HI/690510 बातचीत - श्रील प्रभुपाद कोलंबस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६९]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६९]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - कोलंबस]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - कोलंबस]]
{{Audiobox_NDrops|Nectar Drops from Srila Prabhupada|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690510R1-COLUMBUS_ND_01.mp3</mp3player>|"एतादृशि तव कृपा भगवां ([[Vanisource:CC Antya 20।16|च चै अन्त्य २०।१६]]), चैतन्य महप्रभु सिखाता है कि 'हे कृष्ण, तुम इतने दयालु हो कि तुम मेरे पास ध्वनि कंपन, शब्द,'कृष्ण' में आ गए हो। मैं बहुत आसानी से जप कर सकता हूं, और तुम मेरे साथ बने रहो। लेकिन मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मैं भी इस'के लिए कोई आकर्षण नहीं है। तुम लोग कहो,'तुम जाप कृष्ण; तुम सब कुछ मिलता है'। वे इस पर विश्वास नहीं करेंगे। अगर आप कहते हैं,'आप अपनी नाक दबाते हैं। तुम मुझे ५० डॉलर भुगतान करते हैं। मैं तुंहें कुछ अच्छा मंत्र देता हूं और यह, कि। तुम इस तरह अपना सिर बनाओ, (हँसी) टाँगें इस तरह, "ओह, " वह कहती हूँ,' यहाँ कुछ है'। तो,(व्यंग्य)' और यह वाव कहता है,'बस जाप कृष्ण'। ओह, यह क्या है?' त्यस गुरुदेवजी महाप्रभु ने कहा, एतद्र्स्हि तव क्रिप भगवां ममपि दुर्दैव ([[Vanisource:CC Antya 20।16|च चै अन्त्य २०।१६]]):'लेकिन मैं इतना दुर्भाग्यपूर्ण हूं कि आप इस युग में इतनी आसानी से उपलब्ध हो गए हैं, लेकिन मैं इतना दुर्भाग्यपूर्ण हूं, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता'। तो कृष्ण चेतना इतनी आसानी से वितरित की जा रही है, लेकिन वे इतने दुर्भाग्यपूर्ण हैं, वे स्वीकार नहीं कर सकते हैं। बस देखते हैं। और तुम उंहें धोखा देते हैं, तो आप उंहें,'आह, हां, आपका स्वागत है, धंयवाद। हां"|Vanisource:690510 - Conversation - Columbus|690510 - Conversation - Columbus}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/690509b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद कोलंबस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690509b|HI/690511 बातचीत - श्रील प्रभुपाद कोलंबस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690511}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|Nectar Drops from Srila Prabhupada|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690510R1-COLUMBUS_ND_01.mp3</mp3player>|एतादृशी तव कृपा भगवन ([[Vanisource:CC Antya 20.16|चै.. अन्त्य २०.१६]]), चैतन्य महप्रभु सिखाते है कि 'हे कृष्ण, आप इतने दयालु हो कि आप मेरे पास ध्वनि कंपन, शब्द, 'कृष्ण' के स्वरूप में आए हो । मैं बहुत आसानी से जप कर सकता हूं, और आप मेरे साथ रहते हो । लेकिन मैं बहुत दुर्भाग्यशाली हूं कि मुझे इसके लिए भी कोई आकर्षण नहीं है । आप लोगो से कहते हो, 'आप कृष्ण का जप करो, आप को सब कुछ मिलेगा' । वे इस पर विश्वास नहीं करेंगे । अगर आप कहते हैं,'आप अपनी नाक दबाए । आप मुझे ५० डॉलर भुगतान करो । मैं आपको कोई अच्छा मंत्र देता हूं और ये, और वो । आप इस तरह अपना सिर बनाओ, (हँसी) पैर इस तरह,' 'ओह', वो कहेगा, 'यहाँ कुछ है' । तो, (मंद हास्य) 'और ये स्वामीजी कहते है, 'बस कृष्ण जप करो' । ओह, यह क्या है ?' इसीलिए चैतन्य महाप्रभु ने कहा, एतादृशी तव कृपा भगवन ममापि दुर्दैव ([[Vanisource:CC Antya 20.16|चै.. अन्त्य २०.१६]]): 'लेकिन मैं इतना दुर्भाग्यपूर्ण हूं कि आप इस युग में इतनी आसानी से उपलब्ध हो गए हैं, लेकिन मैं इतना दुर्भाग्यपूर्ण हूं, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता' । तो कृष्ण भावनामृत इतनी आसानी से वितरित किया जा रहा है, लेकिन वे इतने दुर्भाग्यपूर्ण हैं, वे स्वीकार नहीं कर सकते । ज़रा देखो । और आप उन्हें बकवास करो, धोख़ा दो - वो कहेंगे - 'आह, हां, आपका स्वागत है हां' |Vanisource:690510 - Conversation - Columbus|690510 - बातचीत - कोलंबस}}

Latest revision as of 16:30, 16 June 2019

Nectar Drops from Srila Prabhupada
एतादृशी तव कृपा भगवन (चै.च. अन्त्य २०.१६), चैतन्य महप्रभु सिखाते है कि 'हे कृष्ण, आप इतने दयालु हो कि आप मेरे पास ध्वनि कंपन, शब्द, 'कृष्ण' के स्वरूप में आए हो । मैं बहुत आसानी से जप कर सकता हूं, और आप मेरे साथ रहते हो । लेकिन मैं बहुत दुर्भाग्यशाली हूं कि मुझे इसके लिए भी कोई आकर्षण नहीं है । आप लोगो से कहते हो, 'आप कृष्ण का जप करो, आप को सब कुछ मिलेगा' । वे इस पर विश्वास नहीं करेंगे । अगर आप कहते हैं,'आप अपनी नाक दबाए । आप मुझे ५० डॉलर भुगतान करो । मैं आपको कोई अच्छा मंत्र देता हूं और ये, और वो । आप इस तरह अपना सिर बनाओ, (हँसी) पैर इस तरह,' 'ओह', वो कहेगा, 'यहाँ कुछ है' । तो, (मंद हास्य) 'और ये स्वामीजी कहते है, 'बस कृष्ण जप करो' । ओह, यह क्या है ?' इसीलिए चैतन्य महाप्रभु ने कहा, एतादृशी तव कृपा भगवन ममापि दुर्दैव (चै.च. अन्त्य २०.१६): 'लेकिन मैं इतना दुर्भाग्यपूर्ण हूं कि आप इस युग में इतनी आसानी से उपलब्ध हो गए हैं, लेकिन मैं इतना दुर्भाग्यपूर्ण हूं, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता' । तो कृष्ण भावनामृत इतनी आसानी से वितरित किया जा रहा है, लेकिन वे इतने दुर्भाग्यपूर्ण हैं, वे स्वीकार नहीं कर सकते । ज़रा देखो । और आप उन्हें बकवास करो, धोख़ा दो - वो कहेंगे - 'आह, हां, आपका स्वागत है । हां'
690510 - बातचीत - कोलंबस