HI/670111c प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवद गीता में कहा गया है,
सर्व योनिषु कौन्तेय
सम्भवन्ति मूर्तयः याः
तासाम ब्रह्म महद योनिर
अहं बीजप्रदः पिता
(भ.गी १४.४)

लोग भगवद गीता को कुछ भारतीय या हिंदू के रूप में स्वीकार कर रहे हैं, किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। यह सार्वभौमिक है। कृष्ण कहते हैं कि, बद्ध जीव के अनेक रूप हैं। ८४,००,००० विभिन्न प्रकार के शरीर हैं । "और वे सब मेरी संतान हैं।" तो यदि आप कृष्ण से प्रेम करते हैं, तो आप गोरे आदमी से प्रेम करते हैं, आप अमेरिकी से प्रेम करते हैं, आप यूरोपीयन से प्रेम करते हैं, आप भारतीय से प्रेम करते हैं, आप गाय से प्रेम करते हैं, आप कुत्ते से प्रेम करते हैं, आप नाग से प्रेम करते हैं।"

670111 - प्रवचन भ.गी. १०.८ - न्यूयार्क