HI/660530 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|Nectar Drops from Srila Prabhupada|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660530BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"एक साधु सभी जीवधारियों का मित्र होता है। वह केवल मनुष्यों का ही नहीं होता वह पशुओं का भी मित्र होता है। वह पेड़ों का भी मित्र है। वह चींटियों, कीड़ों मकोड़ों ,रेंगने वाले जीव-जन्तुओं, साँपों और प्रत्येक जीव के मित्र होते हैं। तितिक्षव: कारूणिका: सुह्द: सर्वदेहिनाम् । और अजातशत्रु है, क्योंकि वह सभी का मित्र है, इसलिए उसका कोई शत्रु नहीं है। लेकिन दुर्भाग्यवश यह जगत् इतना नमकहराम है कि ऐसे साधु के भी दुश्मन हैं। जिस प्रकार भगवान् जिज़स क्राईस्ट के भी कुछ शत्रु थे, महात्मा गाँधी के भी कुछ शत्रु थे, जिन्होंने उन्हें मृत्यु के घाट उतार दिया। अत: यह जगत् इतना विश्वासघाती है। और देखो कि ऐसे साधु के भी शत्रु हो सकते हैं? लेकिन साधु की तरफ़ से उसका कोई शत्रु नहीं होता। वह तो सब का मित्र है। तितिक्षव कारूणिका सुह्द सर्वदेहिनाम् । ([[Vanisource:SB 3.25.21|श्री भा. ३.२५.२१]]) और अजातशत्रव: शान्त: , सदैव शान्त रहते हैं। यही एक साधु, संत पुरूष के गुण हैं।"|Vanisource:660530 - Lecture BG 03.21-25 - New York|660530 - Lecture BG 03.21-25 - New York}}
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Revision as of 03:48, 28 February 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
एक साधु सभी जीवात्माओं का मित्र होता है। वह केवल मनुष्य का ही मित्र नहीं होता। अपितु,वह पशुओं का भी मित्र होता है। वह वृक्षों का भी मित्र है। वह चींटियों, कीडे-मकोड़ों, रेंगने वाले जीव-जन्तुओं, साँपों और प्रत्येक जीव का भी मित्र होता है। तितिक्षव: कारूणिका: सुह्द: सर्वदेहिनाम। और अजातशत्रु। और क्योंकि वह सभी का मित्र है, इसलिए उनका कोई शत्रु नहीं है। किन्तु दुर्भाग्यवश यह जगत इतना धर्मनिन्दक है कि, ऐसे साधु के भी शत्रु हैं। जिस प्रकार भगवान यीशु मसीह के भी कुछ शत्रु थे, महात्मा गाँधी के भी कुछ शत्रु थे जिन्होंने उनकी हत्या की। अत: यह जगत इतना द्रऋही है, की आप देख सकते हैं, ऐसे साधु के भी शत्रु होते हैं। लेकिन,साधु की तरफ़ से उनका अपना कोई शत्रु नहीं होता। वह तो सब का मित्र है। तितिक्षव कारूणिका सुह्द सर्वदेहिनाम। (श्री.भा. ३.२५.२१)। और अजात-शत्रव: शान्त:, सदैव शान्तिमय रहते हैं। यही एक साधु, संत महात्मा के लक्षण हैं।
660530 - भ.गी. ३.२१-२५ - न्यूयार्क