान कृष्ण मूल विष्णु हैं । विष्णु वकृताद्विनि:सृतम । यह भगवान के मुख से निकली है । और गंगोदकं, गंगा, भगवान के चरणकमलों से निकली है, और भगवद्- गीता भगवान के मुख से निकला है । निस्सन्देह, भगवान के मुख तथा चरणों के बीच कोई अंतर नहीं है । लेकिन निष्पक्ष अध्ययन से हम पाऍगे कि भगवद्- गीता गंगा जल की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है ।

सर्वोपनिषदो गावो
दोग्धा गोपालनन्दन:
पार्थो वत्स: सुधीर् भोक्ता
दुग्धं गीतामृतं महत्
(गीता महात्मय ६)

यह गीतोपनिषद् गाय के तुल्य है, और भगवान ग्वालबाल के रूप में विख्यात हैं, अौर वे इस गाय को दुह रहे हैं । सर्वोपनिषदो । और यह समस्त उपनिषदों का सार है और गाय का रूप लेती है । और भगवान दक्ष ग्वालबाल होने के कारण, वे गाय को दुह रहे हैं । और पार्थ वत्स: । और अर्जुन बछड़े के समान है । और सुधीर भौक्ता । और सारे विद्वान तथा शुद्ध भक्त, वे इस दूध का पान करने वाले हैं । सुधीर भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् । अमृत, भगवद्- गीता का अमृतमय दूध, विद्वान भक्तों के पान के लिए है ।

एकं शासत्रं देवकीपुत्रगीतम्
एको देवो देवकीपुत्र एव
एको मंत्रस्तस्य नामानि यानि
कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा
(गीता महात्मय ७)

अब दुनिया को भगवद्- गीता से सबक सीखना चाहिए । एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम् । केवल एक शास्त्र है, सारे विश्व के लिए केवल एक शास्त्र है, सारे विश्व के लोगों के लिए, और वह है ये भगवद्- गीता । देवो देवकीपुत्र एव । और एक ईश्वर सारे विश्व के लिए, श्री कृष्ण हैं । और एको मन्त्रस्यतस्य नामानि । और एक मंत्र, मंत्र, एक ही मंत्र, एक प्रार्थना, या एक मंत्र, उनके नाम का कीर्तन, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । एको मंत्रस्तस्य नामानि यानि कर्मापि एकं तस्य देवस्य सेवा । और केवल एक ही कार्य, भगवान की सेवा करना । अगर व्यक्ति भगवद्- गीता से सीखता है, तो लोग अत्यन्त उत्सुक हैं एक धर्म, एक ईश्वर, एक शास्त्र, तथा एक वृत्ति के लिए । यह भगवद्- गीता में संक्षेप किया गया है । कि एक, एक ईश्वर, श्री कृष्ण हैं । कृष्ण सांप्रदायिक ईश्वर नहीं हैं । श्री कृष्ण, श्री कृष्ण के नाम से ... कृष्ण का अर्थ है, जैसे कि हमने पहले उल्लेख किया है, कृष्ण का अर्थ है महानतम अानन्द ।

