HI/690216 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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अहम् अज्ञानजमतमह | अहम् अज्ञानजमतमह नाश्यामी आत्म भावस्थो ज्ञान दीपेन भास्वता (भ. गी. १०.११ ) | ||
नाश्यामी आत्म भावस्थो | "जो लोग सदैव मेरी सेवा में लगे रहते हैं, बस उन्हें एक विशेष कृपा प्रदान करने के लिए", तेषां एवानुकम्पार्थं, अहम् अज्ञानजमतमह नाश्यामी, 'मैं ज्ञान के प्रकाश से सभी प्रकार के अज्ञान के अंधकार को दूर करता हूँ'। तो कृष्ण आपके भीतर हैं। और जब आप ईमानदारी से भक्ति प्रक्रिया द्वारा कृष्ण की खोज कर रहे हैं, जैसा कि यह भगवद गीता में कहा गया है, तो आप अठारहवें अध्याय में पाएंगे, भक्त्या माम् अभिजानाती (भ. गी. १८.५५ ): व्यक्ति मुझे केवल इस भक्ति प्रक्रिया से समझ सकता हैं।"|Vanisource:690216 - Lecture BG 06.13-15 - Los Angeles|690216 - प्रवचन भ. गी. ०६.१३-१५ - लॉस एंजेलेस}} | ||
ज्ञान दीपेन भास्वता | |||
(भ. गी. १०.११ ) | |||
"जो लोग |
Latest revision as of 03:09, 23 August 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
“तेषां एवानुकम्पार्थं
अहम् अज्ञानजमतमह नाश्यामी आत्म भावस्थो ज्ञान दीपेन भास्वता (भ. गी. १०.११ ) "जो लोग सदैव मेरी सेवा में लगे रहते हैं, बस उन्हें एक विशेष कृपा प्रदान करने के लिए", तेषां एवानुकम्पार्थं, अहम् अज्ञानजमतमह नाश्यामी, 'मैं ज्ञान के प्रकाश से सभी प्रकार के अज्ञान के अंधकार को दूर करता हूँ'। तो कृष्ण आपके भीतर हैं। और जब आप ईमानदारी से भक्ति प्रक्रिया द्वारा कृष्ण की खोज कर रहे हैं, जैसा कि यह भगवद गीता में कहा गया है, तो आप अठारहवें अध्याय में पाएंगे, भक्त्या माम् अभिजानाती (भ. गी. १८.५५ ): व्यक्ति मुझे केवल इस भक्ति प्रक्रिया से समझ सकता हैं।" |
690216 - प्रवचन भ. गी. ०६.१३-१५ - लॉस एंजेलेस |