HI/661122 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:25, 31 July 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"हमें अपनी शिक्षा की प्रगति पर बहुत गर्व है। परन्तु यदि हम अन्य लोगों से पूछें कि, "वे स्वयं क्या है?" शायद ही कोई इसका उत्तर दे पाये। प्रत्येक व्यक्ति इस शारीरिक अवधारणा में है। किन्तु हम वास्तव में यह शरीर नहीं है। इस प्रश्न पर अनेक बार, बल्कि बहुत बार चर्चा हो चुकी है। इसलिए यह परीक्षा को पास करने के बाद, कि "मैं यह शरीर नहीं हूँ", तभी वास्तविक ज्ञान की ओर व्यक्ति बढ़ पाता है। यही वास्तविक ज्ञान है। "मैं क्या हूँ?" यह ज्ञान का प्रांरभ है। तो जो ज्ञान, श्री कृष्ण अर्जुन को दे रहे हैं, वे कहते है कि, 'यह राजविद्या है'। राजविद्या का अर्थ है, स्वयं को पहचानना, वह स्वयं क्या है और तदनुसार कार्य करना। इसे राजविद्या कहते हैं।" |
661122 - प्रवचन भ.गी. ९.२ - न्यूयार्क |