HI/681021e प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सिएटल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यह शब्द नमः, न, म, अ, ह, निम्नलिखित प्रकार से समझाया जा सकता है: मह, मतलब मिथ्या अहंकार और न मतलब जो निष्प्रभावित कर दे। इसका मतलब मंत्र के अभ्यास से व्यक्ति भावातीत रूप से धीरे धीरे मिथ्या अहंकार से ऊपर उठने में सक्षम हो जाता है। मिथ्या अहंकार भावनात्मकता का मतलब है इस शरीर को आत्मा स्वीकार करना और शरीर के संबंध से इस भौतिक संसार को अत्यंत महत्वपूर्ण मानना। यह मिथ्या अहंकार भावनात्मकता है। मंत्र कीर्तन की सिद्धि से व्यक्ति भावातीत स्तर तक उठने में सक्षम हो जाता है भौतिक संसार से बिना किसी मिथ्या तादात्म्य के।"
681021 - Dictation CC - सिएटल