HI/700518 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"या कर्मि या ज्ञानी या योगी, वे हमेशा से... वे हैं, उनमें से हर एक, ऊपर उठने की कोशिश कर रहा है। और उनसे ऊपर भक्त है। इसलिए भक्त का स्थान सर्वोच्च है क्योंकि भक्ति से ही ईश्वर को समझा जा सकता है।" भक्त्या माम् अभिजानाती (भ.गी १८.५५), कृष्ण कहते हैं। वह यह नहीं कहते हैं कि 'कर्म से व्यक्ति मुझे समझ सकता है'। वह यह नहीं कहते हैं कि 'ज्ञान से व्यक्ति मुझे समझ सकता है'। वह यह नहीं कहते हैं कि 'योग से व्यक्ति मुझे समझ सकता है'।वह स्पष्ट रूप से कहते हैं, भक्त्या माम् अभिजानाती: 'केवल भक्ति सेवा से ही व्यक्ति समझ सकता है'। यावान यस चास्मि तत्त्वत: (भ.गी १८.५५) उसको उसके स्वरुप में जानना, यह भक्ति है। इसलिए भक्ति सेवा के अलावा, परम सत्य को समझने की कोई संभावना नहीं है।
700518 - प्रवचन ईशो १३-१५ - लॉस एंजेलेस