HI/670217 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवान की व्यवस्था में कोई त्रुटि नहीं है। जिसे हमें सबसे पहले समझना चाहिए। तो चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि वेदान्त, वेदान्त की रचना स्वयं भगवान ने की है। यह कल हमने समझाया था। भगवान कृष्ण भी कहते हैं कि वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् (भ गी १५.१५): "मैं वेदान्त का संकलन कर्ता हूँ और मैं ही वेदान्त का ज्ञाता हूँ।" यदि भगवान, यदि कृष्ण, वेदान्त के ज्ञाता नहीं हैं, तो वे वेदान्त का संकलन कैसे कर सकते हैं? वेदान्त का अर्थ है "ज्ञान का अंतिम शब्द।" हम, हर कोई, ज्ञान की खोज कर रहे हैं, और वेदान्त का अर्थ है ज्ञान का अंतिम शब्द। तो प्रारम्भ में ही चैतन्य महाप्रभु ने यह स्थापित कर दिया कि वेदान्त-सूत्र में आप कोई त्रुटि नहीं निकल सकते; इसलिए आपको व्याख्या करने का कोई अधिकार ही नहीं है। क्योंकि आप बेहूदगी करने वाले बदमाश हैं, तो आप कैसे सूत्रों को स्पर्श सकते हैं और टिप्पणी कर सकते हैं, जो की भगवान के द्वारा संकलित है, जो सर्वोच्च निपुण है? किन्तु हम यह स्वीकार नहीं करते हैं कि "मैं दुष्ट हूँ।" मुझे लगता है कि "मै बहुत बड़ा ज्ञानी हूँ, मुझेमें तो कोई दोष ही नहीं है, मैं उत्तम हूँ। ”तो यह मूर्खता हैं।"
670217 - प्रवचन चै च आदि लीला ०७.१०६-१०७ - सैन फ्रांसिस्को