HI/681011b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सिएटल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681011LE-SEATTLE_ND_02.mp3</mp3player>|यह चेतना सूत्र समझने में बहुत सरल है । कोई भी समझ सकता है । जैसे कि यह शरीर है, जब तक इस शरीर के भीतर आत्मा है, तब तक चेतना है । जैसे जितनी देर तक सूरज दिखाई देता है, तब तक गर्मी और धूप रहती हैं । इसी तरह, जब तक आत्मा इस शरीर के भीतर है, हमें यह चेतना रहती है । और जैसे ही आत्मा इस शरीर से चली जाती है, तब कोई चेतना नहीं होती है ।|Vanisource:681011 - Lecture - Seattle|681011 - प्रवचन - सिएटल}}
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681011LE-SEATTLE_ND_02.mp3</mp3player>|यह चेतना सूत्र समझने में बहुत सरल है। कोई भी समझ सकता है। जैसे कि यह शरीर है, जब तक इस शरीर के भीतर आत्मा है, तब तक चेतना भी उपस्थित है। जिस प्रकार जब तक सूर्य दिखाई देता है, तब तक गर्मी तथा धूप रहती हैं। ठीक इसी प्रकार, जब तक आत्मा इस शरीर के भीतर है, हम में यह चेतना रहती है। और जैसे ही आत्मा इस शरीर से चली जाती है, तब कोई चेतना नहीं होती है।|Vanisource:681011 - Lecture - Seattle|681011 - प्रवचन - सिएटल}}

Latest revision as of 05:29, 3 July 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
यह चेतना सूत्र समझने में बहुत सरल है। कोई भी समझ सकता है। जैसे कि यह शरीर है, जब तक इस शरीर के भीतर आत्मा है, तब तक चेतना भी उपस्थित है। जिस प्रकार जब तक सूर्य दिखाई देता है, तब तक गर्मी तथा धूप रहती हैं। ठीक इसी प्रकार, जब तक आत्मा इस शरीर के भीतर है, हम में यह चेतना रहती है। और जैसे ही आत्मा इस शरीर से चली जाती है, तब कोई चेतना नहीं होती है।
681011 - प्रवचन - सिएटल