HI/680817c प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९६८ Category:HI/अम...") |
(Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address) |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - मॉन्ट्रियल]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - मॉन्ट्रियल]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680817VP-MONTREAL_ND_02.mp3</mp3player>| | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/680817b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680817b|HI/680818 बातचीत - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680818}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680817VP-MONTREAL_ND_02.mp3</mp3player>|आप में से हर एक को अगला आध्यात्मिक गुरु होना चाहिए । और वह कर्तव्य क्या है ? आप जो कुछ भी मुझसे सुन रहे हैं, जो कुछ भी आप मुझसे सीख रहे हैं, आपको उसी को पूर्णतः वितरित करना है, बिना किसी जोड़ या फेरबदल के । फिर आप सभी आध्यात्मिक गुरु बन जाएंगे । यह आध्यात्मिक गुरु बनने का विज्ञान है । आध्यात्मिक गुरु बनना कुछ बहुत अद्भुत बात नहीं है । बस व्यक्ति को गंभीर बनना है । बस इतना ही है । एवं परम्परा प्राप्तम इमं राजर्षयो विदुः ([[HI/BG 4.2|भ.गी. ४.२]]) । भगवद गीता में कहा गया है कि शिष्य उत्तराधिकार द्वारा भगवद गीता की इस योग प्रक्रिया को शिष्य से शिष्य को बताया गया था ।|Vanisource:680817 - Lecture Festival Appearance Day, Sri Vyasa-puja - Montreal|680817 - प्रवचन उत्सव प्राकट्य दिन, श्री व्यास-पूजा - मॉन्ट्रियल}} |
Revision as of 17:35, 17 September 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
आप में से हर एक को अगला आध्यात्मिक गुरु होना चाहिए । और वह कर्तव्य क्या है ? आप जो कुछ भी मुझसे सुन रहे हैं, जो कुछ भी आप मुझसे सीख रहे हैं, आपको उसी को पूर्णतः वितरित करना है, बिना किसी जोड़ या फेरबदल के । फिर आप सभी आध्यात्मिक गुरु बन जाएंगे । यह आध्यात्मिक गुरु बनने का विज्ञान है । आध्यात्मिक गुरु बनना कुछ बहुत अद्भुत बात नहीं है । बस व्यक्ति को गंभीर बनना है । बस इतना ही है । एवं परम्परा प्राप्तम इमं राजर्षयो विदुः (भ.गी. ४.२) । भगवद गीता में कहा गया है कि शिष्य उत्तराधिकार द्वारा भगवद गीता की इस योग प्रक्रिया को शिष्य से शिष्य को बताया गया था । |
680817 - प्रवचन उत्सव प्राकट्य दिन, श्री व्यास-पूजा - मॉन्ट्रियल |