HI/660916 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९६६ Category:HI/अ...") |
Amala Sita (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६६]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९६६]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660916BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|" | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/660914 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|660914|HI/660918 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|660918}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660916BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>| "तो जो अध्यात्मिक जीवन अपनाते हैं, उनका विनाश नहीं होता। उसका विनाश नहीं होने का अर्थ है कि, अगले जन्म में वह पुनः मनुष्य बनने वाला है। वह अन्य योनि के जीवन में लुप्त नहीं होगा। क्योंकि उसे पुन: वही जीवन प्रारम्भ करना है। मान लो कि, उसने कृष्णभावनामृत में केवल दस प्रतिशत ही जीवन पूर्ण किया है। अभी, उसे कृष्णभावनामृत में ग्यारहवे प्रतिशत से जीवन का प्रारम्भ करने के लिए मनुष्य देह स्वीकार करना ही पड़ेगा। तो इसका मतलब है कि, जो भी कृष्णभावनामृत को अपनाता है, उसका अगला जन्म मनुष्य देह में सुनिश्चित है।" |Vanisource:660916 - Lecture BG 06.40-42 - New York|660916 - प्रवचन भ.गी. ६.४०-४२ - न्यूयार्क}} |
Latest revision as of 05:42, 27 July 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"तो जो अध्यात्मिक जीवन अपनाते हैं, उनका विनाश नहीं होता। उसका विनाश नहीं होने का अर्थ है कि, अगले जन्म में वह पुनः मनुष्य बनने वाला है। वह अन्य योनि के जीवन में लुप्त नहीं होगा। क्योंकि उसे पुन: वही जीवन प्रारम्भ करना है। मान लो कि, उसने कृष्णभावनामृत में केवल दस प्रतिशत ही जीवन पूर्ण किया है। अभी, उसे कृष्णभावनामृत में ग्यारहवे प्रतिशत से जीवन का प्रारम्भ करने के लिए मनुष्य देह स्वीकार करना ही पड़ेगा। तो इसका मतलब है कि, जो भी कृष्णभावनामृत को अपनाता है, उसका अगला जन्म मनुष्य देह में सुनिश्चित है।" |
660916 - प्रवचन भ.गी. ६.४०-४२ - न्यूयार्क |