HI/681220 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681220BG-LOS_ANGELES_ND_01.mp3</mp3player>|यह अति महत्वपूर्ण बिंदु है। कभी-कभी यह सोचा जाता है कि आध्यात्मिक जीवन का | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681220BG-LOS_ANGELES_ND_01.mp3</mp3player>|यह अति महत्वपूर्ण बिंदु है। कभी-कभी यह सोचा जाता है कि आध्यात्मिक जीवन का अर्थ सक्रिय जीवन से सेवानिवृत्त होना है। यह सामान्य धारणा है। लोगों को लगता है कि आध्यात्मिक ज्ञान या आत्म-साक्षात्कार के लिए उन्हें हिमालय की गुफाओं में या किसी एकांत स्थानों पर जाना चाहिए। यह संस्तुत किया जाता है। परंतु इस प्रकार की संस्तुति उन लोगों के लिए है जो स्वयं को कृष्ण भावनामृत की गतिविधियों में संलग्न करने में असमर्थ हैं। भगवान कृष्ण अर्जुन को सिखा रहे हैं कि कोई अपने पद पर कैसे स्थित रह सकता है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह कौन है, परंतू फिर भी वह पूर्ण रुप से कृष्णभावनाभावित बन सकता है।|Vanisource:681220 - Lecture BG 03.01-5 - Los Angeles|681220 - प्रवचन BG 03.01-5 - लॉस एंजेलेस}} |
Latest revision as of 03:16, 23 July 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
यह अति महत्वपूर्ण बिंदु है। कभी-कभी यह सोचा जाता है कि आध्यात्मिक जीवन का अर्थ सक्रिय जीवन से सेवानिवृत्त होना है। यह सामान्य धारणा है। लोगों को लगता है कि आध्यात्मिक ज्ञान या आत्म-साक्षात्कार के लिए उन्हें हिमालय की गुफाओं में या किसी एकांत स्थानों पर जाना चाहिए। यह संस्तुत किया जाता है। परंतु इस प्रकार की संस्तुति उन लोगों के लिए है जो स्वयं को कृष्ण भावनामृत की गतिविधियों में संलग्न करने में असमर्थ हैं। भगवान कृष्ण अर्जुन को सिखा रहे हैं कि कोई अपने पद पर कैसे स्थित रह सकता है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह कौन है, परंतू फिर भी वह पूर्ण रुप से कृष्णभावनाभावित बन सकता है। |
681220 - प्रवचन BG 03.01-5 - लॉस एंजेलेस |