HI/661210 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 05:00, 28 March 2022 by Meghna (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हम सभी शासन करने का प्रयास कर रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति प्रयास कर रहा है। एक दूसरे से प्रतिद्वन्दिता (स्पर्धा) चल रही हैं । उदाहरण के लिए, आप शायद एक हजार कर्मचारियों पर शासन कर रहे हो। आपका दफ़्तर बहुत बड़ा है। तो मैं अपना दफ़्तर आपके दफ़्तर से बड़ा बनाना चाहता हूँ । इस प्रकार मैं आपसे बड़ा शासक बनना चाहता हूँ। तो ये हमारी, प्रतिद्वन्दिता चल रही है। किन्तु वास्तव में हम में से कोई भी शासक (स्वामी) नहीं है। हम सभी पर किसी का प्रभुत्व है। और क्योंकि हम ये नहीं जानते कि, "मैं स्वामी कभी नहीं बन सकता," इसलिए मैं माया, भ्रम, के वश में हूँ। वास्तव में हमारे स्वामी, केवल परम पुरुषोत्तम भगवान् श्री कृष्ण हैं।"
661210 - प्रवचन भ.गी. ९.२३-२४ - न्यूयार्क