===========

Bengali

ভগবদ গীতার শেষাংশে ভগবান স্পষ্টভাবেই বলেছেন, অহম ত্বাম সর্ব পাপেভ্যো মোক্ষয়িস্বামি মা সূচঃ ( ভগবদ গীতা ১৮.৬৬ ) . ভগবান দায়িত্ব নিচ্ছেন। যিনি ভগবত চরণে শরণাগত হন, ভগবান তার রক্ষার দায়িত্ব নেন, পূর্বকৃত সমস্ত পাপকর্মের ফল থেকে রক্ষা করেন। মল নির্মচনম পুংসাং জল স্নানং দিনে দিনে সকৃদ গীতামৃত-স্নানম সংসার মল নাশনম ( গীতা মাহাত্ম্য ৩ ) জলে স্নান করে যেমন যে কেউ পবিত্র হয়, কিন্তু কেউ যদি ভগবদ গীতার অমৃত গঙ্গা জলে একবার ও স্নান করেন, তার জড় কদর্য জীবন সম্পূর্ণ রূপে দূরীভূত হবে। গীতা সু গীতা কর্তব্য কিম অন্য শাস্ত্র বিস্তারৈহ য স্বয়ম পদ্মনাভস্য মুখ পদ্মাদ বিনিঃসৃতা ( গীতা মাহাত্ম্য ৪ ) যেহেতু ভগবদ গীতা পরমেশ্বর ভগবান কর্তৃক উক্ত হয়েছে, তাই মানুষের অন্য কোন বৈদিক সাহিত্য পড়ার প্রয়োজন নেই। যদি কেউ কেবলমাত্র নিয়মিত মনোযোগের সহিত ভগবদ গীতা শ্রবণ ও অধ্যয়ন করেন, গীতা সু গীতা কর্তব্যা ... এবং যেকোন উপায়ে প্রত্যেকেরই এই পন্থা অবলম্বন করা উচিত। গীতা সু গীতা কর্তব্য কিম অন্য শাস্ত্র বিস্তারৈহ কারণ এই যুগে মানুষ অনেক কিছুর দ্বারা বিমোহিত, সমস্ত বৈদিক সাহিত্যের প্রতি মনোযোগ আকর্ষণ করা একেবারেই সম্ভব নয়। এই একটা মাত্র সাহিত্য দিয়েই সম্ভব কারণ গীতা সকল বৈদিক শাস্ত্রের সারমর্ম, এবং এটা পরম পুরুষোত্তম ভগবান কর্তৃক প্রদত্ত হয়েছে। ভারতামৃত সর্বসম বিষ্ণু বক্ত্রাদ বিনিশ্রিতম গীতা গঙ্গদকম পীত্ব পুনর জন্ম ন বিদ্যতে ( গীতা মাহাত্ম্য ৫ বলা হয়েছে, যে গঙ্গাজল পান করে, সে ও মুক্তি লাভ করে, তাহলে আর ভগবদ গীতার কি কথা ? ভগবদ গীতা সমস্ত মহাভারতের সারমর্ম এবং বিষ্ণু কর্তৃক উক্ত হয়েছে। ভগবান কৃষ্ণ হলেন আদি বিষ্ণু, বিষ্ণু বক্ত্রাদ বিনিশ্রিতম | এটা পরম পুরুষোত্তম ভগবানের মুখ নিঃসৃত বাণী। এবং গঙ্গদকম , গঙ্গা ভগবানের চরণ পদ্ম থেকে নিঃসৃত হয়েছে, এবং গীতা পরমেশ্বর ভগবানের মুখ থেকে নিঃসৃত হয়েছে। অবশ্যই পরমেশ্বর ভগবানের মুখ ও চরণে কোন ভেদ নেই। তবু ও নিরপেক্ষ দৃষ্টিকোণ থেকে বিচার করে আমরা বুঝতে পারি, ভগবদ গীতা গঙ্গাজল থেকেও অধিক মহত্ত্বপূর্ণ। সর্বোপনিষদো গাভো দোগ্ধা গোপাল নন্দন পার্থ বত্স সুধিঃ ভোক্তা দুগ্ধম গিতামৃতম মহত ( গীতা মাহাত্ম্য ৬ ) এই গীতোপনিষদ হচ্ছে গাভীর মত, এবং ভগবান রাখাল বালক হিসেবে বিখ্যাত এবং তিনি গাভী দোহন করেন। সর্বোপনিষদো। এবং এটা সমস্ত উপনিষদের সার এবং গাভী হিসেবে প্রতিকায়িত। দক্ষ রাখল বালক হিসেবে ভাগবান এই গাভী দোহন করেন। এবং পার্থ বত্স, এবং অর্জুন বাছুরের ন্যায়। এবং সুধীর ভোক্তা, এবং তত্ত্বজ্ঞানী পন্ডিত ও শুদ্ধ ভক্ত, তারা দুগ্ধামৃত গ্রহণ করেন। সুধীর ভোক্তা দুগ্ধম গীতামৃতম মহত। ভগবদ গীতার দুগ্ধামৃত তত্তজ্ঞানী ভক্তের জন্য বরাদ্দ। একং সাশ্ত্রং দেবকী পুত্রং গীতম এক দেব দেবকী পুত্র এব এক মন্ত্রস তস্য নামানি যানি কর্মাপি একং তস্য দেবস্য সেবা ( গীতা মাহাত্ম্য ৭ ) । সমস্ত বিশ্ববাসীর ভগবদ গীতা থেকে শিক্ষা গ্রহণ করা উচিত। এবম সাশ্ত্রম দেবকী পুত্র গীতম | একটাই শাস্ত্র , সমগ্র পৃথিবীর জন্য একটাই শাস্ত্র, পুরো পৃথিবীর সকল মানুষের জন্য, আর সেটা হলো ভগবদ গীতা। দেব দেবকী পুত্র এব। এবং সমগ্র বিশ্বের একজনই ইশ্বর , শ্রী কৃষ্ণ। এবং একম মন্ত্রস তস্য নামানি। এবং একটাই মন্ত্র , একটাই প্রার্থনা , এক মন্ত্র, শুধু তাঁর নাম জপ করা, হরে কৃষ্ণ হরে কৃষ্ণ কৃষ্ণ কৃষ্ণ হরে হরে হরে রাম হরে রাম রাম রাম হরে হরে | একো মন্ত্রস তস্য নামানি যানি কর্মাপি একম তস্য দেবস্য সেবা। এবং শুধু একটাই কাজ, পরমেশ্বর ভগবানের সেবা করা। যদি কেউ ভগবদ গীতা অধ্যয়ন করেন, তাহলে তারা একক ধর্ম একক ভগবান, একক শাস্ত্র , এবং একক কর্তব্য কর্মের জন্য উদগ্রীব থাকবে। এটাই ভগবদ গীতার সারমর্ম। সেই একক ভগবান হলেন কৃষ্ণ। কৃষ্ণ কোন সাম্প্রদায়িক ভগবান নন। কৃষ্ণ, কৃষ্ণ শব্দটির অর্থ.... কৃষ্ণ মানে, যেমনটি আমরা উপরে বর্ণনা করেছি, কৃষ্ণ শব্দের অর্থ সর্বোত্কৃস্ঠ আনন্দ।