HI/661201 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 15:30, 11 August 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"भगवान् के समान कोई नहीं हो सकता। इसलिए, भगवान् बनने या अपनी निम्न बुद्धि और दोषयुक्त इन्द्रियों से भगवान् को समझने के स्थान पर, विनम्र बनना श्रेयस्कर है। यह स्वभाव को त्याग दीजिए। 'ज्ञाने प्रयासम उदपास्य (श्री.भा. १०.१४.३)।' यह मूर्खतापूर्ण स्वभाव को त्याग दो, कि "मैं भगवान् को जान सकता हूँ"। बस केवल विनम्र होकर उनके प्रतिनिधिओ से श्रवण करो। सनमुखरीताम। प्रतिनिधि कौन है ? स्वयं भगवान् श्री कृष्ण, या उनके प्रतिनिधी हैं।" |
661201 - प्रवचन भ.गी. ९.१५ - न्यूयार्क |