HI/660311 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत बूँदें
अब तथ्य यह है कि माता के गर्भ में जन्म होते ही हमारे शरीर का विकास होना शुरू हो जाता है, ठीक उसी प्रकार माँ के गर्भ से बाहर आकर भी शरीर का विकास होता है। लेकिन आत्मा वही रहती है। शरीर का विकास होता है। अत: ..... अब, यह विकास --- छोटे शिशु से, बड़ा बच्चा बन जाता है, फिर कुमार और तत्पश्चात् किशोर अवस्था और फिर धीरे-धीरे मेरी तरह वृद्ध पुरूष, और फिर धीरे-धीरे यह शरीर किसी काम का नहीं रहता तो इसे, इसे त्यागना ही पड़ता है और दूसरा शरीर ग्रहण करना ही पड़ता है। इस प्रक्रिया को आत्मा का देहान्तरन कहते हैं। मेरे विचार से इस सरल प्रक्रिया को समझने में कोई कठिनाई नहीं है।
660311 - Lecture BG 02.13 - New York