HI/660219 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
Visnu Murti (talk | contribs) (Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत बूँदें Category:HI/अमृत बूँदें - १९६६ Catego...") |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत | [[Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी]] | ||
[[Category:HI/अमृत | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९६६]] | ||
[[Category:HI/अमृत | [[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]] | ||
{{ | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/770528 - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|770528|HI/660220 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|660220}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660219-20.BG-NY_full_part_1_ND_01.mp3</mp3player>|केवल अर्जुन ही नहीं, परन्तु हम सभी इस भौतिक जगत के अस्तित्व के कारण, सदैव चिन्तित रहते हैं। "असत ग्रहात" अर्थात् हमारा अस्तित्वहीन पर्यावरण, या वातावरण में होने के समान है। किन्तु वास्तव में हम अस्तित्वहीन नहीं हैं। हमारा अस्तित्व शाश्वत है, लेकिन किसी कारण हम इस असत में भेजे गये हैं। असत का अर्थ है जिसका कोई अस्तित्व नहीं है।|Vanisource:660219-20 - Lecture BG Introduction - New York|660219-20 - प्रवचन भगवद गीता परिचय - न्यूयार्क}} |
Latest revision as of 04:50, 16 February 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
केवल अर्जुन ही नहीं, परन्तु हम सभी इस भौतिक जगत के अस्तित्व के कारण, सदैव चिन्तित रहते हैं। "असत ग्रहात" अर्थात् हमारा अस्तित्वहीन पर्यावरण, या वातावरण में होने के समान है। किन्तु वास्तव में हम अस्तित्वहीन नहीं हैं। हमारा अस्तित्व शाश्वत है, लेकिन किसी कारण हम इस असत में भेजे गये हैं। असत का अर्थ है जिसका कोई अस्तित्व नहीं है। |
660219-20 - प्रवचन भगवद गीता परिचय - न्यूयार्क |