HI/660328 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत बूँदें|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660328BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|अभी जो हममें संकीर्तन किया है, वह दिव्य ध्वनि की लहर है। और यह हमारे मन पर चढ़ी धूल की परत को साफ़ करने में सहायता करेगी। सत्य यह है कि यह हमारा मिथ्याबोध है। वास्तव में हम शुद्ध चेतना और शुद्ध आत्मा है तो स्वभाविक है कि हम भौतिक संदूषण से भिन्न हैं। लेकिन दीर्घ काल से भौतिक वातावरण के संपर्क में होने के कारण, हमने बहुत गहरी धूल की परत अपने ह्रदय पर चढ़ा ली है। जैसे ही यह धूल की परत को साफ़ कर पायेंगे, तभी हम स्वयं के स्वरूप को देख सकते हैं।|Vanisource:660328 - Lecture BG 02.46-47 - New York|660328 - Lecture BG 02.46-47 - New York}}
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Latest revision as of 12:20, 18 July 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
अभी जो हमने संकीर्तन किया है,वह दिव्य ध्वनि की कंपन है। यह हमारे मन पर चढ़ी धूल की परत को साफ़ करने में सहायता करेगी। सत्य यह है कि,यह हमारा भ्रम है। वास्तव में, हम शुद्ध चेतना और शुद्ध आत्मा है, जो स्वभाविक रूप से भौतिक संदूषण से अलग हैं। लेकिन दीर्घ काल से भौतिक वातावरण के संपर्क में आने के कारण, हमने बहुत गहरी धूल की परत को अपने हृदय पर ओढ़ ली है। जैसे ही यह धूल की परत साफ़ हो जाती है, हम स्वयं के स्वरूप को देख सकते हैं,की हम क्या है।
660328 - प्रवचन भ.गी. २.४६-४७ - न्यूयार्क