"यह कुछ निश्चित नहीं कि अगले जन्म में मैं क्या बनूँगा। वह मेरे कर्म पर निर्भर करता है क्योंकि यह शरीर भौतिक प्रकृति का दिया है। यह मेरे आदेशानुसार नहीं बनाया गया है। प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश:। (भ.गी. ३.२७) यहाँ तुम्हें कर्म करने का अवसर मिला है, परन्तु तुम्हारे कर्म के आधार पर निर्णय लिया जाये गा कि अगला जन्म क्या होना चाहिए। वह तुम्हारी समस्या है। नहीं ! यह पूर्ण जीवन भले ही तुम्हारा पचास, साठ, या सत्तर या फिर सौ वर्ष का हो। तुम्हारा जीवन तो एक शरीर से दूसरे शरीर में देहान्तरन होता ही रहता है। तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि यह सिलसिला चलता ही रहता है।"
|