HI/700220b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/700220IN-LOS_ANGELES_ND_02.mp3</mp3player>|"भगवान तथा जीव में चेतना की मात्रा का अंतर है। हमारी चेतना सिमित है और भगवान की चेतना असीम है अकल्पनीय है। इस कारण हम भले ही हमारे पूर्वजन्म के बारे में सब भूल चुके हो परन्तु भगवान कभी नहीं भूलते हैं। वें हमारे कर्मों के प्रत्येक क्षण का हिसाब रखतें हैं। वें हमारे ह्रदय में विराजमान हैं- ईश्वरः सर्वभूतानां ह्रद-देशे अर्जुन तिष्ठति (श्रीमद्भगवतगीता १८।६१) वें सबका हिसाब रख रहें है। तुम कुछ करना चाहते हो तो कृष्ण कहते है " ठीक है करो। " यदि तुम बाघ बनना चाहते हो तो कृष्ण कहते है " ठीक है बाघ बनो , अन्य पशुओं का शिकार करो रक्तपान करो अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करो। " अतः कृष्ण हमे अवसर देतें है। इसी प्रकार यदि तुम कृष्णभावनाभावित होना चाहते हो और भगवान के साथ आनंद उपभोग करना चाहते हो तो वें तुम्हे वैसा करने की सुविधा प्रदान करेंगे। सभी प्रकार की सुविधाएं वें तुम्हे प्रदान करेंगे। अगर तुम कुछ बनना चाहते हो तो वें तुम्हे पूर्ण सुविधाएं प्रदान करेंगे वैसा बनने के लिए। यदि तुम भगवान को भूलना चाहते हो तो वें तुम्हे इतनी बुद्धि प्रदान करेंगे की तुम उन्हें सदा के लिए भूल सको। और यदि तुम उनका संग प्राप्त करना चाहते हो तो वें तुम्हे उसका भी अवसर देंगे ताकि तुम व्यक्तिगत रूप से उनका संग प्राप्त कर सको जैसा संग गोपियाँ तथा गोप बालक भगवान के साथ खेलते हुए प्राप्त करते थे।"|Vanisource:700220 - Lecture Initiation Sannyasa - Los Angeles|७००२२० - प्रवचन संन्यास दीक्षा  - लॉस एंजेलेस}}
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Latest revision as of 15:23, 5 December 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवान तथा जीव में चेतना की मात्रा का अंतर है। हमारी चेतना सिमित है और भगवान की चेतना असीम है अकल्पनीय है। इस कारण हम भले ही हमारे पूर्वजन्म के बारे में सब भूल चुके हो परन्तु भगवान कभी नहीं भूलते हैं। वें हमारे कर्मों के प्रत्येक क्षण का हिसाब रखतें हैं। वें हमारे ह्रदय में विराजमान हैं- ईश्वरः सर्वभूतानां ह्रद-देशे अर्जुन तिष्ठति (श्रीमद्भगवतगीता १८।६१) वें सबका हिसाब रख रहें है। तुम कुछ करना चाहते हो तो कृष्ण कहते है "ठीक है करो।" यदि तुम बाघ बनना चाहते हो तो कृष्ण कहते है "ठीक है बाघ बनो , अन्य पशुओं का शिकार करो रक्तपान करो अपनी इन्द्रियों को संतुष्ट करो।" अतः कृष्ण हमे अवसर देतें है। इसी प्रकार यदि तुम कृष्णभावनाभावित होना चाहते हो और भगवान के साथ आनंद उपभोग करना चाहते हो तो वें तुम्हे वैसा करने की सुविधा प्रदान करेंगे। सभी प्रकार की सुविधाएं वें तुम्हे प्रदान करेंगे। अगर तुम कुछ बनना चाहते हो तो वें तुम्हे पूर्ण सुविधाएं प्रदान करेंगे वैसा बनने के लिए। यदि तुम भगवान को भूलना चाहते हो तो वें तुम्हे इतनी बुद्धि प्रदान करेंगे की तुम उन्हें सदा के लिए भूल सको। और यदि तुम उनका संग प्राप्त करना चाहते हो तो वें तुम्हे उसका भी अवसर देंगे ताकि तुम व्यक्तिगत रूप से उनका संग प्राप्त कर सको जैसा संग गोपियाँ तथा गोप बालक भगवान के साथ खेलते हुए प्राप्त करते थे।"
७००२२० - प्रवचन संन्यास दीक्षा - लॉस एंजेलेस