HI/680504b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉस्टन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680504SB-BOSTON_ND_02.mp3</mp3player>|"So this material condition of life is diseased condition. That we do not know. And we are trying to enjoy in this diseased condition. That means we are aggravating the disease—we have to continue. We are not curing the disease. Just like the physician gives some restriction, "Ah, my dear patient, you do not eat like this. You do not drink like this. You take this pill." So there are some restriction and rules and regulations—that is called tapasya. But if the patient thinks that "Why shall I follow all these restrictions? I shall eat whatever I like. I shall do whatever I like. I am free," then he’ll not be cured. He’ll not be cured."|Vanisource:680504 - Lecture SB 05.05.01-3 - Boston|680504 - प्रवचन SB 05.05.01-3 - बॉस्टन}}
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{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/680504 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉस्टन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680504|HI/680506 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉस्टन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680506}}
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680504SB-BOSTON_ND_02.mp3</mp3player>|तो जीवन की यह भौतिक स्थिति रोगग्रस्त स्थिति है । यह हम नहीं जानते हैं । और हम इस रोगग्रस्त स्थिति में आनंद लेने की कोशिश कर रहे हैं । इसका मतलब है कि हम इस बीमारी को बढ़ा रहे हैं - हमें जारी रहना है । हम बीमारी का इलाज नहीं कर रहे हैं । जैसे कि चिकित्सक कुछ रोक लगाता है, "आह, मेरे प्रिय मरीज़, आप इस तरह नहीं खा सकते । तुम इस तरह मत पीना । आप इस गोली को लीजिये ।" तो कुछ प्रतिबंध और नियम और अधिनियम हैं - जिसे तपस्या कहा जाता है । लेकिन अगर मरीज़ सोचता है कि "मैं इन सभी प्रतिबंधों का पालन क्यों करूं ? मुझे जो अच्छा लगेगा मैं खाऊंगा । मुझे जो अच्छा लगेगा मैं वह करूंगा । मैं स्वतंत्र हूं, "तब वह ठीक नहीं होगा । वह ठीक नहीं होगा ।|Vanisource:680504 - Lecture SB 05.05.01-3 - Boston|680504 - प्रवचन श्री.भा. ५..-- बॉस्टन}}

Latest revision as of 14:26, 24 May 2019

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
तो जीवन की यह भौतिक स्थिति रोगग्रस्त स्थिति है । यह हम नहीं जानते हैं । और हम इस रोगग्रस्त स्थिति में आनंद लेने की कोशिश कर रहे हैं । इसका मतलब है कि हम इस बीमारी को बढ़ा रहे हैं - हमें जारी रहना है । हम बीमारी का इलाज नहीं कर रहे हैं । जैसे कि चिकित्सक कुछ रोक लगाता है, "आह, मेरे प्रिय मरीज़, आप इस तरह नहीं खा सकते । तुम इस तरह मत पीना । आप इस गोली को लीजिये ।" तो कुछ प्रतिबंध और नियम और अधिनियम हैं - जिसे तपस्या कहा जाता है । लेकिन अगर मरीज़ सोचता है कि "मैं इन सभी प्रतिबंधों का पालन क्यों करूं ? मुझे जो अच्छा लगेगा मैं खाऊंगा । मुझे जो अच्छा लगेगा मैं वह करूंगा । मैं स्वतंत्र हूं, "तब वह ठीक नहीं होगा । वह ठीक नहीं होगा ।
680504 - प्रवचन श्री.भा. ५.५.१-३ - बॉस्टन