"समस्त वैदिक साहित्य में एक जैसी बात ही है। वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो (भ.गी. १५.१५) कृष्ण को प्राप्त करना ही अन्तिम प्रयोजन व परम लक्ष्य है। अत: भगवद् गीता में कहा गया है, सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। (भ.गी. १८.६६)। भागवतम (श्री भा २.३.१०) में कहा है, अकाम: सर्वकामो वा । यदि तुम भौतिक इच्छाएँ भी रखते हो तो भी तुम्हें कृष्ण की शरण में जाना चाहिए। श्री कृष्ण कहते हैं कि "भजते मामनन्यभाक् साधुरेव स मन्तव्य:(भ.गी.९.३०) अपि चेत्सुदुराचारो। भगवान् से कुछ भी मत माँगो, लेकिन फिर भी यदि कुछ माँगते हो तो कृष्ण उसे स्वीकार कर लेते हैं, क्योंकि वह सही लक्ष्य पर पहुँच गये हैं अर्थात कृष्ण के पास पहुँच गये हैं। यही सब से उत्तम विशिष्ठता है। वह कृष्ण भावना भावित है। जब वह कृष्ण भावना से भावित हो जाता है तो फिर चाहे कितनी भी त्रुटियाँ हों, सब सही हो जाता है।"
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