HI/660405 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत बूँदें|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660405BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|भगवद् गीता प्रमाणित करती है कि एक बार जब अध्यात्मिक जीवन का प्रारम्भ करते हैं तो कोई नुक़सान नहीं बल्कि अगला जन्म उसका मानुषिक जीवन तो सुनिश्चित है। साधारण कर्तव्यों का पालन करते हुए आप को बोध नहीं होता कि तुम्हें मानुषिक जीवन मिले गा या नहीं। ऐसा कुछ निश्चित नहीं है। वह तुम्हारे कर्मों पर निर्भर करता है लेकिन अब यदि तुम अध्यात्मिक जीवन प्रारम्भ करते हो तो अगला जीवन मनुष्य जीवन सुनिश्चित है। सुनिश्चित ही है।|Vanisource:660405 - Lecture BG 02.49-51 - New York|660405 - Lecture BG 02.49-51 - New York}}
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Latest revision as of 05:32, 21 February 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
अब, भगवद गीता यह पुष्टि करती है कि, मनुष्य जब अध्यात्मिक जीवन का प्रारम्भ करता है, तो उसे किसी प्रकार का नुक़सान नहीं, क्योंकि उसका अगला जन्म मनुष्य योनि में सुनिश्चित है। साधारण कर्तव्यों के पालन करते समय आप नहीं जान सकते कि, आपको फिर से मनुष्य योनि प्राप्त होगी या नहीं। यह निश्चित नहीं है। यह आपके कर्मों पर निर्भर करता है। किन्तु, यदि आप अध्यात्मिक जीवन का प्रारम्भ करते हैं, अन्य सभी कर्तव्यों का त्याग करके, तो आपका अगला जन्म मनुष्य योनि में निश्चित ही निश्चित है।
660405 - प्रवचन भ.गी. २.४९-५१ - न्यूयार्क