HI/660916 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660916BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"अत: जो अध्यात्मिक जीवन बिताते हैं, उनका विनाश नहीं होता। उसका विनाश नहीं होता का अर्थ है कि वह अगले जन्म में भी मानवी जीवन ही धारण करने वाला है। वह अन्य जीवों के जीवन में गुम नहीं हो जाता क्योंकि उसे पुन: वही जीवन प्रारम्भ करना है। कल्पना करो कि उसने कृष्ण भावनामृत में केवल दस प्रतिशत ही जीवन पूरा किया है, और अभी उसे ग्यारहवें प्रतिशत् से जीवन प्रारम्भ करना है। कृष्ण भावना में ग्यारहवा प्रतिशत का जीवन प्रारम्भ करने के लिए उसे मानव देह धारण करनी ही पड़ेगी। अत: यह सुनिश्चित हो गया कि जो इस जन्म में कृष्ण भावनामृत जीवन को अपनाये गा, वह अगले जन्म में मानव देह ही धारण करेगा।"|Vanisource:660916 - Lecture BG 06.40-42 - New York|660916 - Lecture BG 06.40-42 - New York}}
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Latest revision as of 05:42, 27 July 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो जो अध्यात्मिक जीवन अपनाते हैं, उनका विनाश नहीं होता। उसका विनाश नहीं होने का अर्थ है कि, अगले जन्म में वह पुनः मनुष्य बनने वाला है। वह अन्य योनि के जीवन में लुप्त नहीं होगा। क्योंकि उसे पुन: वही जीवन प्रारम्भ करना है। मान लो कि, उसने कृष्णभावनामृत में केवल दस प्रतिशत ही जीवन पूर्ण किया है। अभी, उसे कृष्णभावनामृत में ग्यारहवे प्रतिशत से जीवन का प्रारम्भ करने के लिए मनुष्य देह स्वीकार करना ही पड़ेगा। तो इसका मतलब है कि, जो भी कृष्णभावनामृत को अपनाता है, उसका अगला जन्म मनुष्य देह में सुनिश्चित है।"
660916 - प्रवचन भ.गी. ६.४०-४२ - न्यूयार्क