HI/670210 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/670210CC-SAN_FRANCISCO_ND_01.mp3</mp3player>|अतः कृष्ण चैतन्य महाप्रभु हरे कृष्ण के जप के बारे में अपने व्यावहारिक अनुभव का वर्णन कर रहे हैं। जब उन्होने खुद को देखा कि "मैं लगभग एक पागल की तरह हो रहा हूं," तो उन्होने फिर से अपने आध्यात्मिक गुरु से संपर्क करके बोले, "पूज्य गुरुदेव, मुझे नहीं पता कि आपने मुझसे किस तरह का जप करने के लिए कहा है।" क्योंकि महाप्रभु हमेशा खुद को एक मूर्ख कि तरह पेश करते थे और कि वे अनुभव नहीं कर सकते, कि वे समझ नहीं सकते कि क्या हो रहा है, लेकिन उन्होने अपने गुरु से कहा कि "ये मेरे द्वारा विकसित किए गए लक्षण हैं: कभी-कभी मैं रोता हूं, कभी-कभी मैं हंसता हूं, कभी-कभी मैं नाचता हूं। ये कुछ लक्षण हैं। इसलिए मुझे लगता है कि मैं पागल हो गया हूं।|Vanisource:670210 - Lecture CC Adi 07.80-95 - San Francisco|670210 - प्रवचन CC Adi 07.80-95 - सैन फ्रांसिस्को}}
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Latest revision as of 04:50, 12 April 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु हरे कृष्ण के जप के बारे में अपने व्यावहारिक अनुभव का वर्णन कर रहे हैं। जब उन्होने स्वयं को देखा कि "मैं लगभग एक पागल की भाँति हो रहा हूँ," तो उन्होने फिर से अपने आध्यात्मिक गुरु को संपर्क किया और कहा, "पूज्य गुरुदेव, मुझे नहीं पता कि आपने मुझे किस प्रकार का जाप करने के लिए कहा है।" क्योंकि महाप्रभु हमेशा स्वयं को एक मूर्ख के भाँति प्रस्तुत करते थे, जैसे वे अनुभव नहीं कर सकते ऐसे, जैसे समझ नहीं सकते कि क्या हो रहा है, किन्तु उन्होने अपने गुरु से कहा कि "ये मेरे द्वारा विकसित किए गए लक्षण हैं: कभी-कभी मैं रोता हूँ, कभी-कभी मैं हँसता हूँ, कभी-कभी मैं नाचता हूँ। ये कुछ लक्षण हैं। इसलिए मुझे लगता है कि मैं पागल हो गया हूँ।"
670210 - प्रवचन चै.च. आदि ७.८०-९५ - सैन फ्रांसिस्को